भारत के संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) का आज महापरिनिर्वाण दिवस है. उनका निधन आज ही के दिन 1956 में हुआ था. उनके महापरिनिर्वाण दिवस (Mahaparinirvan Diwas) पर देश के विभिन्न हिस्सों में उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही है. इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें नमन किया है. उनके अलावा भी कई नेताओं ने बाबासाहब को श्रद्धांजलि दी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर डॉ. आंबेडकर को श्रद्धांजलि दी. उन्होंने कहा, ‘महापरिनिर्वाण दिवस पर महान डॉ. बाबासाहब आंबेडकर को याद कर रहा हूं. उनके विचार और आदर्श लाखों लोगों को ताकत देते रहेंगे. उनके इस देश के लिए जो भी सपने थे, हम उन्हें पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.’
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश के महू में हुआ था, हालांकि उनका परिवार मराठी था और मूल रूप से महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के आंबडवे गांव से था. उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और मां का नाम भीमाबाई था. अंबेडकर महार जाति से ताल्लुक रखते थे. इस जाति के लोगों को समाज में अछूत माना जाता था और उनके साथ भेदभाव किया जाता था.
अंबेडकर बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी थे लेकिन जातीय छुआछूत की वजह से उन्हें प्रारंभिक शिक्षा लेने में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. स्कूल में उनका उपनाम उनके गांव के नाम के आधार पर आंबडवेकर लिखवाया गया था. स्कूल के एक टीचर को उनसे बड़ा लगाव था और उन्होंने उनके उपनाम आंबडवेकर को सरल करते हुए उसे अंबेडकर कर दिया था.
भीमराव अंबेडकर मुंबई की एल्फिंस्टन रोड पर स्थित गवर्नमेंट स्कूल के पहले अछूत छात्र थे. 1913 में अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए उनका चयन किया गया, जहां से उन्होंने पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएशन किया. 1916 में उन्हें एक शोध के लिए पीएचडी के लिए नामित किया गया.
अंबेडकर लंदन से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट करना चाहते थे लेकिन स्कॉलरशिप खत्म हो जाने की वजह से उन्हें बीच में ही पढ़ाई छोड़कर वापस भारत आना पड़ा. इसके बाद वे कभी ट्यूटर बने तो कभी कंसल्टिंग का काम शुरू किया लेकिन सामाजिक भेदभाव की वजह से उन्हें सफलता नहीं मिली. फिर वह मुंबई के सिडनेम कॉलेज में प्रोफेसर नियुक्त किए गए. 1923 में उन्होंने ‘The Problem of the Rupee’ नाम से अपना शोध पूरा किया और लंदन यूनिवर्सिटी ने उन्हें ‘डॉक्टर्स ऑफ साइंस’ की उपाधि दी. 1927 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने भी उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि दी.