डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति थे। उन्हें 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा द्वारा सर्वसम्मति से आज़ाद भारत के पहले राष्ट्रपति चुने गए थे। 24 जनवरी 1950 को ही जन गण मन को राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया था। लेकिन 25 जनवरी की रात को ही राजेंद्र प्रसाद की बहन भगवती देवी का निधन हो गया था।
भगवती देवी व राजेंद्र प्रसाद में प्रगाढ़ स्नेह था। बहन की मृत्यु से राजेंद्र बाबू गहरे शोक में डूब गए। बेसुध होकर पूरी रात बहन के शव के निकट बैठे रहे। रात के आखिरी पहर में घर के सदस्यों ने उन्हें स्मरण कराया कि सुबह 26 जनवरी है। उन्हें राष्ट्रपति होने के नाते गणतंत्र दिवस परेड की सलामी लेने जाना होगा। इतना सुनकर उन्होंने तुरंत अपने आंसू पोंछे। सुबह वे सलामी के लिए परेड के सामने थे। भगवती देवी व राजेंद्र प्रसाद में प्रगाढ़ स्नेह था। बहन की मृत्यु से राजेंद्र बाबू गहरे शोक में डूब गए। बेसुध होकर पूरी रात बहन के शव के निकट बैठे रहे। रात के आखिरी पहर में घर के सदस्यों ने उन्हें स्मरण कराया कि सुबह 26 जनवरी है। उन्हें राष्ट्रपति होने के नाते गणतंत्र दिवस परेड की सलामी लेने जाना होगा। इतना सुनकर उन्होंने तुरंत अपने आंसू पोंछे। सुबह वे सलामी के लिए परेड के सामने थे।
भगवती देवी व राजेंद्र प्रसाद में प्रगाढ़ स्नेह था। बहन की मृत्यु से राजेंद्र बाबू गहरे शोक में डूब गए। बेसुध होकर पूरी रात बहन के शव के निकट बैठे रहे। रात के आखिरी पहर में घर के सदस्यों ने उन्हें स्मरण कराया कि सुबह 26 जनवरी है। उन्हें राष्ट्रपति होने के नाते गणतंत्र दिवस परेड की सलामी लेने जाना होगा। इतना सुनकर उन्होंने तुरंत अपने आंसू पोंछे। सुबह वे सलामी के लिए परेड के सामने थे।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने गणतंत्र दिवस के राजकीय समारोह में शिरकत की। वह घर लौटे। बहन की मृत देह के पास जाकर फफक कर रो पड़े। फिर, अंत्येष्टि के लिए अर्थी के साथ यमुना तट तक गए। वहां बहन का अंतिम संस्कार किया। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने गणतंत्र दिवस के राजकीय समारोह में शिरकत की। वह घर लौटे। बहन की मृत देह के पास जाकर फफक कर रो पड़े। फिर, अंत्येष्टि के लिए अर्थी के साथ यमुना तट तक गए। वहां बहन का अंतिम संस्कार किया।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने गणतंत्र दिवस के राजकीय समारोह में शिरकत की। वह घर लौटे। बहन की मृत देह के पास जाकर फफक कर रो पड़े। फिर, अंत्येष्टि के लिए अर्थी के साथ यमुना तट तक गए। वहां बहन का अंतिम संस्कार किया।
राजेंद्र प्रसाद ने कई मिसालें देश के सामने रखी थीं। उन्हें राष्ट्रपति के रूप में जितना वेतन मिलता था, उसका आधा वो राष्ट्रीय कोष में दान कर देते थे। वे 1952 और 1957 में लगातार 2 बार चुने गए, और यह उपलब्धि हासिल करने वाले भारत इकलौते राष्ट्रपति बने। राजेंद्र प्रसाद ने कई मिसालें देश के सामने रखी थीं। उन्हें राष्ट्रपति के रूप में जितना वेतन मिलता था, उसका आधा वो राष्ट्रीय कोष में दान कर देते थे। वे 1952 और 1957 में लगातार 2 बार चुने गए, और यह उपलब्धि हासिल करने वाले भारत इकलौते राष्ट्रपति बने।
