सुप्रीम कोर्ट के राफेल मामले पर मोदी सरकार को क्लीन चिट दिए जाने के बाद भाजपा ने गुरुवार को कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी पर निशाना साधा। पार्टी नेता रवि शंकर प्रसाद ने कहा- यह मोदी सरकार की ईमानदारी से परिपूर्ण निर्णय प्रक्रिया का सम्मान है। सत्यमेव जयते। कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को देश से इस मामले में माफी मांगनी चाहिए।
इस बीच राहुल गांधी ने ट्वीट किया- सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस जोसफ ने राफेल मामले की जांच के लिए बड़ा दरवाजा खोल दिया है। इसे तुरंत शुरू किया जाना चाहिए। एक जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी का गठन होना चाहिए, जो इस घोटाले की जांच करे। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें इस मामले में एफआईआर का आदेश देने या जांच बैठाने की जरूरत महसूस नहीं हुई।
पहले कांग्रेस चुनाव में हारी, आज फिर यहां हारे: प्रसाद
प्रसाद बोले- सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राफेल की गुणवत्ता के बारे में किसी को शंका नहीं है। पहले कांग्रेस चुनाव में हारी, आज फिर यहां हारे। राहुल को क्यों माफी मांगना जरूरी है, मैं अभी बताता हूं। डैसो कंपनी कहती है कि ऑफसेट रिलायंस नहीं हम तय करते हैं। हम रिलायंस को ऑफसेट पार्टनर के तौर पर चुनते हैं। राहुल ने कहा कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने मोदी को चोर कहा है। ओलांद ने इसे झूठा बताया, कहा- मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा। ऑफसेट पार्टन डैसो चुनती है।
राहुल ने तीसरा झूठ संसद में बोला: प्रसाद
उन्होंने कहा- राहुल ने तीसरा झूठ संसद में बोला। राहुल ने कहा था कि मैक्रों ने उन्हें एक मुलाकात के दौरान बताया कि राफेल डील में किसी तरह की गोपनीयता का प्रावधान नहीं है और रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने पीएम के कहने पर संसद में झूठ बोला है। इतिहास में पहली बार हुआ था कि फ्रांस सरकार को संसद की कार्यवाही के बीच में ही बयान जारी कर कहना पड़ा था कि मैक्रों ने ऐसा कुछ नहीं कहा।
प्रसाद ने कहा- राहुल ने राफेल के दाम के बारे में देश को बताने की कोशिश भी की। पहले कहा कि अंबानी को राफेल में 1 लाख 30 हजार करोड़ दिए। उन्होंने भाषण में 29 अप्रैल 2018 में कहा था- 700 करोड़, जुलाई में इसे 500 करोड़ बताया। फिर उन्होंने 540 करोड़ बताया। एक जगह यह भी कह दिया था कि इसका दाम है 570 रुपए।
यूपीए सरकार ने राफेल डील को आगे नहीं बढ़ने दिया
उन्होंने कहा- सुप्रीम कोर्ट से तो आपने माफी मांग ली। लेकिन जनता की आंखों में आंखें मिलाने के लिए आप माफी मांगेंगे राहुल गांधी? एक अंतिम बात कहनी है कि राहुल गांधी और कांग्रेस ने एक आक्रामक, बेबुनियाद अभियान राफेल पर क्यों किया, किसके इशारे पर किया। यूपीए सरकार ने राफेल डील को आगे नहीं बढ़ने दिया। 30 साल से भारत की वायुसेना देश के लिए लड़ाकू विमान की मांग कर रही थी। 2015 में जैसे ही मोदीजी ने कहा कि हम राफेल खरीदेंगे, वैसे ही यह तीखा अभियान और बेबुनियाद और झूठा प्रहार हम पर शुरू किया।
सुनवाई के बाद 10 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था
शीर्ष अदालत ने पिछले साल के फैसले में राफेल डील को तय प्रक्रिया के तहत बताया था और सरकार को क्लीनचिट दी थी। कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के बाद 10 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था। वकील प्रशांत भूषण, पूर्व मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी समेत अन्य ने राफेल डील में भ्रष्टाचार जांच की मांग करते हुए याचिका दायर की थी।
