एक फिल्म आई थी उरी द स’र्जीकल स्ट्रा’इक । उसका एक डायलॉग बहुत फेमस हुआ था – यह नया इंडिया है यह घर में घुसकर मा’रता है । मोदी जी और योगी जी ने उस नया इंडिया की कहानी को आज सच कर दिया । विकास दुबे जिस एनकां’उटर के ड’र से दिल्ली के किसी कोर्ट में सरेंडर न कर महाकाल के दरबार में आकर स’रेंडर किया वहीं आज उसी एन’कांउटर में मारा गया । मैसेज एकदम लाउड एंड क्लीयर है कि दोषी को अब अदालत तक ले जाने की जहमियत नहीं उठानी पड़ेगी । यह नया भारत है यहॉं फैसला ऑन द स्पॉट होगा । कृष्णकांत ने इस मुद्दे पर अपनी बेबाक राय दी है । हवाबाज मीडिया बिना किसी कांट-छांट के उनके राय को सीधे यहॉं चस्पा कर रही है । आप भी पढि़ये और अपनी राय दीजिये ।
क्या भारत का समूचा तंत्र अब मॉ’ब जस्टिस करेगा? क्या दु’र्दांत अ’पराधियों को कोर्ट से महीने-पंद्रह दिन में सजा नहीं दिलवाई जा सकती? जिन नेताओं ने ऐसे अ’पराधी को दशकों से संरक्षण दिया हुआ था, क्या उनका भी ए’नकाउंटर होगा? क्या विकास दुबे का सियासी कनेक्शन छुपाने के लिए उसे मा’रा गया? ये पोस्ट रात को लिखी थी, लेकिन कुछ सोचकर पोस्ट नहीं की। परंतु अब सुबह खबर मिल रही है कि विकास दुबे मु’ठभेड़” में मा’रा गया।
उज्जैन में जो भी हुआ, इतना तो तय था कि वह गिर’फ्तारी नहीं थी। दुबे ने आ’त्मसम’र्पण किया था। उसके एक साथी को भी पकड़कर मा’र दिया गया। थ्योरी वही है। गाड़ी खराब हुई और मु’ठभेड़ हुई। क्या भारत का पुलिस तंत्र इतना अक्षम हो चुका है कि वह एक अ’पराधी नहीं संभाल सकता? जिसने आत्मसम’र्पण किया वह मु’ठभेड़ क्यों करेगा? विकास दुबे का म’रना ही उचित था, लेकिन बेहतर होता कि उसे कानून मा’रता। क्या हमारे देश में न्यायपालिका खत्म हो चुकी है? क्या हर अ’पराधी न्यायालय के बाहर मा’रा जाएगा?
न्यायालय के बाहर हर मौ’त की सजा न्याय नहीं है, गैर-न्यायिक ह’त्या है। ‘ठों’क देने’ का कानून मध्यकाल में भी ब’र्बर माना जाता था। आज तो है ही। यूपी में बड़ी पुरानी कहावत है- खेत खाये गदहा, मा’र खाए जुलहा। यह तो न्याय नहीं हुआ। कोई भी प्रशासक अगर कानून का शासन नहीं चला सकता तो वह किसी लायक नहीं हैं। धड़ाधड़ ह’त्याएं करना न्याय नहीं है।
कल उसके बेटे और पत्नी के नाम पर फ़ोटो वायरल हुई। उसके पहले उसके घर और गाड़ी तो’ड़ने की फ़ोटो वायरल हुई। उसके पांच साथी भी मु’ठभेड़ में मा’रे गए। सरकार अपने कृ’त्यों से लोगों को विवश कर रही है कि वे एक दु’र्दांत अप’राधी के पक्ष में तर्क दें। किसी व्यक्ति के क्रू’रतम अ’पराध के लिए आप उसका घर गिरा दें, गाड़ी कु’चल दें, उसके पत्नी और बच्चों को प्र’ताड़ित करें, यह न्यायिक प्रक्रिया नहीं है।
विकास दुबे ने हमारे आठ सिपाहियों को मा’रा था। उसके प्रति किसी को कोई सहानुभूति नहीं हो सकती। लेकिन अपराधियों को मा’रने के लिए कानून को क्यों मा’र दिया जा रहा है? न्याय प्रक्रिया में देर होती है तो न्यायिक सुधार करना था। वह करने की कूवत किसी में नहीं। कल को आपके ऊपर कोई आरोप लगे और आपको गो’ली मा’र दी जाए? मुझे मालूम है कि कई लोग इस “क्रू’रतम कृत्य” का समर्थन करेंगे।