होली की बात हो और अकबर के दरबार की होली की बात ना हो ऐसा हो नहीं सकता है। होली के रंग हर दिल अजीज होते हैं। मुगल आक्रांताओं ने इनसे दूरी बनाई, लेकिन बाद में उन्हें वह दूरी मिटानी पड़ी। खूबसूरत त्योहार पर आखिर उन्हें भी रंगों में डूबना पड़ा। मुगल दरबार में भी जमकर बरसने लगा रंग। वहां फाग गाए जाने लगे, इस दौरान क्या राजा और क्या दरबारी। सब झूमते थे। इसके बाद उड़ता था अबीर-गुलाल। सभी एक दूसरे से गले मिलकर देते थे होली की मुबारकबाद।
होली का बड़ा महत्व था अकबर के दरबार में। होली बहुत धूमधाम से मनाई जाती थी। अकबर होली का आनंद लेते थे। अकबर के महल में सोने चांदी के बड़े-बड़े बर्तनों में केवड़े और केसर से युक्त टेसु का रंग घोला जाता था। शाम को महल में ठंडाई मिठाई पान इलायची का आयोजन होता था। कुछ इसी अंदाज में मनाया जाता था होली का त्योहार।
सन् 1193 में मोहम्मद गौरी द्वारा पृथ्वीराज चौहान को हराने के बाद देश में मुगलों की सत्ता स्थापित हो गई थी। इसके बाद शहरों से हिंदू त्योहारों की रौनक खत्म होने लगी। शहर में तो होली की औपचारिकता होने लगी, देहातों में ही हिंदू अपने त्योहार खुलकर मनाया करते थे। मुस्लिम साहित्यकार मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा लिखी पुस्तक के अनुसार उस समय गांवों में जरूर इतना गुलाल उड़ता था कि खेत भी गुलाल से लाल हो जाते थे।
जब मुगलिया सिंहासन पर बादशाह अकबर आसीन हुए तो हिंदू त्योहारों से प्रतिबंध हटा दिया। सभी लोग होली, दीपावली और दशहरा सहित सभी हिंदू त्योहार उत्साह पूर्वक मनाने लगे। जैसे ही फाल्गुन का महीना शुरू होता था, मस्ती का माहौल छा जाता। होली के गीतों पर चंग, ढोलक, मंजीरे, हारमोनियम पर लोग फाग गाते और मस्त होकर नाचते थे।
अकबर हिंदू त्योहारों को महत्व देते थे। इसका वर्णन आईन-ए- अकबरी में मिलता है। अकबर अपनी हिंदू रानी जोधाबाई के साथ होली खेलते थे। जहांगीर का नूरजहां के साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है। मुगल काल में होली के अवसर पर लाल किले के पीछे यमुना नदी के किनारे आम के बाग में होली का मेला लगता था।
होली के गीतों पर चंग, ढोलक ,मंजीरे, हारमोनियम पर लोग फाग गाते थे। शाहजहां के समय में भी होली का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता था। शाहजहां के शासनकाल में होली को ईद-ए- गुलाबी और आब-ए-पाशी (रंगों की बौछार) कहा जाता था।
डॉ. अंबेडकर विश्वविद्यालय के इतिहास एवं संस्कृति विभाग में वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. सुगम आनंद कहते हैं 18 वीं शताब्दी में दो प्रमुख चित्रकार निधामन और चतुरमल थे। उन्होंने बहादुर शाह जफर के पौत्र मोहम्मद रंगीला के होली खेलते हुए चित्र बनाए थे। जो इतिहास की धरोहर बन गए। वहीं डॉ. आनंद की मानें तो औरंगजेब के अलावा सभी मुगल शासकों के जमाने में होली, दीपावली और दशहरा त्योहार मनाए जाते थे।