
जब हम अपनी मातृभाषा को सिर्फ एक दिन यानी आज या राष्ट्रवाद के दिखावे के लिए इस्तेमाल करते हैं, तब एक विदेशी प्रोफेसर है – जो न सिर्फ धड़ल्ले हिंदी में बिंदी लगाते हैं। बल्कि वे ला ट्रोब यूनिवर्सिटी में हिंदी भाषा एवं साहित्य के लेक्चरर भी हैं, जो हिंदी को वैश्विक आकर दे रहे हैं।
हिंदी दिवस है और आज हमने इनसे ही मिलने की कोशिश की है। ये प्रोफेसर हैं इयान वुल्फोर्ड। अमेरिका में जन्मे। ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं। उच्च शिक्षा अमेरिका से ली और हिंदी विषय का भी गहन अध्ययन किया। हिंदी भाषियों को जितने हिंदी के लेखकों और कवियों के नाम याद नहीं होंगे, इयान उससे ज्यादा हिंदी के दिग्गजों को उनकी रचनाओं के माध्यम से करीब से जानने लगे हैं।
हिंदी दिवस पर जब आज हमने उनके ट्विटर अकाउंट को खंगाला, तो हिंदी के एक से एक साहित्कारों की कृति उनके टाइमलाइन पर मिली। ये हिंदी से उनका प्रेम ही है कि वे हिंदी की जुबान शानदार बोलते हैं और उनकी हिंदी में बिंदियां सटीक और प्रमाणिक होता है। भले ही वे हिंदी के प्रोफेसर हैं, लेकिन आज उनकी हिंदी के चर्चे हिंदुस्तान में भी खूब होते हैं।
जब हिंदी भाषा पर बारिक नजर रखने वाले पत्रकार राहुल देव कहते हैं, ‘भाषाओं के संकट से भी बड़ा संकट है उसको न देख पाना। कमोबेश यह समस्या सारे भाषा समूहों के साथ है। लेकिन हिंदी वालों के साथ तो रोग की हद तक है।’
राहुल देव ने अपने एक लेख में इस संकट को लेकर जिक्र किया, 10 साल पहले के एक सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार भारत की सभी भाषा-माध्यम विद्यालयों में प्रवेश दर हर साल घट रही थी। सिर्फ दो भाषाएं अपवाद थीं- अंग्रेजी और हिंदी। अंग्रेजी में यह वार्षिक वृद्धि दर 250% से अधिक थी। हिंदी में लगभग 35%। अब जब हिंदीभाषी राज्यों में भी सरकारें हिंदी-माध्यम विद्यालय बंद या बदल कर उन्हें अंग्रेजी-माध्यम करती जा रही है तो हिंदी का भविष्य स्पष्ट है।’
ऐसे में इयान वुल्फोर्ड की हिंदी के प्रति दीवानगी से हमें यह तो सीखना ही होगा कि जिस हिंदी से हमारी पहचान है, उसका सम्मान हमेशा करें। ना कि सिर्फ एक दिन, जब कोई दिवस हो। इयान, हिंदी, नेपाली, फ्रेंच और संस्कृत के साथ इंगलिश, अमेरिकन, आस्ट्रेलियाई भाषा भी जानते हैं, लेकिन उनका ऑफिसियल ट्विटर अकाउंट पर फर्राटेदार हिंदी मिलती है। इससे हमें भी प्रेरित होना चाहिए और दूसरी भाषाओं की प्राथमिकता से पहले खून में बसी हिंदी का सम्मान देने की जरूरत है।