पीड़िता को न्याय तब मिलता जब आ’रोपियों का फुल स्पीड से ट्रायल होता। उनको सुप्रीम कोर्ट का मुंह दिखाने से लेकर राष्ट्रपति के पास से दया याचिका खारिज होने तक का काम महीने भर में निपट जाता। चाहे इसके लिए रात में कोर्ट खोलना पड़ता या बाकी सारे केस रोकने पड़ते या राष्ट्रपति को जगाना पड़ता। ये सब नहीं होता है इसलिए आम आदमी ऐसे कथित ए’नकाउंटर में खुशी खोजता है। उसके पास और कोई चारा नहीं है।
डर के माहौल में यही क्या कम है कि पुलिस ने इंसाफ कर दिया, ये त्वरित गलत कदम उसकी नजर में न्याय बन गया। आज वही पुलिस वाले हीरो हैं जिन्होंने तब उसकी बहन को ये कहकर भेज दिया था कि ये हमारे थाने का मामला नहीं है।
महिला के साथ हुआ अ’पराध सारे अपराधों से बड़ा है। अभी सिर्फ महिलाएं ड’र के साये में नहीं हैं। जिनके घरों में महिलाएं हैं उन पुरुषों को भी डर लगता है। आधी नहीं पूरी आबादी ड’री हुई है साहब। एक महिला के साथ कुछ गलत होता है तो वह अकेले नहीं, उसका पूरा परिवार तबाह होता है। ये हमारी पहली प्रायोरिटी होनी चाहिए लेकिन सिस्टम, सरकार और न्यायपालिका की नाकामी से आदमी को एनकाउंटर में खुशी खोजनी पड़ रही है।
लेखिका मैथिली के न्यूजपोर्टल की संपादिका है । फेसबुकर पर अपने बेबाक टिप्पणी के लिये मशहूर है । इनसे esamaad@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है ।