देश में 130 करोड़ लोग हैं और उनके साथ उनकी ईश्वरप्रदत्त जिह्वा है जो कुछ भी कहने के लिए स्वतंत्र है । सामान्य तौर पर अतिवृष्टि जैसी विपदा में घर का मुखिया आफत अनुभव करता है तो बच्चे पानी में उछलकूद मचाकर आनंदित होते हैं । कहने का तात्पर्य ये है कि किसी एक परिवार के अंदर ही सबकी प्रतिक्रिया अलग-अलग होती है ।
हर लोग किसी न किसी रूप में क्रियाशील है । सौरभ अनुराग और अदिति ने जो कुछ भी किया है मैं उसकी आलोचना का पक्षधर नहीं हो सकता हूँ और उसकी आलोचना होनी भी नहीं चाहिए । इस बारिश-बाढ़ में भी सब्जी वाला अपनी सब्जियों को बेचता है, अखबार वाला अखबार बेचता है, पत्रकार घूम-घूमकर रीपोर्टिंग करते हैं । गैसवाला, दूधवाला, डॉक्टर, ऑफिसर, कर्मचारी सभी अपने-अपने रोजगार में लिप्त हैं फिर सौरभ अनुराग और अदिति भी तो पेशेवर फोटोग्राफर व मॉडल हैं, वो अपना रोजगार क्यों न करें । उनकी रचनात्मकता की आलोचना करनेवाले हम और आप कौन होते हैं । बाढ़ की ओर देश-दुनियाँ का ध्यान आकृष्ट कराना इस फोटोशूट के पीछे उन्होंने अपना मकसद जताया है । फिर क्या गलत किया है उनलोगों ने..?? सिर्फ फोटोशूट ही तो किया है, पटना की सड़कों पर कोई पोर्नशूट तो नहीं किया न..!!
सिर्फ रोते-बिलखते चेहरे, भय, भूखमरी, गरीबी, फटेहाली, गंदे नाले, पीड़ितों व लाशों के चेहरे दिखाना ही रचनात्मकता है क्या..?? यहाँ की गरीबी और भूखमरे लोगों की तस्वीरें खींचने के लिए कैप्री-बरमूडा धारण किए हुए विदेशी फोटोग्राफर बिहार आते हैं और अपने मैगजीन-समाचारपत्रों में ‘पूअर इंडिया’ की तस्वीर छापकर अवार्ड झटक लेते हैं । आपके इन्हीं चाहतों की वजह से देश-विदेश हमें भूखे, नंगे और अकर्मण्य राज्य के रूप में देखता है । ऐसे फोटोग्राफ देखने से आपकी आत्मा तृप्त होती होगी, मेरा मन तो कभी ऐसी चीजों को देखना नहीं चाहेगा।
इस विपदा में कई विधानसभा सीट के उपचुनाव की घोषणा हो चुकी है । राजनैतिक पार्टियों के चमचे-बेलचों ने अपने चमचाधर्म का पालन करते हुए अपने शुभेच्छु कैंडिडेट के पक्ष में राग-दरबारी गाना शुरू कर दिया है । ऐसी आपदा की घड़ी में उन उम्मीदवारों का सहृदयतापूर्वक हमारा वोट मांगना जायज जान पड़ता है क्या ? क्या यही अनुकूल समय है उनके वोट मांगने का या उनके नाम का नगाड़ा पीटने का..?? क्या ऐसे लोगों की आलोचना नहीं होनी चाहिए..??
मेरी तो ऐसी मान्यता है कि जो ‘कुछ भी’ नहीं करते वो इस विपदा की घड़ी में सिर्फ लोगों की आलोचना करते हैं । क्या घर बैठै सोशल मीडिया पर रोने-धोने और बनावटी संवेदना दिखाने से बिहारवासियों की पीड़ा कम हो जाएगी..?? मैं स्वयं अतिवृष्टि की पीड़ा झेल रहा हूँ । इन आपदापीड़ितों के लिए कुछ भी नहीं कर सकता तो कम से कम ऐसे लोगों की आलोचना भी नहीं करूँगा ।
जय बिहार – जय भारत
यह आलेख बिहार के मशहूर फोटोग्राफरों में शुमार बिपिन कुमार सिंह के वाल से लिया गया है और इसे बिना किसी कांट-छांट के सीधे चस्पा कर दिया गया है ।