सऊदी अरब के शहर मक्का में स्थित है काबा। काबा इस्लाम धर्म को माननेवालों के लिए सबसे बड़ा धार्मिक स्थल है। इतिहास की एक घटना सिख और इस्लाम घर्म से जुड़ी है। यह घटना इस बात का संदेश देती है कि हम इंसान चाहे किसी भी नाम और रूप में उस परम शक्ति की पूजा करें, लेकन वह शक्ति तो एक ही है। आज हम आपको बता रहे हैं काबा (मक्का) की कहानी जब वहां गुरु नानक देव जी पहुंचे और दिखाया यह चमत्कार।
गुरु नानक देव जी, भाई मरदाना जी के साथ करीब 28 सालों में दो उपमहाद्वीपों में पांच प्रमुख पैदल यात्राएं की थीं, जिन्हें उदासी कहा जाता है। इन 28 हजार किलोमीटर लंबी यात्राओं में गुरु नानक देव जी ने करीब 60 शहरों का भ्रमण किया। अपनी चौथी उदासी में गुरु नानक देव जी ने मक्का की यात्रा की। उन्होंने हाजी का भेष धारण किया और अपने शिष्यों के साथ मक्का पहुंच गए। हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म के कई तीर्थस्थलों की यात्रा करने के बाद नानक ने मक्का की यात्रा की थी।
गुरु नानक जी का एक शिष्य मरदाना था जो मुस्लिम था। मरदाना ने गुरु नानक देव जी से कहा कि उसे मक्का जाना है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जब तक एक मुसलमान मक्का नहीं जाता तब तक वह सच्चा मुसलमान नहीं कहलाता है। गुरु नानक देव जी ने यह बात सुनी तो वह उसे साथ लेकर मक्का के लिए निकल पड़े। गुरु जी मक्का पहुंचे तो वह थक गए थे और वहां पर हाजियों के लिए एक आरामगाह बनी हुई थी तो गुरु जी मक्का की तरफ पैर करके लेट गए।
हाजियों की सेवा करने वाला खातिम जिसका नाम जियोन था वह यह देखकर बहुत गुस्सा हुआ और गुरु जी से बोला, क्या तुमको दिखता नहीं है कि तुम मक्का मदीना की तरफ पैर करके लेटे हो। तब गुरु नानक ने कहा कि वह बहुत थके हुए हैं और आराम करना चाहते हैं। उन्होंने जियोन से कहा कि जिस तरफ खुदा ना हो उसी तरफ उनके पैर कर दे। इस पर लोगों ने गुरु नानक देव जी के पैर घुमाकर काबा से उल्टी दिशा में कर दिए। जैसे ही उन्होंने नानक जी के पैर जमीन पर छोड़े और सिर उठाकर देखा तो हैरान रह गए, काबी उसी तरफ था जिधर उन्होंने नानक जी के पैर किए। इस घटना का जिक्र सिख धर्म की सबसे पवित्र ग्रंथ ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब’ में किया गया है। तब जियोन को गुरु नानक की बात समझ में आ गई कि खुदा केवल एक दिशा में नहीं बल्कि हर दिशा में है। इसके बाद जियोन को गुरु नानक ने समझाया कि अच्छे कर्म करो और खुदा को याद करो, यही सच्चा सदका है।