केंद्र की मोदी सरकार जल संकट को गंभीरता से लेने और इससे जुड़ी योजनाओं को प्रमुखता से लागू करने का दावा कर रही है. बीते जून महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के सभी सरपंचों को पत्र लिखकर पानी को संरक्षित करने की गुजारिश भी की थी.
लेकिन, केंद्र सरकार के ही कार्यालय वाले करीब 90 फीसदी भवनों में जल संरक्षण के लिए लगाया जाने वाला रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं है. द वायर द्वारा आरटीआई के तहत केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) के करीब 100 से ज्यादा विभागों से प्राप्त किए गए दस्तावेज से ये जानकारी सामने आई है.
केंद्र सरकार से जुड़े भवनों का निर्माण और इसकी देखरेख सीपीडब्ल्यूडी ही करता है. प्राप्त जानकारी के मुताबिक सीपीडब्ल्यूडी के तहत देश भर में कुल 1367 भवन हैं, जिसमें केंद्र सरकार से जुड़े विभागों के कार्यालय हैं. इसमें से लगभग 150 भवनों में ही रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए गए हैं.
यहां तक कि दिल्ली के उस निर्माण भवन में भी रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं है, जिसमें सीपीडब्ल्यूडी का ऑफिस है.
इसके अलावा नई दिल्ली स्थित भारत सरकार के कई हाई-प्रोफाइल भवन जैसे कि लोक नायक भवन, आईपी भवन, शास्त्री भवन, कृषि भवन, निर्वाचन सदन, नीति आयोग, जनपथ भवन, ट्रांसपोर्ट भवन, जामनगर हाउस, 25 अकबर रोड, विज्ञान भवन, जवाहरलाल नेहरू भवन, जयपुर हाउस, सेवा भवन जैसे कई बड़े बिल्डिंग्स में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं है.
सीपीडब्ल्यूडी का दावा है कि इन जगहों पर भूजल स्तर आठ मीटर या इससे कम पर है इसलिए यहां पर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की जरूरत नहीं है. हालांकि केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) के आंकड़े दर्शाते हैं कि नई दिल्ली क्षेत्र, जहां केंद्र की अधिकतर कार्यालयों के भवन हैं, में भूजल आठ मीटर और इससे अधिक की गहराई पर है.
सीजीडब्ल्यूडी के आंकड़ों के मुताबिक नई दिल्ली में साल 2018 के जनवरी-मार्च में भूजल 9.75 मीटर, अप्रैल-जून में 11.36 मीटर, जुलाई-सितंबर में 10.27 मीटर और अक्टूबर-दिसंबर में 10.67 मीटर पर भूजल था.
केंद्र द्वारा बनाए गए मॉडल बिल्डिंग बाई लॉज, 2016 के तहत भी 100 स्क्वायर मीटर से अधिक क्षेत्र के सभी भवनों पर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना अनिवार्य है.
केंद्रीय लोक निर्माण विभाग से प्राप्त जानकारी से यह भी पता चलता है कि सीपीडब्ल्यूडी के पास इस बात की जानकारी नहीं है कि डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल, सफदरजंग अस्पताल, सुचेता कृपलानी अस्पताल, रिंग रोड, जैसी जगहों पर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम है या नहीं.
वहीं, नॉर्थ ब्लॉक में एक, साउथ ब्लॉक में एक, प्रधानमंत्री कार्यालय में एक, हैदराबाद हाउस में एक, वायु भवन में एक, उद्योग भवन में एक, श्रम शक्ति भवन में एक-एक रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए गए हैं.
शहरी विकास पर संसदीय समिति ने साल 2015 में पेश अपनी रिपोर्ट में सिफारिश किया था कि केंद्र सरकार के सभी कार्यालय और रिहायशी भवनों पर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया जाना चाहिए. समिति ने यह भी कहा था कि इससे संबंधित अपडेटेड आंकड़ा तैयार किया जाए. इससे पहले 2013 में जारी रिपोर्ट में भी समिति ने यही सिफारिश की थी.
हालांकि इसके बावजूद अभी तक सभी जगहों पर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगाया गया है. समिति ने बार-बार सिफारिश के बाद भी केंद्र के भवनों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम न लगाने पर गहरी चिंता जताई थी.
सीपीडब्ल्यूडी के पीएंडडब्ल्यूए विभाग ने द वायर को बताया, ‘ऐसे कई सारी जगहें हैं जहां पर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन अभी इसकी प्रक्रिया चल रही है. कुछ जगहों पर जलस्तर ऊपर है, इसलिए वहां इस सिस्टम को नहीं लगाया जा सकता है.’
नीति आयोग के अनुसार, रेन वॉटर हार्वेस्टिंग को जल संरक्षण और भूजल को रिचार्ज करने का एक सरल, व्यवहारिक और पर्यावरण के अनुकूल तरीका माना जाता है.
शहरी विकास मंत्रालय के मुताबिक प्रति 100 स्क्वायर मीटर क्षेत्र की छत से हर साल 55,000 लीटर तक जल का संरक्षण किया जा सकता है.
केंद्र के रिहायशी भवनों की क्या है स्थिति
केंद्र सरकार के कार्यालयों की तरह ही ज्यादातर रिहायशी भवनों या कॉलोनियों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं है. आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी के मुताबिक दिल्ली के नॉर्थ एवेन्यू में सांसदों के लिए बने 64 बंगलों में एक भी रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगाया गया है.