राजेंद्र प्रसाद ने कई मिसालें देश के सामने रखी थीं। उन्हें राष्ट्रपति के रूप में जितना वेतन मिलता था, उसका आधा वो राष्ट्रीय कोष में दान कर देते थे। वे 1952 और 1957 में लगातार 2 बार चुने गए, और यह उपलब्धि हासिल करने वाले भारत इकलौते राष्ट्रपति बने।
राजेंद्र प्रसाद के तीन बेटे थे। आजादी में आने से पहले राजेंद्र प्रसाद बिहार के शीर्ष वकीलों में थे। पटना में बड़ा घर था। नौकर चाकर थे। उस जमाने में उनकी फीस भी कम नहीं थी। लेकिन गांधीजी के अनुरोध पर आजादी की लड़ाई में कूदे और फिर ताजिंदगी साधारण तरीके से जीते रहे। उनका निधन 1963 में पटना में हुआ। राजेंद्र प्रसाद के तीन बेटे थे। आजादी में आने से पहले राजेंद्र प्रसाद बिहार के शीर्ष वकीलों में थे। पटना में बड़ा घर था। नौकर चाकर थे। उस जमाने में उनकी फीस भी कम नहीं थी। लेकिन गांधीजी के अनुरोध पर आजादी की लड़ाई में कूदे और फिर ताजिंदगी साधारण तरीके से जीते रहे। उनका निधन 1963 में पटना में हुआ।
राजेंद्र प्रसाद के तीन बेटे थे। आजादी में आने से पहले राजेंद्र प्रसाद बिहार के शीर्ष वकीलों में थे। पटना में बड़ा घर था। नौकर चाकर थे। उस जमाने में उनकी फीस भी कम नहीं थी। लेकिन गांधीजी के अनुरोध पर आजादी की लड़ाई में कूदे और फिर ताजिंदगी साधारण तरीके से जीते रहे। उनका निधन 1963 में पटना में हुआ।
यहां तक कि राष्ट्रपति भवन में जाने के बाद भी उन्होंने वहां हमेशा सादगी को सर्वोपरी रखा। वह पहले राष्ट्रपति थे, जो जमीन पर आसन बिछाकर भोजन करते थे। उन्होंने राष्ट्रपति भवन में अंग्रेजी तौर-तरीकों को अपनाने से इनकार कर दिया था। यहां तक कि राष्ट्रपति भवन में जाने के बाद भी उन्होंने वहां हमेशा सादगी को सर्वोपरी रखा। वह पहले राष्ट्रपति थे, जो जमीन पर आसन बिछाकर भोजन करते थे। उन्होंने राष्ट्रपति भवन में अंग्रेजी तौर-तरीकों को अपनाने से इनकार कर दिया था।
यहां तक कि राष्ट्रपति भवन में जाने के बाद भी उन्होंने वहां हमेशा सादगी को सर्वोपरी रखा। वह पहले राष्ट्रपति थे, जो जमीन पर आसन बिछाकर भोजन करते थे। उन्होंने राष्ट्रपति भवन में अंग्रेजी तौर-तरीकों को अपनाने से इनकार कर दिया था।
उनके बड़े बेटे- डॉ. प्रसाद के परिवार से कोई उस तरह कभी राजनीति में नहीं रहा। डॉ. प्रसाद तीन बेटे थे। बड़े बेटे मृत्युंजय प्रसाद ने पटना स्थित जीवन बीमा निगम से संभागीय प्रबंधक के रूप में अवकाश प्राप्त किया। हां, 1977 में आपातकाल के बाद घोषित चुनाव में अवश्य वे जनता पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़े। वो चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे लेकिन जयप्रकाश नारायण के अनुरोध पर चुनाव में खड़े हुए जीते लेकिन इसके बाद फिर कभी सियासत में सक्रिय नहीं रहे। उनके बड़े बेटे- डॉ. प्रसाद के परिवार से कोई उस तरह कभी राजनीति में नहीं रहा। डॉ. प्रसाद तीन बेटे थे। बड़े बेटे मृत्युंजय प्रसाद ने पटना स्थित जीवन बीमा निगम से संभागीय प्रबंधक के रूप में अवकाश प्राप्त किया। हां, 1977 में आपातकाल के बाद घोषित चुनाव में अवश्य वे जनता पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़े। वो चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे लेकिन जयप्रकाश नारायण के अनुरोध पर चुनाव में खड़े हुए जीते लेकिन इसके बाद फिर कभी सियासत में सक्रिय नहीं रहे।
