भारत के साथ कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा जैसे क्षेत्रों के लिए आपसी संबंध बिगा’ड़ने वाले नेपाल को लेकर खबर है कि उसके एक गाँव पर चीन ने कब्जा जमा लिया है। चीन ने नेपाल के गोरखा जिले के रुई गाँव पर क’ब्जा किया है। अब ये हिस्सा चीन के स्वायत्त क्षेत्र तिब्बत के क’ब्जे में आ चुका है। मगर, नेपाल सरकार इस सच्चाई को बताने से गुरेज कर रही है।
रुई नामक इस गाँव को भले ही नेपाल अब भी अपने मैप में दर्शा रहा है, लेकिन ये पूर्ण रूप से चीन के कब्जे में है। चीन ने वहाँ अपना व्यापार स्थापित करने के लिए सभी सीमाओं को हटा दिया है।
न्यूज 24 की रिपोर्ट के अनुसार, रुई गाँव में केवल 72 घर हैं। लेकिन, नेपाल सरकार की घोर ला’परवाही और उच्च अधिकारियों की उदासीनता की वजह से चीनियों ने घु’सपैठ करते हुए इस पर क’ब्जा कर लिया। करीब 60 साल तक नेपाल सरकार के अधीन रहने वाले रुई गाँव के गोरखा अब चीन के दम’नकारी शासन के अधीन हो गए। नेपाली अखबार अन्नपूर्णा पोस्ट के मुताबिक रुई गाँव वर्ष 2017 से तिब्बत के स्वायत्त क्षेत्र का हिस्सा है।
भू-राजस्व कार्यालय गोरखा के अनुसार, कार्यालय के पास अभी भी रुई गाँव के निवासियों से एकत्र राजस्व का रिकॉर्ड है। रुई भोट क्षेत्रों के निवासियों द्वारा भुगतान किए गए राजस्व का विवरण भूमि राजस्व कार्यालय में अभी भी फ़ाइल संख्या एक में सुरक्षित है।
रिपोर्ट के मुताबिक, भूमि राजस्व कार्यालय गोरखा के एक सहायक कर्मचारी ने बताया, “कार्यालय के रिकॉर्ड अनुभाग में अथारा साया खोले से रुई भोट तक के लोगों द्वारा प्रस्तुत राजस्व का रिकॉर्ड है।”
इतिहासकार रमेश धुंगल इस संबंध में कहते हैं कि रुई और तेइगा गाँव गोरखा जिले के उत्तरी भाग में थे। धुंगल के अनुसार, “रुई गाँव नेपाल का हिस्सा है। न तो नेपाल ने इसे युद्ध में खोया और न ही यह तिब्बत से संबंधित किसी विशेष समझौते या अनुबंध के अधीन था। पिलर को ठीक करने के समय में हुई लापरवाही के कारण नेपाल ने रुई और तेघा दोनों गाँव खो दिए।”
इसी प्रकार, चूमुबरी ग्रामीण नगर पालिका वार्ड नंबर 1 के वार्ड अध्यक्ष बीर बहादुर लामा दावे के साथ कहते हैं कि रुई गाँव सहित क्षेत्र गोरखा का हिस्सा था और वहाँ के निवासी नेपाल सरकार को राजस्व जमा करते थे, लेकिन अब वे तिब्बत के निवासी बन गए हैं।
उन्होंने कहा कि कुछ भ्र’ष्ट नेपाली अधिकारियों की सहमति से 35 नंबर पिलर को समदो और रुई गाँव के बीच की सीमा तय कर दिया गया। इससे पूरा गाँव चीनी नियं’त्रण में आ गया। साम गाँव, सामडो और रुई की भाषा, संस्कृति और परंपराएँ एक जैसी हैं और प्रार्थना की जगह भी एक ही है।
लामा कहते हैं, “कई लोग तिब्बत में शामिल नहीं होना चाहते थे और इसके बजाय समडो भाग गए। उनके पास ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दस्तावेज थे जो 1000-1200 वर्ष पुराने थे। उन्होंने यहाँ अपने पूजा स्थल बनाए। पवित्र स्थलों में अभी भी मल्ल राजाओं के दो ऐतिहासिक देवताओं आदित्य मल्ल और पुण्य मल्ल के ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद हैं।”
वहीं, नेपाली इतिहासकार धुंगेल इस कब्जे को नेपाल सरकार की बड़ी लाप’रवाही मानते हैं। वे कहते हैं, “भारत की सीमा में आना-जाना बहुत आसान है। लोग इसके चारों ओर घूमते हैं। इसलिए भारत के साथ सीमा के मुद्दे सभी को दिखाई दे रहे हैं, लेकिन उत्तरी सीमा में तिब्बत की सीमा से लगे इलाके में नेपाल का हाल बहुत ही ख’राब है।”
गौरतलब है कि पिछले महीने लिपुलेख से धारचूला तक सड़क का उद्घाटन होने के बाद से नेपाल दावे कर रहा है कि कालापानी क्षेत्र (पिथौरागढ़ जिला) पर नेपाल का ‘निर्विवाद रूप से’ हक है। इसके मद्देनजर उसने नया नक्शा भी पास कर दिया। लेकिन, नेपाल के इस कदम के पीछे भी पिछले दिनों चीन कनेक्शन निकलकर सामने आया था।
दरअसल, खुफिया एजेंसियों को मालूम चला था कि नेपाल में चीन की युवा राजदूत होऊ यांगी ने इसमें अहम भूमिका निभाई और भारत के खिलाफ बड़ा कदम उठाने के लिए प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को तैयार किया। इसी के बाद ओली ने ऐसी रूपरेखा तैयार की और राष्ट्रीय मानचित्र के विस्तार के इस प्रस्ताव पर विपक्षी नेपाली कॉन्ग्रेस भी सरकार के साथ आ गई।
Input- ऑप इंडिया