कोरोना की वजह से बिहार सहित पूरे देश में लॉकडाउन है। इस त्रासदी में नियोजित शिक्षकों का वेतन रोके रखना कितना जायज़ है?
“मेरे परिवार में 3 नियोजित शिक्षक हैं। हालत बहुत ख़राब हैं। आप बस ये समझिए कि बिहार में चार लाख शिक्षकों के परिवार भुखमरी की तरफ़ बढ़ रहे हैं। पूरे राज्य में लॉकडाउन है। ऐसे में पैसा ही सबकुछ है। इन परिवारों के पास आने वाले कुछ दिनों में खाने-पीने को भी कुछ नहीं रहेगा। मैं आपको ये लिख रहा हूं क्योंकि मेरे पिता जी एक नियोजित शिक्षक हैं और उनकी स्थिति का मुझे अंदाज़ा है।”
कल शाम इस रिपोर्टर के पास फ़ेसबुक के माध्यम से ये मैसेज आया। कोरोना की वजह से पूरे राज्य और देश में 21 दिन का लॉकडाउन है। केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारें जनता के लिए राहत पैकेज की घोषणा कर रही हैं। आज ही RBI ने कई तरह की घोषणाएं की हैं। राज्य की नीतीश सरकार ने भी अनेक तरह के आर्थिक पैकेज की घोषणाएं की हैं लेकिन बिहार के लगभग चार लाख नियोजित शिक्षकों का इसमें से किसी भी घोषणा का कोई फ़ायदा नहीं मिलेगा।
ये सारे शिक्षक ‘समान काम, समान वेतन’ की मांग को लेकर हड़ताल पर हैं और पिछले चार महीने से इनको वेतन भी नहीं मिला है। अब ऐसे में लॉकडाउन घोषित हो गया। नियोजित शिक्षकों के परिवार की स्थिति और भी ख़राब हो रही है।
बिहार विधान परिषद में राज्यपाल के अभिभाषण पर सवालों का जवाब देते हुए नीतीश कुमार ने कहा था, “छात्रों की परीक्षा होने वाली है और आप हड़ताल करोगे? क्या ये शिक्षकों का काम है? हम आपको नियमित शिक्षकों के बराबर वेतनमान नहीं दे सकते हैं, क्योंकि बिहार में और भी काम करने है। सब कुछ शिक्षकों को ही दे दिया जाए, तो क्या सड़कें नहीं बनाई जाए? क्या अस्पताल नहीं बनाए जाए? लोगों को सुविधाएं नहीं दी जाए?”
लेकिन कोरोना के क़हर और बिहार सहित पूरे देश में लंबे समय के लॉकडाउन की घोषणा होने के बाद तो राज्य सरकार को इन शिक्षकों के बारे में सोचना चाहिए था? कम से कम इनकी बकाया सैलरी का भुगतान जल्दी से जल्दी होना चाहिए था।
लॉकडाउन की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार-बार कहा है कि निजी क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारी अगर इस दौरान दफ़्तर नहीं जा पाते तो भी उन्हें उनकी पूरी सैलरी दी जाए। ये मानवीय भी है और इस वक़्त की मांग भी लेकिन बिहार में उल्टी गंगा बह रही है। हड़ताल कर रहे लगभग चार लाख नियोजित शिक्षकों की सैलरी उन्हें नहीं दी गई है। बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के जेनरल सेक्रेटरी सुरेश प्रसाद राय के मुताबिक़ सरकार अमानवीय तरीके से काम कर रही है और नियोजित शिक्षकों को, उनके परिवार को भूखे मारना चाहती है।
वो कहते हैं, “सही बात है कि शिक्षक हड़ताल पर हैं लेकिन हमने ये कभी नहीं कहा कि देश और बिहार से ऊपर हमारी मांग है। हमने बार-बार सरकार से कहा है कि राज्य कोरोना से जूझ रहा है। इस वक़्त शिक्षकों से बड़ी सहायता मिल सकती है। हम हड़ताल वापस लेकर सरकार और समाज की मदद करते हैं और सरकार हमारी सैलरी जारी करे लेकिन कोई सुनवाई नहीं है। हम शिक्षक फिर भी अपने अस्तर से समाज में जागरूकता फैलाने का काम कर रहे हैं।”
इस पूरे मसले पर बिहार में नेता प्रतिपक्ष और पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने एशियाविल हिंदी से फ़ोन पर बात करते हुए कहा कि अभी राज्य में मानवीय संकट है। ऐसे में नियोजित शिक्षकों की सैलरी रोकना एक अमानवीय कार्य है। राज्य सरकार को चाहिए कि जल्दी से जल्दी सभी नियोजित शिक्षकों की सैलरी का भुगतान करें।
उन्होंने आगे कहा, “ आप समझिए शिक्षकों की संख्या चार लाख के क़रीब है। एक परिवार के कम से कम तीन लोग होते हैं। आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि राज्य की कितनी बड़ी आबादी इस लॉकडाउन की स्थिति में बिना सैलरी के है। मैं सरकार से मांग करता हूं कि जल्दी से जल्दी शिक्षकों की बकाया सैलरी का भुगतान किया जाए”
वाक़ई ये अजीब स्थिति है। राज्य के मुखिया और गार्जियन होने के नाते नीतीश कुमार की ज़िम्मेदारी बनती है कि इस संकट के समय नियोजित शिक्षकों की बकाया सैलरी का भुगतान हो ताकि इस लॉकडाउन की स्थिति में वो भी अपने परिवार का ख़्याल रख सकें।
एशियाविल हिंदी आज से अगले कुछ दिनों तक हर रोज़ एक नियोजित शिक्षक की आपबीती प्रकाशित करेगा। ताकि आप पढ़ें और समझें कि बिहार की एक बड़ी आबादी सरकारी उदासीनता की वजह से किस तरह अपना जीवन-यापन कर रही है।