उनके बड़े बेटे- डॉ. प्रसाद के परिवार से कोई उस तरह कभी राजनीति में नहीं रहा। डॉ. प्रसाद तीन बेटे थे। बड़े बेटे मृत्युंजय प्रसाद ने पटना स्थित जीवन बीमा निगम से संभागीय प्रबंधक के रूप में अवकाश प्राप्त किया। हां, 1977 में आपातकाल के बाद घोषित चुनाव में अवश्य वे जनता पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़े। वो चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे लेकिन जयप्रकाश नारायण के अनुरोध पर चुनाव में खड़े हुए जीते लेकिन इसके बाद फिर कभी सियासत में सक्रिय नहीं रहे।
बाकी दो बेटे कहां रहे- दूसरे एवं तीसरे बेटे धनंजय प्रसाद व जनार्दन प्रसाद छपरा में लगभग उपेक्षित जिंदगी जीते रहे। थोड़ी-बहुत खेती बाड़ी और एक स्थानीय बस परमिट से आजीविका चलाते थे। राजेंद्र प्रसाद के परिवार तथा किसी भी रिश्तेदार ने उनके पद का लाभ नहीं उठाया। वह खुद नहीं चाहते थे कि उनका कोई नजदीकी रिश्तेदार भी राष्ट्रपति पद की गरिमा पर कोई आंच आने दे। बाकी दो बेटे कहां रहे- दूसरे एवं तीसरे बेटे धनंजय प्रसाद व जनार्दन प्रसाद छपरा में लगभग उपेक्षित जिंदगी जीते रहे। थोड़ी-बहुत खेती बाड़ी और एक स्थानीय बस परमिट से आजीविका चलाते थे। राजेंद्र प्रसाद के परिवार तथा किसी भी रिश्तेदार ने उनके पद का लाभ नहीं उठाया। वह खुद नहीं चाहते थे कि उनका कोई नजदीकी रिश्तेदार भी राष्ट्रपति पद की गरिमा पर कोई आंच आने दे।
बाकी दो बेटे कहां रहे- दूसरे एवं तीसरे बेटे धनंजय प्रसाद व जनार्दन प्रसाद छपरा में लगभग उपेक्षित जिंदगी जीते रहे। थोड़ी-बहुत खेती बाड़ी और एक स्थानीय बस परमिट से आजीविका चलाते थे। राजेंद्र प्रसाद के परिवार तथा किसी भी रिश्तेदार ने उनके पद का लाभ नहीं उठाया। वह खुद नहीं चाहते थे कि उनका कोई नजदीकी रिश्तेदार भी राष्ट्रपति पद की गरिमा पर कोई आंच आने दे।
डॉ राजेन्द्र प्रसाद की दो पोतियां झारखंड में रहती हैं। एक पोती जमशेदपुर और एक रांची में रहती है। एक पोती पटना में रहती है। रांची एवं जमशेदपुर में रहने वाली डॉ राजेन्द्र प्रसाद की पोतियां प्रचार से दूर रहती हैं। डॉ राजेन्द्र प्रसाद की दो पोतियां झारखंड में रहती हैं। एक पोती जमशेदपुर और एक रांची में रहती है। एक पोती पटना में रहती है। रांची एवं जमशेदपुर में रहने वाली डॉ राजेन्द्र प्रसाद की पोतियां प्रचार से दूर रहती हैं।
डॉ राजेन्द्र प्रसाद की दो पोतियां झारखंड में रहती हैं। एक पोती जमशेदपुर और एक रांची में रहती है। एक पोती पटना में रहती है। रांची एवं जमशेदपुर में रहने वाली डॉ राजेन्द्र प्रसाद की पोतियां प्रचार से दूर रहती हैं।
आखिरी दिन-उनके आखिरी दिन जिस तरह से बीते वो भी दुखद है। वह पटना के सदाकत आश्रम में रहते थे। वहां उनके ढंग से इलाज की व्यवस्था भी नहीं थी। एक राष्ट्रपति की आखिरी दिनों में ये हालत होगी, सोचा भी नहीं जा सकता। उन्होंने अपना सबकुछ तकरीबन देश को दिया। आखिरी दिन-उनके आखिरी दिन जिस तरह से बीते वो भी दुखद है। वह पटना के सदाकत आश्रम में रहते थे। वहां उनके ढंग से इलाज की व्यवस्था भी नहीं थी। एक राष्ट्रपति की आखिरी दिनों में ये हालत होगी, सोचा भी नहीं जा सकता। उन्होंने अपना सबकुछ तकरीबन देश को दिया।
आखिरी दिन-उनके आखिरी दिन जिस तरह से बीते वो भी दुखद है। वह पटना के सदाकत आश्रम में रहते थे। वहां उनके ढंग से इलाज की व्यवस्था भी नहीं थी। एक राष्ट्रपति की आखिरी दिनों में ये हालत होगी, सोचा भी नहीं जा सकता। उन्होंने अपना सबकुछ तकरीबन देश को दिया।