सभ्य कहे जाने वाले मैथिल समाज में जहाँ की मीठी बोली और चवनिया मुस्कान विश्व प्रसिद्ध है । वहीं इस समाज में पिछले कुछ दिनों से गाली गलौज की प्रवृति बढ़ती जा रही हैं । चाहे वह उषाकिरण खान जैसे प्रतिष्ठित लेखिका के विषय में हो, कुमुद सिंह जैसी तेज-तर्रार पत्रकार के बारे में हो, अथवा बालमुकुन्द जैसे युवा कवि के विषय में । इन सब मामलों में एक समानता है कि शांत से दिखने वाले मैथिल एकाएक से उग्र हो गए हैं, और उन्होंने उन सभी सीमाओं को लाँध दिया है जिसके बारे लिखना शब्दों के साथ ब्लात्कार करना होगा ।
ताजा मामला बालमुकुन्द का है, बालमुकुन्द एक युवा कवि और आलोचक है, तथा मैथिली की प्रतिष्ठित संस्था चेतना समिति के सदस्य भी है । पिछले दिनों चेतना समिति के ही एक अन्य सदस्य विवेकानंद ठाकुर ने इन्हे फोन कर वह सभ कुछ कहा जिसके लिये एक सभ्य मैथिल समाज कभी इजाजत नहीं देगा ।
बालमुकुन्द उस वार्तालाप का ऑडियो फेसबुक पर साझा करते हुए लिखते हैं,
‘सामाजिक जीवन में विगत कुछ वर्षों से अपनी सक्रियता में बहुत तरह की स्थिति-परिस्थिती से आमना सामना होता आ रहा हुँ। अपने प्रवृति के अनुसार सक्रियता इस वर्ष में भी स्थिति-परिस्थिति पर अपन सहमति-असहमति स्पष्ट रूप सँ सार्वजनिक करता आया हूँ । ऐसी स्थिति में कई बार लोग हमारे विचार से क्रुद्ध होते रहे हैं, हमसे बातचीत खत्म कर ले रहे हैं। लेकिन ये मेरा सौभाग्य है कि वैसे सभी व्यक्ति से सम्बन्ध, बाद में पुर्ववत हो गया है । लोगों ने हमारी मन की बात समझ ली है , कि विरोध-असहमति विचार, क्रियाकलाप से होता है व्यक्ति से नहीं। लेकिन हमारे लिये उपस्थित वर्तमान स्थिति एकदम इसके उलट है। रात भर जागने रहने के बाद अत्यंत गुससा, हताशा, निराशा में ये प्रसंग हम आप लोगों के समक्ष रख रहे हैं – पिछले 8 सितम्बर, 2019 को चेतना समिति के व्हाट्सएप समूह में, समिति के पूर्व सचिव और वर्तमान कार्यकारिणी सदस्य विवेकानन्द ठाकुर द्वारा बिना किसी कैप्शनक, बिना कुछ विवरण के एक फ़ोटो पोस्ट किया गया, जो कहीं से भी समूह के कयदा-कानून के अंतर्गत नहीं था । इसपर हम इरिटेट होकर एक स्माइली पोस्ट कर दिया । जिसके प्रतिउत्तर में कल साँझ में समितिक भवन से सुभद्र ठाकुर के मोबाइल नम्बर सँ एक कॉल आया । कॉल पर दुसरे तरफ विवेकानंद ठाकुर थे । उन्होने मेरे साथ बहुत अभद्र, अश्लील और नीच भाषा में बात की । एक बार को मेरा भी मन किया कि उनको उत्तर दें । लेकिन उनके भाषा, लहजा और तेवर देखकर हम आश्चर्यचकित थे । कोई शिक्षित (?) व्यक्ति कैसे इस तरह की भाषा में बात कर सकता है । । मैं सुनता रहा । इस तरह की भाषा में गप्प करने का नो तो मेरा संस्कार था, न ही मेरे भीतर का इंसान इस बात की इजाजत देता था । भाषा में इतना नीचा मैं नहीं उतर सकता था । हमने कॉल रिकॉर्डिंग ऑन कर लिया । श्रीमान मुझे माँ बहन की गालियाँ देते रहें । जान से मार देने की बात कहते रहे । आदि-आदि। इतना की वो सब मैं नहीं कह सकता । इतना कहने की मेरी सीमा नहीं है । इसलिये यह रिकॉडिंग यहाँ दे रहा हुँ ।
उनके इस पोस्ट पर मैथिली के कई आकाओं का कमेंट आता है । कई युवा विवेकानंद ठाकुर को उनकी औकात बताने की बात करते हैं । कुछ सलाह होता है, और बांकि सब धमकी । इसी बीच व्हाट्सएप और फेसबुक पर एक कैंपेनिंग चलती हैं जिसमें विवेकानंद ठाकुर को हमें अर्थात मैथिलों कों माँ बहन की गाली देने के लिये धन्यवाद कहा जाने लगा है । प्रतिक्रिया स्वरूप एक माफीनामा भी दौड़ता है । जिसे आधे लोग सच और आधे झुठ मानते हैं ।
इस पोस्ट के बाद जब हमारी टीम ने विवेकानंद ठाकुर से बात की तो उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि,
‘बालमुकुन्द के क्रियाकलाप को लेकर हमने शुरू में भी उनको अच्छे से कहा था, कि ऐसा मत लिखा कीजिये । उन्होंने साहित्य अकादमी में मेरे ज्युरी बनने को लेकर भी बहुत सवाल उठाया था, हमने कई बार उनको प्रेम से समझाया भी था । लेकिन फिर भी मैं एक ही लाइन में कहना चाहुँगा कि वो भावावेष में हुआ एक गलत चीज था । और उसके लिये मैं हृदय से खेद भी प्रकट कर चुका हूँ। सार्वजनिक रूप से हमने इसके लिये क्षमा मांगी है । इंसान कभी कभी मनोवैज्ञानिक रूप से समय के वशीभूत होकर यह सब कर जाता है । बालमुकुंद मेरे बेटे के समान है, और उनके लिये मेरे मन में कभी कोई ऐसा विचार नहीं आ सकता है। हमने कहा भी कि माँ बाप अगर गाली देता है तो उसे आशिर्वाद के रूप में ही लेना चाहिये । मैं फिर भी अफसोस करता हूँ कि मुझसे क्यों ये गलती हो गई, हम क्यों भावावेष में इतने बह गए । चेतना समिति के एक्शन पर उन्होने कहा कि यह निहायती व्यक्तिगत मामला है । इसका किसी संस्था से कोई लेना देना नही है । यह एक बाप और बेटे के बीच का मसला है इसे व्यक्तिगत ही रहने दें । हाँ कुछ लोग जरूर है जो इसमें चेतना समिति का नाम लाकर उसे बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं और इसे राजनीतिक रूप देकर अपनी रोटी सेंकना चाह रहे हैं ।‘
ज्ञात हो कि इससे पुर्व भी मैथिलों ने बिहार की तेजतर्रार पत्रकार कुमुद सिंह को लेकर ऐसे ही अपशब्दों का प्रयोग किया था । मैथिली की वरिष्ठ साहित्यकार उषाकिरण खान भी चेतना समिति के कुछ स्वध्नमान्य मठाधीशों के वजह से प्रताडि़त हुई थी । ऐसे में हम बस इतना ही कह सकते हैं । कि विद्यापति की वह पंक्ति, ‘सहज बोल मुस्की मुस्कान’ कहीं न कहीं गुम हो रही है ।