राहुल को सावधानी बरतने की जरूरत
वहीं, राहुल गांधी की ओर से राफेल पर सुप्रीम कोर्ट के बयान को गलत तरह से पेश करने के मामले पर बेंच ने कहा कि हम उनकी माफी स्वीकार करते हैं। उन्हें आगे सावधानी बरतने की जरूरत है। दरअसल, कोर्ट राफेल डील के लीक दस्तावेजों को सबूत मानकर मामले की दोबारा सुनवाई के लिए तैयार हो गया था। इस पर राहुल ने कहा था कि कोर्ट ने भी मान लिया है कि चौकीदार ने ही चोरी की है।
भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी ने राहुल के खिलाफ अवमानना का मामला दर्ज कराया था। राहुल ने जवाब में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ‘चौकीदार चोर है’ टिप्पणी नहीं की थी। यह सब चुनाव प्रचार के दौरान गर्म माहौल में उनके मुंह से निकल गया था।
केंद्र ने गोपनीय दस्तावेजों को सबूत मानने का विरोध किया था
13 मई को केंद्र सरकार ने राफेल से जुड़े दस्तावेज लीक होने के मामले में सुुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था। इसमें केंद्र ने दलील दी कि राफेल मामले में जिन दस्तावेजों को आधार बनाकर पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई है, वे भारतीय सुरक्षा के लिए काफी संवेदनशील हैं। इनके सार्वजनिक होने से देश की सुरक्षा खतरे में पड़ी है। केंद्र ने कहा- याचिकाकर्ता यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, प्रशांत भूषण संवेदनशील जानकारी लीक करने के दोषी हैं। याचिकाकर्ताओं ने याचिका के साथ जो दस्तावेज लगाए हैं वे प्रसारित हुए हैं, जो अब देश के दुश्मन और विरोधियों के लिए भी मौजूद हैं।
3 साल पहले हुई थी राफेल डील
राफेल फाइटर जेट डील भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच सितंबर 2016 में हुई। इसके तहत भारतीय वायुसेना को 36 अत्याधुनिक लड़ाकू विमान मिलेंगे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह सौदा 7.8 करोड़ यूरो (करीब 58,000 करोड़ रुपए) का है।
एनडीए और यूपीए सरकार के दौरान मूल्य में कितना फर्क?
कांग्रेस का दावा है कि यूपीए सरकार के दौरान एक राफेल फाइटर जेट की कीमत 600 करोड़ रुपए तय की गई थी। मोदी सरकार के दौरान एक राफेल करीब 1600 करोड़ रुपए का पड़ेगा।
राफेल की कीमत में इतना अंतर क्यों?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यूपीए सरकार के दौरान सिर्फ विमान खरीदना तय हुआ था। इसके स्पेयर पार्ट्स, हैंगर्स, ट्रेनिंग सिम्युलेटर्स, मिसाइल या हथियार खरीदने का कोई प्रावधान उस मसौदे में शामिल नहीं था। फाइटर जेट्स का मेंटेनेंस बेहद महंगा होता है। मोदी सरकार ने जो डील की है, उसमें इन सभी बातों को शामिल किया गया है। राफेल के साथ मेटिओर और स्कैल्प जैसी दुनिया की सबसे खतरनाक मिसाइलें भी मिलेंगी। मेटिओर 100 किलोमीटर तक मार कर सकती है जबकि स्कैल्प 300 किमी तक सटीक निशाना साध सकती है। कांग्रेस की आपत्ति है कि इस डील में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का प्रावधान नहीं है। पार्टी इसमें एक कंपनी विशेष को फायदा पहुंचाने का आरोप भी लगाती है।
राफेल डील में ऑफसेट क्लॉज क्या है?
यह भी इस समझौते का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जा रहा है। ऑफसेट क्लॉज (एक ऐसी शर्त जो इस करार का हिस्सा है लेकिन इस्तेमाल दूसरी जगह होगा) के मुताबिक, फ्रांस इस करार की कुल राशि का करीब 50% भारत में रक्षा उपकरणों और इससे जुड़ी दूसरी चीजों में निवेश करेगा।