आज राजद सबसे खराब दौर से गुजर रहा है। पार्टी में न नेता का हनक है और न संगठन की खनक। अहीर भरोसे चल रही है पार्टी। फिलहाल पार्टी और संगठन में तेजस्वी यादव की भूमिका भैंस की चरवाही के समान हो गयी है। जब मन आया हांक दिया या फिर पेड़ के नीचे गमछा बिछा कर सो गये। न भैंस भागने वाली है और न चरवाहा दौड़ने वाला है। लोकसभा चुनाव के बाद राजद कुछ इसी दौर से गुजर रहा है।
एक करेला आप, ऊपर नीम चढ़ी। तेजस्वी यादव पार्टी संगठन को ठीक से सहेज भी नहीं पा रहे हैं कि सहयोगी अलग राग अलाप रहे हैं। सहयोगियों का हर दिन राग-विलाप अलग-अलग। सहयोगी पार्टियों के प्रेस वार्ता में हर बार यही सवाल उठता है कि महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव हैं या नहीं। यह सवाल तेजस्वी की स्थिति को और खराब करता है। यह निर्विवाद है कि तेजस्वी का आधार वोट यादव और मुसलमान है। ये दोनों जातियां राजद के नेता के रूप में तेजस्वी को स्वीकार कर चुकी हैं। मान भी रही हैं। लेकिन सहयोगी हर बार तेजस्वी के नेतृत्व को सवाल के कठघरे में खड़ा कर देते हैं। इसका असर तेजस्वी के आधार वोट पर पड़ रहा है और वह भी तेजस्वी की योग्यता पर सवाल उठाने लगा है।
तेजस्वी यादव के लिए सबसे बड़ा खतरा उसके सहयोगी ही बन रहे हैं और तेजस्वी के आधार को ही खोखला कर रहे हैं। राजद के आधार वोट के युवा नेता राजद के साथ उसके सहयोगी कांग्रेस, वीआईपी, हम और रालोसपा को भी अपना विकल्प चुन रहे हैं। उनके पास तर्क होता है कि राजद की सहयोगी पार्टी ही है। राजद की सहयोगी पार्टी होने का खामियाजा राजद को भुगतना पड़ रहा है। राजद के प्रति प्रतिबद्ध युवक सहयोगी के नाम पर पड़ोस में संभावना तलाश रहा है। इससे आधार वोट में संशय पैदा हो रहा है और व्यापक रूप से राजद के कमजोर होने का संकेत भी जा रहा है।
पिछले लोकसभा चुनाव में स्पष्ट हो गया है कि राजद की सहयोगी पार्टियां या नेता अपने ही जातीय वोटों को नहीं समेट पा रहे हैं। इन नेताओं का नुकसान राजद को उठाना पड़ रहा है। सीट शेयरिंग, टिकट बंटवारे से लेकर उम्मीदवार के चयन तक में ये नेता राजद के गले की हड्डी बन जाते हैं। टिकट सभी पार्टियां बेचती हैं और दोष राजद पर मढ़ दिया जाता है।
दरअसल राजद के जीर्णोद्धार का वक्त आ गया है। तेजस्वी यादव के पारिवारिक प्रतियोगी राजनीतिक पहिया में मिट्टी के समान हैं, जो दो-चार पानी के बाद धुल जाएंगे। तेजस्वी को सहयोगियों से भी पिंड छुड़ा लेना चाहिए। अकेले दम पर चुनाव लड़ना चाहिए। क्योंकि कांग्रेस, वीआईपी, हम या रालोसपा के नेता के पास न वोट है, न वोट शिफ्ट करने की क्षमता। तेजस्वी यादव के पास वोट है और उनका आधार वोट शिफ्ट हो जाने में भी सक्षम है।
तेजस्वी यादव के पास अभी वक्त है कि अपने आप को नेता के रूप में स्थापित करें। अकेले चुनाव मैदान में उतरें। महागठबंधन के गांठ छोड़ दें। इससे राजद का आधार वोट राजद के बंधा रहेगा। नेतृत्व पर हर दिन उठने वाला सवाल भी समाप्त हो जाएगा। इसके साथ ही भाजपा और जदयू के नेता नीतीश कुमार के समानांतर तेजस्वी बिहार में तीसरा विकल्प बन सकते हैं। अन्यथा महागठबंधन में उनके नेतृत्व पर सवाल उठता रहेगा और हर बार, हर संभावना पर रायता फैलता रहेगा। तेजस्वी महागठबंधन-महागठबंधन करते रहेंगे और आधार वोट शिफ्ट हो जाएगा।
विरेन्द्र यादव, पटना के सियासी गलियारों के वरिष्ठ पत्रकार हैं । विरेन्द्र यादव न्यूज नाम से साप्ताहिक पत्रिका निकालते हैं, तथा राजनीति पर अपनी पैनी नजर रखते हैं । ये लेखक के निजी विचार हैं ।