महाराष्ट्र के बुलढाना जिले से एक हैरान करने वाली घटना सामने आई है. यहां की मशहूर लोनार झील का पानी अचानक लाल रंग में बदल गया है. पहली बार हुए इस बदलाव को देखकर आम लोग और वैज्ञानिक हैरान हैं.
बुलढाना जिले के तहसीलदार सैफन नदाफ ने बताया कि पिछले 2-3 दिन से लोनार झील का पानी लाल रंग में बदल गया है. हमने वन विभाग को पानी के सैंपल लेकर जांच कर कारण पता करने को कहा है.
अचानक लाल हुआ लोनार झील का पानी, वैज्ञानिक हैरान, देखने उमड़ी भीड़
वैज्ञानिकों का कहना है कि लोनार झील में हैलोबैक्टीरिया और ड्यूनोनिला सलीना नाम के कवक (फंगस) की वजह से पानी का रंग लाल हुआ है. निसर्ग तूफ़ान की वजह से बारिश हुई जिस कारण हैलोबैक्टीरिया और ड्यूनोनिला सलीना कवक झील की तलहट में बैठ गए और पानी का रंग लाल हो गया. हालांकि, वैज्ञानिकों का कहना यह भी है कि लोनार झील का पानी लाल होने के पीछे और भी कई कारण हो सकते हैं. जिसकी जांच होना अभी बाकी है.
वहीं, लोनार झील के पानी का रंग लाल होने के बाद आसपास के इलाकों से बड़ी तादाद में लोग झील देखने के लिए आ रहे हैं. कुछ लोग तो इसे चमत्कार मान रहे हैं तो वहीं कई अफवाहों ने जोर पकड़ लिया है.
मालूम हो कि लोनार झील बेहद रहस्यमयी है. नासा से लेकर दुनिया भर की तमाम एजेंसियां इस झील के रहस्यों को जानने में बरसों से जुटी हुई है.
लोनार झील का आकार गोल है. इसका ऊपरी व्यास करीब 7 किलोमीटर है. जबकि यह झील करीब 150 मीटर गहरी है. अनुमान है कि पृथ्वी से जो उल्का पिंड टकराया होगा, वह करीब 10 लाख टन का रहा होगा जिसकी वजह से झील बनी थीं.
लोनार झील का पानी खारा है. इस झील से जुड़ा हैरान करने वाला एक वाकया यहां के ग्रामीण भी बताते हैं. वो कहते हैं कि 2006 में यह झील सूख गई थी. उस वक्त गांव वालों ने पानी की जगह झील में नमक देखा था साथ ही अन्य खनिजों के छोटे-बड़े चमकते हुए टुकड़े देखे. लेकिन कुछ ही समय बाद यहां बारिश हुई और झील फिर से भर गई.
हाल ही में लोनार झील पर हुए शोध में यह सामने आया है कि यह लगभग 5 लाख 70 हजार साल पुरानी झील है. यानी कि यह झील रामायण और महाभारत काल में भी मौजूद थी.
वैज्ञानिकों का मानना है कि उल्का पिंड के पृथ्वी से टकराने के कारण यह झील बनी थी, लेकिन उल्का पिंड कहां गया इसका कोई पता अभी तक नहीं चला है.
वहीं, सत्तर के दशक में कुछ वैज्ञानिकों ने यह दावा किया था कि यह झील ज्वालामुखी के मुंह के कारण बनी होगी. लेकिन बाद में यह गलत साबित हुआ, क्योंकि यदि झील ज्वालामुखी से बनी होती, तो 150 मीटर गहरी नहीं होती.
नासा के वैज्ञानिकों ने कुछ साल पहले इस झील को बेसाल्टिक चट्टानों से बनी झील बताया था. साथ ही यह कहा था कि इस तरह की झील मंगल की सतह पर पाई जाती है. क्योंकि इसके पानी के रासायनिक गुण भी वहां की झीलों के रासायनिक गुणों से मेल खाते हैं.
इस झील को लेकर कई पौराणिक ग्रंथों में भी जिक्र मिलता है. जानकार बताते हैं कि झील का जिक्र ऋग्वेद और स्कंद पुराण में भी मिलता है. इसके अलावा पद्म पुराण और आईन-ए-अकबरी में भी इसका जिक्र है.
Input: aaj tak