यही तो है न्यू इंडिया,’सबका साथ ओर रिलायंस का विकास’
क्या मोदी सरकार, मुकेश अम्बानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज के हितों की रक्षा के लिए अमेरिका से भी पंगा लेने को तैयार है? यह सवाल अब बहुत महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि कल वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने एक विस्पोटक इंटरव्यू दिया है जिसमे उन्होंने यह कहा है कि भारत वेनेजुएला, रूस जैसे देशों पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों का पालन तो करना चाहता है, लेकिन इसके लिए वह अपने आर्थिक हितों को नुकसान नहीं पहुंचा सकता ।
आर्थिक हित = रिलायंस के हित
कमाल की बात तो यह है कि हमारी सरकार ने इतनी कड़ी बात कभी ईरान पर अमेरिकी प्रतिबन्धों को लेकर नही कही जबकि ईरान से भारत की सरकारी ऑयल कंपनियां कच्चा तेल सस्ते दामो में ओर मुंहमांगी शर्तो पर खरीदती आयी थी, ईरान के कच्चे तेल पर आयात पर लगाए अमेरिकी प्रतिबंध तो हमने चुपचाप मान लिए लेकिन हम वेनेजुएला के कच्चे तेल के आयात को लेकर तेवर दिखा रहे हैं। आखिर ऐसा क्यों?
दरअसल भारत की सरकारी तेल कंपनियां तो मुख्य रूप से कच्चे तेल का आयात खाड़ी देशों से करती आयी है अब ईरान पर प्रतिबंध के कारण वह अमेरिका से क्रूड परचेज कर रही हैं लेकिन भारत की सबसे बड़ी ऑयल कम्पनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ओर देश की निजी क्षेत्र की दूसरी सबसे बड़ी पेट्रोलियम कंपनी नायरा एनर्जी यानी रशियन कंपनी रोसेनोफ़ ( पूर्व में एस्सार ऑयल ) अपनी खरीद मुख्य रूप से वेनेजुएला से ही करते आए हैं।
वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था तेल निर्यात पर ही आधारित है। वह अपना अधिकतम कच्चा तेल अमरीका को निर्यात करता था,अमरीका के बाद अगर किसी देश में वेनेज़ुएला से तेल का निर्यात होता है तो वह भारत ही था विल्सन सेंटर रिसर्च की रिपोर्ट बताती है कि साल 2012 से 2017 के बीच वेनेज़ुएला की सरकारी तेल कंपनी पीडीवीएसए ने हर साल भारत को औसतन चार लाख 24 हज़ार बैरल तेल प्रतिदिन बेचा था।
भारत की दो सबसे बड़ी निजी ऑयल कंपनियां रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी वेनेज़ुएला के कच्चे तेल के सबसे बड़े ख़रीदार हैं। इन दोनों के पास भारत की सबसे बड़ी दो रिफाइनरी है और ये वेनेज़ुएला के कच्चे तेलों को रिफाइन करने में सक्षम हैं।
अमेरिका ने 2019 जनवरी में वेनेजुएला के पेट्रोलियम उद्योग पर काफी सख्त प्रतिबंध लगा दिए थे अमेरिका के इस कदम के बाद कई देशों ने वेनेजुएला से तेल आयात को रोक दिया है, ओर इसी कारण रिलायंस को भी आयात रोकना पड़ा अमेरिकी पाबंदी के बाद कंपनियों ने वेनेजुएला से कच्चे तेल की सीधी खरीद पर रोक लगा दी थी और रूस की सरकारी कंपनी रोसनेफ्ट के जरिए वेनेजुएला के कच्चे तेल की खरीद शुरू की थी लेकिन उसे यह महंगा पड़ रहा था ओर इस कारण उसके मुनाफे में भी भारी कमी आयी रिलायंस को सऊदी की सरकारी तेल कम्पनी अरामको को अपनी बड़ी हिस्सेदारी भी संभवतः इसी कारण बेचना पड़ी।
इस साल मार्च में रिलायंस ओर अमेरिका बिल्कुल आमने सामने आ गए थे जब अमेरिका ने कहा कि रिलायंस द्वारा वेनेजुएला की राष्ट्रीय तेल कंपनी पीडीवीएसए को तेल आपूर्ति के लिये तीसरे पक्ष के जरिये नकद भुगतान दिया गया है लेकिन तब रिलायंस इंडस्ट्रीज ने जवाब दिया था कि उसने वेनेजुएला पर अमेरिकी पाबंदी का कोई उल्लंघन नहीं किया है। उसने लातिन अमेरिकी देश से रूस की रोसनेफ्ट जैसी कंपनियों से कच्चे तेल की खरीद की है और इसकी पूरी जानकारी अमेरिकी प्रशासन को है।
लेकिन अब वित्तमंत्री के इस बड़े बयान के बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज चार महीने के ठहराव के बाद दक्षिण अमेरिकी देश वेनेजुएला से प्रत्यक्ष तेल लोडिंग को फिर से शुरू करने के लिए तैयार नजर आ रही है उसकी योजना है कि रिलायंस वस्तु विनिमय व्यवस्था के तहत वेनेजुएला के कच्चे तेल के भुगतान के रूप में डीजल का निर्यात करेगी।
अब अमेरिका दुबारा इस मामले में अपनी निगाहे टेढ़ी करने जा रहा है और भारत की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने यह बयान इसी संदर्भ में दिया है, यही तो है न्यू इंडिया,’सबका साथ ओर रिलायंस का विकास’।
लेखक – गिरिश मालवीय