हिंदू पंचांग के अनुसार आज भाद्रपद अमावस्या (19 अगस्त) है, इस अमावस्या (Amavasya)को पिठौरी व कुशग्रहणी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर अमावस्या पर पितर तर्पण किया जाता है और इसका अपना एक विशेष महत्व होता है. भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अमावस्या को भाद्रपद अमावस्या कहा जाता है. भाद्रपद मास की अमावस्या को कृष्ण जी को समर्पित किया जाता है. कुशोत्पाटनी अमावस्या पर उखाड़ा गया कुश 1 वर्ष तक प्रयोग किया जा सकता है. ऐसे तो किसी भी अमावस्या के दिन उखाड़ा गया कुश एक साल तक प्रयोग किया जा सकता है. कुश को हमारे शास्त्रों में विशेष शुद्ध माना गया है. हमारे शास्त्रों में जप इत्यादि करते समय कुश को पावित्री के रूप में धारण करने का नियम है. कुश उखाड़ने के लिए श्रद्धालुओं को निम्न रीति का प्रयोग करना चाहिए. श्राद्ध पक्ष में कुश की महती आवश्यकता होती है. अमावस्या के दिन दान और पितृ तर्पण का विशेष महत्व होता है.
इस अमावस्या पर कुश (घास) का बहुत महत्व माना जाता है, भादप्रद की अमावस्या को धार्मिक कार्यों जैसै श्राद्ध आदि करने में कुश का उपयोग किया जाता है, इसलिए इसे कुश ग्रहणी अमावस्या भी कहा जाता है. कुछ लोग इसे भादों अमावस्या भी कहते हैं. भाद्रपद अमावस्या का महत्व पितृ तर्पण के लिए यह दिन बहुत उत्तम होता है. साथ ही कृष्ण पक्ष में पड़ने की वजह से यह अमावस्या कृष्ण जी को समर्पित की जाती है, जिसके कारण इसका महत्व और ज्यादा माना गया है. इस दिन देवी दुर्गा की पूजा का महत्व भी माना गया है.
कुशग्रहणी अमावस्या तिथि आरंभ
18 अगस्त 2020 को 10 बजकर 41 मिनट पर कुशग्रहणी अमावस्या तिथि आरंभ
19 अगस्त 2020 को 08 बजकर 12 मिनट पर अमावस्या तिथि समाप्त
धार्मिक दृष्टि से यह तिथि बहुत महत्वपूर्ण होती है. पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिये इस तिथि का विशेष महत्व होता है. क्योंकि इस तिथि को तर्पण, स्नान, दान आदि के लिये बहुत ही पुण्य फलदायी माना जाता है. भारत का प्रमुख त्योहार दीपावली अमावस्या को ही मनाया जाता है. सूर्य पर ग्रहण भी इसी तिथि को लगता है. कोई जातक यदि काल सर्पदोष से पीड़ित है तो उससे मुक्ति के उपाय के लिये भी अमावस्या तिथि काफी कारगर मानी जाती है.
भाद्रपद अमावस्या तिथि प्रारंभ
18 अगस्त को 10 बजकर 41 मिनट पर अमावस्या तिथि आरम्भ
19 अगस्त को 08 बजकर 12 मिनट पर अमावस्या तिथि समाप्त
अमावस्या तिथि पर क्या करें और क्या ना करें
अमावस्या तिथि पर भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन करना शुभ माना जाता है.
इस तिथि पर पितरों का तर्पण करने का विधान है. यह तिथि चंद्रमास की आखिरी तिथि होती है.
इस तिथि पर गंगा स्नान और दान का महत्व बहुत है.
इस दिन क्रय-विक्रय और सभी शुभ कार्यों को करना वर्जित है.
अमावस्या के दिन खेतों में हल चलाना या खेत जोतने की मनाही है.
इस तिथि पर जब कोई बच्चा पैदा होता है तो शांतिपाठ करना पड़ता है.
कुश उखाड़ने का नियम
प्रात: काल स्नान के उपरांत सफेद वस्त्र धारण कर कुश उखाड़ें.
कुश उखाड़ते समय अपना मुख उत्तर या पूर्व की ओर रखें.
सर्वप्रथम ‘ॐ’ बोलकर कुश का स्पर्श करें. फिर निम्न मंत्र पढ़कर प्रार्थना करें.
‘विरंचिना सहोत्पन्न परमेष्ठिनिसर्जन।
नुद सर्वाणि पापानि दर्भ! स्वस्तिकरो भव॥’
तत्पश्चात् हथेली और अंगुलियों के द्वारा मुट्ठी बनाकर एक झटके से कुश उखाड़ें. कुश को एक बार में ही उखाड़ना चाहिए. अत: पहले उसे लकड़ी के नुकीले टुकड़े से ढीला कर लें, लोहे का स्पर्श ना करावें.
कुश उखाड़ते समय ‘हुं फ़ट्’ कहें.
प्रयोग करने योग्य कुश
जिसका अग्रभाग कटा न हो.
जो जला हुआ ना हो.
जो मार्ग या गंदे स्थान पर ना हो.