हिन्दी सिनेमा का ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार नहीं रहें । 98 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया । मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के ऑल रॉउडर माने जाने वाले दिलीप साहेब फिल्म इंडस्ट्री में आने से पहले युसुफ खान थे । पाकिस्तान में जन्मे दिलीप कुमार कैसे युसुफ खान से दिलीप कुमार बन गए इसका किस्सा भी दिलचस्प है । आज हम आपको बताने जा रहे हैं, कैसे युसुफ खान बन गए दिलीप कुमार…
देविका रानी को जाता है दिलीप कुमार को फिल्मों में लाने का श्रेय
दिलीप कुमार को फिल्मों में लाने का श्रेय अगर किसी को जाता है, तो वह देविका रानी ही थीं. देविका रानी का मानना था कि एक रोमांटिक हीरो के ऊपर यूसुफ़ खां का नाम ज़्यादा फ़बेगा नहीं. इसलिए यूसुफ खान के लिए नए नाम की तलाश शुरू हुई और युसूफ खान से दिलीप कुमार बन गए.
देविका रानी ने दी थी दिलीप कुमार को नौकरी
साल 1943 में दिलीप कुमार की मुलाकात चर्चगेट पर डॉक्टर मसानी से हुई. उन्होंने उनसे बॉम्बे टॉकीज में काम करने को कहा. जहां पर युसूफ खान की मुलाकात देविका रानी से हुई. देविका रानी ने उन्हें 1250 रुपये की सैलरी पर इस कंपनी में नौकरी दी. शुरुआत में युसूफ खान यहां पर स्टोरी लिखने और स्क्रिप्ट को सुधारने में मदद करते थे क्योंकि अंग्रेजी के साथ उनकी उर्दू भी काफी अच्छी थी. यहीं उन्होंने अभिनय की बारीकियां सीखीं. उस वक्त उनकी उम्र महज 19 साल थी.
देविका के कहने पर की लंबी-लंबी रिहर्सल
दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, देविका रानी ने जब मुझे समेत कई एक्टर्स को बॉम्बे टॉकीज में नौकरी दी, तो साथ में इसके लिए भी ताकीद किया कि रिहर्सल करना कितना जरूरी है. उनके मुताबिक एक न्यूनतम लेवल का परफेक्शन हासिल करने के लिए ऐसा करना बेहद जरूरी है. बॉम्बे टाकीज़ में रिहर्सल को लेकर अपनी आदतों के बारे में दिलीप कुमार ने कहा था, ये सीख मेरे साथ शुरुआती वर्षों तक ही नहीं रही. बहुत बाद तक मैं मानसिक तैयारी के साथ ही सेट पर शॉट के लिए जाता था. मैं साधारण से सीन को भी कई टेक में और लगातार रिहर्सल के बाद करने के लिए कुख्यात था.
पिता से झगड़े के बाद छोड़ दिया था घर
1940 के दशक में दिलीप कुमार का अपने पिता से झगड़ा हो गया था जिसके बाद उन्होंने घर छोड़ दिया था. वो पुणे आ गए और यहां पर उनकी मुलाकात, एक पारसी कैफे के मालिक से हुई. उनकी मदद से वो एक कैंटीन कॉनट्रैक्टर से मिले. दिलीप कुमार की अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ थी जिसकी वजह से उनको पहला काम मिला. दिलीप कुमार ने आर्मी क्लब में सैंडविच का स्टॉल लगाया था. और जब उनका कॉनट्रैक्ट खत्म हुआ तब तक वो 5000 रुपये कमा चुके थे. इसके बाद वो बॉम्बे से अपने घर वापस आ गए.
पाकिस्तान में हुआ था जन्म
दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसंबर 1922 को पाकिस्तान में हुआ था और उनका पहला नाम यूसुफ खान था. बाद में उन्हें पर्दे पर दिलीप कुमार के नाम से शोहरत मिली. एक्टर ने अपना नाम एक प्रोड्यूसर के कहने पर बदला था, जिसके बाद उन्हें स्क्रीन पर दिलीप कुमार के नाम से लोग जाने जाने लगे. उन्हें हिंदी सिनेमा में The First Khan के नाम से जाना जाता है.
शाहरुख को दिया बेटे का दर्जा
दिलीप कुमार के साथ शाहरुख खान का रिश्ता बहुत ही गहरा और अलग है. दिलीप कुमार उन्हें अपना अपना मुंहबोला बेटा मानते थे. शाहरुख अक्सर दिलीप साहब के घर पर उनका हालचाल जानने जाते थे.