क्या ही लिखूँ, मन भिनभिना गया है,कभी लगता है कि चुप ही रहूँ लेकिन फिर सोचता हूँ कि जिम्मेदारी से भागना भी धर्म नहीं है।
2 दिन से अपनी दुनियां, खुद को पूजा-पाठ, और लोगों को जागरूक करने में बिता रहे हैं, लेकिन अब सही में मन बौरा गया है। जब भी फेसबुक खोलो हिन्दू-मुसलमान, क्या चल रहा है समझ में नहीं आता, अरे जाहिल लोग कहाँ नहीं हैं? किस धर्म में नहीं है?? कोई मस्जिद में है कोई सड़क पर है इनको लॉकडौन से कोई मतलब नहीं क्योंकि इन्हें लगता है ये बेकार की फालतू बातें है लेकिन पॉजिटिव रिजल्ट सामने है की देश में संक्रमण दर बांकी देशों की अपेक्षा कम है।
लेकिन आज उम्मीद थी देश को की डॉक्टरों के स्थिति को स्पष्ट करते साहेब,PPE और जाँच किट की उपलब्धता पर बात करते साहेब,आगामी चुनौतियों पर और लड़ने के बचाव पर बात करते,गरीब की-किसान की-मजदूर की थाली पर बात करते साहेब, क्या स्थिति होगी इसके बाद उसे आप स्पष्ट करते तो देशवासी थोड़े आस्वस्त होते।
पर आपने कहा कि 5 अप्रैल को 9 बजे रात में 9 मिनट दीया-टॉर्च-फ़्लैश जलाने के लिये, देश डरा हुआ है लोग अभी रामायण में मिले बाल को पानी में डाल कर भी पी रहा है और अँगूठे में हल्दी भी लगा रहा है, डर का आलम ये है इसीलिए आप जो जो कह रहे हैं पूरी तन्मयता से पालन कर रहा है पर ये नाजायज है।
खैर हमारे पास विकल्प और उपाय भी दूसरा नहीं है देश मान ही लेगा लेकिन आपकी एक कमजोर क्षवि भी गढ़ लेगा दिमाग में । 14 अप्रैल तक लोग लॉकडौन का पालन जरूर कर लेंगे लेकिन उसके बाद लोग मरते रहेंगे अपना काम करते रहेंगे क्योंकि वो समझ चुके होंगे कि आपके पास कोई उपाय नहीं है।
रौशन झा, निष्पक्ष पत्रकारिता के लड़ाई में अभी-अभी कूदे हैं । लेखनी धारदार है क्योंकि समाज पर इनकी पैनी नज़र है । बिहार के सहरसा जिला के निवासी है । पत्रकारिता इनका शौक है पेशे से उद्यमी है ।