वहीं साउथ एवेन्यू में सांसदों के 34 बंगलों में सिर्फ दो में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए गए हैं. इसमें से एक सिस्टम एसजे लेन, नई दिल्ली में स्थित बंगले में लगाया गया है, वहीं दूसरा 20 अकबर रोड के बंगले में लगाया गया है.
इसके अलावा नॉर्थ एवेन्यू के 164 एमपी फ्लैट्स और साउथ एवेन्यू के 196 एमपी फ्लैट्स में एक भी रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगाया गया है.
प्राप्त जानकारी के मुताबिक इस समय देश भर में सीपीडब्ल्यूडी के तहत कुल 1,01,057 क्वार्टर हैं. इसमें से 66,007 क्वार्टर दिल्ली में ही हैं. ये सभी क्वार्टर कुल 70 लाख स्क्वायर मीटर (70,83,168) क्षेत्र में फैले हुए हैं.
हालांकि सीपीडब्ल्यूडी कॉलोनी/बिल्डिंग-वार रिहायशी भवनों की जानकारी नहीं दे सका. संसदीय समिति की सिफारिश के बाद साल 2014 में विभाग ने कुछ जानकारी इकट्ठा की थी, लेकिन ये काफी अधूरी है. इस रिपोर्ट के मुताबिक उस समय तक कुल 313 रेजिडेंशियल कॉलोनी/कैंपस थे.
सीपीडब्ल्यूडी ने हाल ही में दिल्ली की 100 रिहायशी कॉलोनियों में 100 दिन के भीतर रेनवॉटर हार्वेस्टिंग लगाने के लिए एक समिति बनाई है. इस समिति का काम है कि इस दिशा में प्रभावी तरीके से काम कराया जाए.
पर्यावरण कार्यकर्ता और 2013 में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने को लेकर एनजीटी में याचिका दायर करने वाले विक्रांत तोंगड़ ने कहा कि जल संरक्षण को लेकर सरकारी एजेंसियों में गंभीरता और इच्छाशक्ति में कमी है.
उन्होंने कहा, ‘एक तो अधिकतर जगहों पर ये सिस्टम लगा ही नहीं है. जहां कहीं लगा भी है, वहां ये सही से काम नहीं कर रहा है. रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को मानसून से पहले और मानसून के बाद साफ करना होता है, ताकि पानी आसानी से नीचे जा सके. लेकिन हकीकत ये है कि साफ-सफाई नहीं होने की वजह से सिस्टम में कूड़ा करकट भरा रहता है.’
उन्होंने कहा कि कोई भी एजेंसी ऐसी नहीं है जो सही तरीके से आंकड़ा तैयार करती हो कि रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने के बाद से उस क्षेत्र में पानी का स्तर कितना बढ़ा है.
अन्य प्रमुख भवन जहां रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं है
इंडिया गेट के करीब केजी मार्ग स्थित एमएस अपार्टमेंट, पंडारा रोड पर जोधपुर हॉस्टल, केजी मार्ग पर एशिया हाउस बिल्डिंग, कॉपरनिकस मार्ग पर पीपी हॉस्टल, तिमारपुर रेजिडेंशियल कॉम्प्लेक्स, सांसद निवास आईएनए, रेसिडेंशियल क्वार्टर वसंत विहार, जीपीआरए कॉम्प्लेक्स फरीदाबाद जैसे आवासीय भवनों पर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं है.
इसके अलावा त्रिकूट भवन, मौसम भवन, नई कैग बिल्डिंग, सुप्रीम कोर्ट मेन बिल्डिंग, विद्युत भवन, एलएचमसी हॉस्पिटल, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, एमसीआई बिल्डिंग, बाल सहयोग भवन, जवाहरलाल नेहरू भवन, जयपुर हाउस जैसे कार्यालय भवनों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं है.
दिल्ली के अलावा गाजियाबाद, फरीदाबाद, चंडीगढ़, जम्मू, शिमला, लखनऊ, उदयपुर, कोलकाता, मुंबई, राजकोट, वडोदरा, भोपाल, इंदौर, नागपुर, पुणे, गोवा, चेन्नई, हैदराबाद, मैसूर, कोच्चि में भी केंद्र के कई प्रमुख भवनों में वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं है.
साल 2018 के जून महीने में केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा मई 2000 से मई 2017 तक में दिल्ली के भूजल स्तर की स्थिति पर पेश एक रिपोर्ट पर गहरी चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली वॉटर वॉर्स (पानी की जंग) की तरफ बढ़ रही है.
सीपीडब्ल्यूबी की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के अधिकतर हिस्सों में जलस्तर सालाना 0.5 से 2 मीटर की रफ्तार से घट रहा है. दिल्ली के कुछ हिस्सों को छोड़कर ज्यादातर क्षेत्र गंभीर और अर्ध गंभीर की श्रेणी में हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, साल 2000 में दिल्ली के 27 फीसदी (लगभग 1,500 वर्ग किलोमीटर) में वॉटर टेबल यानी कि जलस्तर 0-5 मीटर की गहराई पर था, लेकिन पिछले 17 साल में यह क्षेत्र घटकर सिर्फ 11 फीसदी रह गया है. शहर के बाकी हिस्सों को अब पानी खोजने के लिए गहरी खुदाई करनी होगी. वहीं, दिल्ली के 15फीसदी हिस्से में, भूजल 40-80 मीटर की गहराई पर पाया जाता है.
साभार – द वायर हिन्दी