आवास और शहरी कार्य मंत्रालय के स्वच्छता सर्वेक्षण 2020 के आधे साल के नतीजे सामने आ गए हैं। इन नतीजों में एक बार फिर से इंदौर अव्वल रहा है। इस बार 4272 शहरों के बीच सर्वे हुआ। सर्वे में शहरों की लोकल बॉडी के दावों पर जनता की राय ली गई और लिस्ट बनाई गई है। साल 2019 की पहली और दूसरी तिमाही के नतीजों में इंदौर दोनों तिमाही में नंबर एक शहर रहा है।
बताया जा रहा है कि दस लाख की जनसंख्या में पहली तिमाही की रैंकिंग में पहले स्थान पर इंदौर, दूसरे पर भोपाल, तीसरे पर सूरत, चौथे पर नासिक और पांचवें पर राजकोट रहा। वहीं, दूसरी तिमाही में भी इंदौर पहले स्थान पर रहा। दूसरे स्थान पर राजकोट, तीसरे स्थान पर नवी मुंबई, चौथे स्थान पर वडोदरा और पांचवें पर भोपाल रहा।
वहीं, 1 से 10 लाख की जनसंख्या के शहरों के स्वच्छता सर्वेक्षण में पहली तिमाही में पहले स्थान पर जमशेदपुर, दूसरे पर एनडीएमसी (NDMC) दिल्ली, तीसरे पर खरगोन, चौथे पर बिलासपुर और पांचवें स्थान पर कोल्हापुर है। वहीं, दूसरी तिमाही में जमशेदपुर, चंद्रपुर, खरगोन, लोनी और अंबिकापुर टॉप फाइव में हैं। वहीं, देश में 35 राज्य अब खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं।
जानिए लगातार तीन सालों से इंदौर कैसे बना हुआ है सबसे स्वच्छ शहर
– देश का पहला ऐसा शहर है जहां लाखों लोगों की मौजूदगी में दो जीरो वेस्ट आयोजन हुए।
– देश का पहले डिस्पोजल फ्री मार्केट है जिसमें हाल ही में 56 दुकान क्षेत्र को शामिल किया है।
– देश का पहला ऐसा शहर है जिसने ट्रेंचिंग ग्राउंड को पूरी तरह खत्म कर वहां नए प्रयोग शुरू किए।
– 29 हजार से अधिक घरों में गीले कचरे से होम कम्पोस्टिंग का काम।
– कचरा गाड़ियों की मॉनिटरिंग के लिए जीपीएस, कंट्रोल रूम और 19 जोन की अलग-अलग 19 स्क्रीन।
– 100 फीसदी कचरे की प्रोसेसिंग और बिल्डिंग मटेरियल और व्यर्थ निर्माण सामग्री को जमा कर निस्तारण किया गया।
केंद्रीय आवास और शहरी कार्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी के मुताबिक, लोगों के व्यवहार में अब बड़ा बदलाव आ गया है। लोग समझने लगे हैं कि क्या अच्छा है और ये भी कि योजना का लाभ लेने से क्या बदलेगा, जोकि बहुत अच्छी बात है। पुरी आगे कहते हैं कि शहरों में आगे जाने, स्वच्छ बनने की होड़ लगी है, ये सकारात्मक बात है। वो मीडिया को याद भी दिलाते हैं कि अगर कोई राज्य खुले में शौच या कोई और मानक का पालन नहीं रहता है तो, हमें बताइए उनका ओडीएफ सर्टिफिकेट वापस लेंगे और रैंकिंग अपने आप नीचे गिर जाएगी। स्वच्छता का सीधा संबंध प्रॉपर्टी के रेट से है अगर, रैंकिंग में ऊपर है तो, अपने आप रेट ज्यादा मिलेगा।
सर्वे से पता लगता है कि अलग ज़ोन में छोटे छोटे शहर भी अच्छा काम कर रहे हैं। जैसे एक से दस लाख जनसंख्या वाली कैटेगरी में खरगोन, बिलासपुर, कोल्हापुर, कोरबा, रोहतक, सोलापुर, पनवेल, रायगढ़, अंबिकापुर, तेनाली, भटिंडा जैसे शहर हैं, जो स्वच्छता में अच्छा काम कर रहे हैं। इसके अलावा 25 हज़ार से कम जनसंख्या वाली केटेगरी में बेरी, इंद्री, सिधौली, मुनक अच्छा काम कर रहे हैं। 50 हज़ार से 10 हज़ार तक जनसंख्या में फजिल्का, गजरौला, बिसवान, रूपनगर, राजपुरा अच्छा काम कर रहे हैं।
इस बारे में मंत्रालय के सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा कहते हैं कि अब राज्य और शहरों के प्रशासन वो जागृति आ गई है कि वो खुद अपने को आगे बढ़ाने में सर्वे, योजनाओं में भाग लेने के लिए सामने आ रहे हैं। जो ट्रेंड है, वो ये दिखाता है कि हर शहर को लगातार टॉप बने रहने में मेहनत करनी ही पड़ेगी। नहीं तो वो अगली तिमाही में नीचे के रैंक में आ जाएगा। वो ये भी कहते हैं कि इंदौर जैसे शहर तो अपने गीले कचरे को बेचने लगे हैं। वहां 200 टन गीला कचरे के लिए टेंडर निकाला गया और अच्छा रिस्पॉन्स मिला। इसके अलावा कुछ शहर वेस्ट मैनेजमेंट पर अच्छा काम कर रहे हैं। जिससे साफ सफाई तो हो ही रही है, कमाई भी हो रही है। वो अपना फंड जुटाने में खुद के लिए बड़ी मदद कर रहे हैं।
हालांकि, राजधानी दिल्ली एनडीएमसी एरिया को छोड़कर अभी भी पिछड़ी हुई है। स्वच्छता मिशन के डायरेक्टर विनोद कुमार जिंदल इस बारे में कहते हैं कि दिल्ली के स्थानीय निकाय एरिया के पास जगह कम पड़ रही है। जनसंख्या का भारी दबाव है, फंड भी कम है, कचरा कहां फेंके ये भी परेशानी है। वहीं लोग अब भी उस तरह का योगदान नहीं कर रहे, जितनी ज़रुरत है।
हालांकि, हरदीप सिंह पुरी इसे मौजूदा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जिम्मेदार मानते हैं। वो कहते हैं कि केजरीवाल की वजह से पब्लिक ट्रांसपोर्ट का सही ढांचा तैयार नहीं हो पाया, जिससे सड़कों पर दबाव है। स्थानीय निकाय को फंड भी कम मिल रहा है, जिससे वो काम नहीं हो पा रहा जो होना चाहिए। अनधिकृत कॉलोनियों में सही बंदोबस्त नहीं होने से अस्वच्छता होती है और कई तरह की बीमारी जन्म लेती हैं। इस पर पहली बार काम हुआ और अब केंद्र सरकार ने 1700 से ज्यादा कॉलोनियों को अधिकृत किया। यहां हर तरह का विकास हो पाएगा।
इन सारे शहरों की सालाना रैंकिंग मार्च 2020 में आएगी। सरकार ये मान रही है कि तकनीक के प्रयोग से देश को स्वच्छ बनाने में जनभागीदारी बढ़ रही है। 2400 शहरों के 57,000 टॉयलेट गूगल मैप पर आ गए हैं। स्वच्छता एप के डेढ़ करोड़ सबस्क्राइबर, 1969 नंबर की हेल्पलाइन भी जनभागीदारी बढ़ा रही है। इससे बहुत बड़ा बदलाव आएगा।
जी न्यूज की रिपोर्ट