कश्मीर घाटी से पलायन की 30वीं वर्षगांठ पर कश्मीरी पंडितों को आज भी नए कश्मीर में वापसी की उम्मीद है। कश्मीरी पंडित जो 30 साल बाद भी अपने हक की लड़ाई लड़ रहे है। उनकी आंखें उस सपने को हकीकत में बदलते हुए देखने के लिए तरस रही हैं। जब वो कश्मीर के मूल निवासी कहलाए जाते थे।
कश्मीरी पंडित 30 साल से कश्मीर वापस न जा पाने की पीड़ा झेल रहे हैं। इससे सरकार अनजान नहीं है, लेकिन ये इनका दुर्भाग्य है कि वोट की खातिर हमेशा सरकार और दल के लिए नामुफीद रहे हैं।
अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद कश्मीर के उन बाशिंदों की खुशी को शायद ही कोई देख पा रहा होगा, जो बचपन में घर छोड़ कर दरबदर होने को मजबूर हुए थे। कई सरकारों की तरह मौजूदा मोदी सरकार भी खुद को कश्मीर पंडितों की घर वापसी के लिए प्रतिबद्ध बता चुकी है, लेकिन उम्मीद तब बंधी जब राज्य से विशेष अधिकार दिए जाने का दर्जा छिना गया।
कश्मीरी पंडितों की जगी उम्मीद के बीच केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने ट्वीट कर कहा, ‘आज के ही दिन हिन्दुस्तान की गर्दन पर वार कर कश्मीर की आत्मा कश्मीरी पंडित को बेघर कर कश्मीर में गजवा ए हिंद का प्रयास किया।’
उन्होंने कहा, ‘तुष्टिकरण की राजनीति करने वालों ने मदद के हाथ न बढ़ाए, एक रात में अपने ही देश मे वो रिफ्यूजी हो गए।’ सिंह ने कहा, ‘वो वापस आएंगे, डल लेक पर फिर से वेद के मंत्र पढ़े जाएंगे।’
पिछले साल देश के गृह मंत्री अमित शाह ने कश्मीरी पंडितों की त्रासदी पर आधिकारिक तौर पर राज्यसभा में बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार कश्मीरी पंडितों और सूफियों को घाटी में वापस लाने के लिए प्रतिबद्ध है। कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया। उनके कई मंदिरों को ध्वस्त किया गया।
उन्होंने कहा था कि जम्मू-कश्मीर में सूफीवाद को निशाना बनाया गया। सूफीवाद एकता और सद्भाव का प्रतीक है, लेकिन कश्मीरी पंडितों और सूफियों के पक्ष में कोई आवाज नहीं उठाई गई। सूफी हिंदू और मुसलमानों के बीच एकता के बारे में बात करते थे, लेकिन उन्हें घाटी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया।
आर्टिकल 370 खत्म होने के बाद जगी उम्मीद
कश्मीर से भगाए गए पंडितों के अधिकारों के लिए पिछले 30 वर्षों से संघर्ष कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता सुशील पंडित के मुताबिक, अनुच्छेद 370 की बेड़ियां टूटते देखते हैं, तो टीस कुछ घटती है। जेहादी नेतृत्व को सलाखों के पीछे पाते हैं, तो लगता है कि देश की समझ पर पड़े परदे उठ रहे हैं। लेकिन जब देखता हूं कि पांच महीने व्हाट्सएप पर वीडियो न देख पाने पर तो बवाल है, पर तीस साल से अपना घर नहीं देख पाए लाखों लोगों की त्रासदी पर देश में सन्नाटा है तो समझ नहीं आता।