सुप्रीम कोर्ट ने सेना में महिलाओं को लेकर एक एतिहासिक फैसला सुनाया है । इस फैसले के बाद महिला को कमांड में पोस्टिग मिलेगी । जबरन रिटायर नहीं होना पड़ेगा आदि शामिल है ।
भारतीय सेना में महिला अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को अपना फैसला सुनाया। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ( Justice DY Chandrachud) और जस्टिस अजय रस्तोगी (Justice Ajay Rastogi) की बेंच ने यह फैसला सुनाया। फैसले में कहा गया कि सेना में महिला अधिकारियों की नियुक्ति एक विकासवादी प्रक्रिया है। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगाई, इसके बावजूद केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय के फैसले को लागू नहीं किया। महिलाओं की शारीरिक विशेषताओं पर केंद्र के विचारों को कोर्ट ने खारिज करते हुए कहा कि केंद्र अपने दृष्टिकोण और मानसिकता में बदलाव करे। अदालत के फैसले के अनुसार, अब महिलाओं को भी सेना में स्थायी कमीशन मिलेगा। अब आपको बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सेना में महिलाओं के लिए क्या बदलाव होंगे।
महिलाएं अब सेना में पूर्णकालिक रूप से कर्नल या उससे ऊपर रैंक पर पदस्थ हो सकती हैं। युद्ध अथवा दुश्मनों से मुकाबला करने वाली भूमिकाओं में महिलाओं की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है, इसलिए वह अभी भी पैदल सेना, तोपखाने और बख्तरबंद कोर में शामिल नहीं हो सकती हैं। एक महिला कर्नल अब 850 पुरुषों की एक बटालियन की कमान संभाल सकती है। महिलाएं योग्यता के आधार पर ब्रिगेडियर, मेजर जनरल, लेफ्टिनेंट जनरल और सैद्धांतिक रूप से सेना प्रमुख के पद तक बढ़ सकती हैं, लेकिन यह कई लड़ाकू संरचनाओं की अगुवाई करने के अनुभव के बिना लगभग असंभव होगा, जिसे काफी समय से अस्वीकार किया जा रहा है।
एक पूर्ण कर्नल के रूप में महिला अधिकारी को स्वतंत्र कार्यों को करने का अधिकार मिलता है। संचालन के संदर्भ में बात की जाए तो सेना में एक कर्नल सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कर्नल आदेश देते हैं, कार्यान्वित करते हैं और वह पूरी तरह से दिए गए कार्य के प्रति जवाबदेह होते हैं। अब, महिलाएं अंततः भारतीय सेना की इंजीनियर-इन-चीफ, इंटेलिजेंस चीफ, सिग्नल की प्रमुख आदि हो सकती हैं। महिलाएं पहले ही सेना में डॉक्टर के तौर पर जनरल / एयर मार्शल / एडमिरल के पद पर आसीन हो चुकी हैं। आज (सोमवार) का आदेश भारतीय सेना की युद्धक टुकड़ियों में महिलाओं के प्रवेश करने की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है।
बताते चलें कि सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सभी नागरिकों को अवसर की समानता, लैंगिक न्याय सेना में महिलाओं की भागीदारी का मार्गदर्शन करेगा। महिलाओं की शारीरिक विशेषताओं पर केंद्र के विचारों को कोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार दृष्टिकोण और मानसिकता में बदलाव करे। सेना में सच्ची समानता लानी होगी। 30 फीसदी महिलाएं वास्तव में लड़ाकू क्षेत्रों में तैनात हैं। स्थायी कमीशन देने से इनकार स्टीरियोटाइप्स पूर्वाग्रहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती हैं। केंद्र की दलीलें परेशान करने वाली हैं। महिला सेना अधिकारियों ने देश का गौरव बढ़ाया है।
क्या है मामला
12 मार्च 2010 को हाई कोर्ट ने शार्ट सर्विस कमीशन के तहत सेना में आने वाली महिलाओं को सेवा में 14 साल पूरे करने पर पुरुषों की तरह स्थायी कमीशन देने का आदेश दिया था। रक्षा मंत्रालय इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गया. सुप्रीम कोर्ट ने अपील को सुनवाई के लिए स्वीकार तो कर लिया, लेकिन हाई कोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगाई। सुनवाई के दौरान कोर्ट का रवैया महिला अधिकारियों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रहा।