सीटी बड़े कमाल की चीज है। इसके बजने का मतलब ही कुछ खास है। रेल की सीटी बजने का अर्थ है नया सफर शुरू होना और रेल की लंबी सीटी का मायना है विराम या सफर समापन। एक प्यारी-सी सीटी रोते हुए बच्चे को हंसा सकती है। और एक प्रेम भरी सीटी का संवाद किसी युवक-युवती को जीवनभर का साथी बना सकती हैं। सीटी मस्ती और उल्लास में ही नहीं निकली, मौन और शांत मन की भी संगीतमय अभिव्यक्ति बन जाती है और मुड खराब होने पर धीमी-धीमी सीटी मन की चट्टान में एक गुल खिला सकती है।
सच तो यह है कि सीटी आदमी के संप्रेक्षण का पहला और सबसे आदिम रूप है। पशु-पक्षियों की आवाज से प्रेरित होकर आदिम मानव ने सीटी ईजाद की और अपने दूरस्थ साथियों को पास बुलाने या अपनी मौजूद्गी का संकेत करने के लिए इसी सीटी का सहारा लिया। सीटी यानी एक खास ध्वनि, एक खास काम के लिए। यह कूट भाषा की तरह कूट ध्वनि है लेकिन विशेष संदर्भ में। वरना ध्वनिक तो नहीं, बादल,पेड़, पवा, आग सबमें होती है, लेकिन इनसे अर्थ विशेष की अभिव्यक्ति नहीं होती। अब आदिमानव को कुछ तो संकेत चाहिए था। भाषा तब तक बनी न थी, सो सदियों तक सीटी ही संकेत रही, भाषा भी और संप्रेक्षण शक्ति भी।
आज भी सीटी की संप्रेक्षण शक्ति बेजोड़ है। पुलिस की सीटी बजते ही जमा भीड़ बिखर जाती है और बिगड़ा टैàफिक सुधर जाता है। कुकर की सीटी का मतलब गृहिणियों से ज्यादा कौन समझ सकता है। जो कुकर को गैस पर चढ़ाकर काम में मशगूल हो जाएं पर उनके कान सीटी पर ही लगे रहते हैं। कारखानों के भोंगे, दूधवाले का भोंपू और एंबुलेंस या फयर ब्रिगेड का सायरन वास्तव में सीटी के ही नाना रूप है, जो हमारे जीवन का अहम हिस्सा रहे हैं या हैं। स्कूल में पीटी शिक्षक की सीटी हो या मार्च के लिए तैयार हुआ सुरक्षा दल के प्रभारी की सीटी, इन दोनों के बजने का अर्थ है कदम ताल की शुरूआत।
प्रेमियों में सीटी ने खूब गुल खिलाएं। हिंदी फिल्मों की नायिका को आखिर नायक से कहना पड़ा – शाम ढले, खिड़की तले तुम सीटी बजाना छोड़ दो। ये अलबेला फिल्म का दौर था। फिर राजकपूर ने सीटी को गम का इलाज करार दिया। जब गम सताए सीटी बजाना, पर मसखरे से दिन ना लगाना। तब गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है से होते हुए फिल्मी सीटी – जब लाइफ हो आउट आफ कंट्रोल, सीटी बजा के बोल- आल इज वेल तक आ गई। गमगीन राजेश खन्ना की लंबी सीटी तो स्क्रीन पर खूब बजी है और कांच का दरवजा तोड़कर विलेन के अड्डे पर अमिताभ के पहुंचने पर सिनेमा हॉल में बने वाली सीटियां लोग भूले नहीं है।
मेरे बचपन में दोस्त दो अंगुलियां मुंह में डाल सीटी बजाते थे। मैं आज तक न सीख पाया, इसका मुझे सदा अफसोस रहा। हां, बहुत अभ्यास के बाद मैंने होंठो को गोल कर सीटी बजाना सीख लिया है औरखुश हूं कि इससे मैं रूठे बच्चों को पलभर में हंसा सकता हूं। गम में तो सीटी बजाता ही हूं और जब भी बजाता हूं मन से आवाज आती है – जब तक सीटी है, आल इज वेल है, क्योंकि सीटी भीतर का संगीत है। इसके बजने का इतना ही अर्थ है कि हमारा वजूद जो भी, जैसे भी हालात हैं,उनसे बेखबर मस्ती ही है। वह अस्तित्व के संगीत के साथ एकाकार हो गया है और अपने अस्तित्व के संगीत को उस महासंगीत से जोड़ रहा है। सीटी केवल ध्वनि ही नहीं, सुर में बजे तो संगीत है। तो मारो एक दमदार सीटी।