सीपीआई माओवादी ने स्वीकार किया है कि उनकी केंद्रीय कमेटी के सदस्य और दंडकारण्य स्पेशल ज़ोनल कमेटी के सचिव रामन्ना उर्फ़ रावला श्रीनिवास की मौत हो गई है।
माओवादी प्रवक्ता विकल्प ने बीबीसी को भेजे एक रिकॉर्डेड बयान में कहा है कि शनिवार को गंभीर बीमारी के बाद तेलंगाना और छत्तीसगढ़ की सीमा पर उनके इस नेता की मौत हो गई।
माओवादी प्रवक्ता ने अपने बयान में रामन्ना के निधन को बड़ी क्षति बताया है।
रामन्ना पर सवा करोड़ रुपये से अधिक का ईनाम था।
पुलिस के अनुसार रामन्ना पर महाराष्ट्र सरकार ने 60 लाख रुपये, छत्तीसगढ़ ने 40 लाख रुपये, तेलंगाना ने 25 लाख रुपये और झारखंड सरकार ने 12 लाख रुपये का ईनाम घोषित किया था।
इससे पहले बस्तर के आईजी सुंदरराज पी ने कहा था कि अलग-अलग स्रोतों से रामन्ना की मौत की ख़बर आ रही है लेकिन इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती।
पहली मिलिट्री दलम की कमान
तेलंगाना के वारंगल ज़िले के बेकाल गांव के रहने वाले रामन्ना ने 1983 में माओवादी संगठन में प्रवेश किया और गांव के संगठन से लेकर सेंट्रल कमेटी तक में काम किया।
सैन्य कार्रवाइयों के योजनाकार के तौर पर रामन्ना की संगठन में खास पहचान थी।
36 सालों तक संगठन में अलग-अलग पदों पर काम करने वाले इस नाटे कद के चश्मा लगाने वाले माओवादी नेता को माओवादियों की पहली मिलिट्री दलम की कमान भी सौंपी गई थी। इसके बाद 2013 में रामन्ना को 2013 में दंडकारण्य स्पेशल ज़ोनल कमेटी का सचिव बनाया गया था।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बीबीसी से बातचीत में कहा, “माओवादी संगठन में शामिल होने के दो साल के भीतर रामन्ना को भद्राचलम दलम का डिप्टी कमांडर बना दिया गया और 1998 में रामन्ना को दक्षिण बस्तर डिवीजनल कमेटी का सचिव बनाया गया। अप्रैल 2013 में दंडकारण्य ज़ोनल सचिव बनाया गया और उसी दौरान माओवादियों की सेंट्रल कमेटी में भी रामन्ना का प्रवेश हुआ।”
1994 में रामन्ना ने संगठन की ही सदस्य सोढ़ी हिड़मे उर्फ़ सावित्री से विवाह किया। रामन्ना के बेटे रंजीत के भी माओवादी संगठन में ही सक्रिय होने की ख़बर है।
क्या थे आरोप?
पिछले 30 सालों में भारत में माओवादियों के जितने भी बड़े हमले हुये हैं, उनमें से अधिकांश के पीछे रामन्ना का हाथ बताया जाता रहा है।
रामन्ना के ख़िलाफ़ अलग-अलग राज्यों में 50 से भी अधिक गंभीर मामले दर्ज़ हैं। अकेले बस्तर में रामन्ना पर लगभग तीन दर्जन मामले दर्ज़ हैं।
छोटी हिंसक कार्रवाइयों में रामन्ना का नाम 1983 से ही सामने आता रहा है, लेकिन सुकमा ज़िले के लिगनपल्ली में 4 जून 1992 को हुये हमले के रणनीतिकार के तौर पर पहली बार रामन्ना का नाम राज्य भर में चर्चा में आया। इस हमले में 18 पुलिसकर्मी मारे गये थे।
इसके बाद 9 जुलाई 2007 को एर्राबोर में हुये माओवादी हमले का भी ज़िम्मेवार रामन्ना को बताया गया, जिसमें 23 जवानों की मौत हुई थी।
पुलिस के अनुसार तीन साल बाद 6 अप्रैल 2010 को सुकमा ज़िले के ताड़मेटला में सुबह-सुबह माओवादियों ने रामन्ना के नेतृत्व में पुलिस कैंप पर हमला किया, जिसमें सुरक्षाबलों के 76 जवान मारे गये थे।
सुकमा ज़िले के ही केरलापाल से 21 अप्रैल 2012 को ज़िले के कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन के अपहरण में भी रामन्ना का नाम सामने आया था। पुलिस का दावा है कि इसी साल एक दिसंबर को कसालपाड़ में रामन्ना के नेतृत्व में सुरक्षाबलों पर हमला किया गया, जिसमें 14 जवान मारे गये।
25 मई 2013 को झीरम घाटी में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं सहित 28 लोगों के मारे जाने की घटना में भी रामन्ना के मिलिट्री दलम को प्रमुख नेतृत्वकर्ता बताया गया था। हालांकि इस घटना के पांच महीने बाद रामन्ना ने बीबीसी को भेजे अपने एक बयान में कहा था कि इस हमले में तत्कालीन कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष नंद कुमार पटेल और उनके बेटे दिनेश पटेल की हत्या जल्दबाज़ी में लिया गया, ग़लत निर्णय था।
साभार – आलोक प्रकाश पुतुल, रायपुर से बीबीसी हिंदी के लिए