ज़मीं पे बहते लहू का हिसाब चाहता हूं
मैं अब गुलाब नहीं, इन्कलाब चाहता हूं
मेरे वी ख़्वाब जिन्हें रोज़-ओ-शब जलाते हो
सरे निगाह में फिर से वो ख़्वाब चाहता हूं
मैं अब गुलाब नहीं, इन्कलाब चाहता हूं
मेरे सवाल पर कैसे उछल के भागता है
मुझे जवाब तो दे दे, जवाब मांगता हूं
मैं अब गुलाब नहीं इन्कलाब चाहता हूं
ज़रा सी बात उन्हें क्यों समझ नहीं आती
मैं तुझसे सिर्फ़ कलम और क़िताब चाहता हूं
मैं अब गुलाब नहीं इन्कलाब चाहता हूं
ये एक गीत है यूट्यूब पर। आधी रात को किसी ने मोबाइल से फ़िल्मा लिया है। जो लड़का झूम कर गा रहा है उसे पता भी नहीं चला होगा। आंखें काम नहीं करतीं बचपन से। लेकिन नज़र रखता है और उसका पता ये गीत ही बता देता है।
शशिभूषण समद। JNU के छात्र। समद तख़ल्लुस है। क्योंकि शशिभूषण लिखते हैं। कविताएं-नज्में। शशिभूषण ने जब ये तख़ल्लुस रखा होगा तो निश्चित तौर पर वो ईश्वर नहीं होना चाहते होंगे। क्योंकि समद का एक मतलब ईश्वर भी होता है। समद को भूख-प्यास लगती ही होगी। अमरता का शाप शशिभूषण नहीं ही भुगतना चाहते होंगे।
यूट्यूब पर ‘शशिभूषण समद’ नाम टाइप करने पर सैकड़ों वीडियो दिखाई देते हैं। कविता पाठ। नज़्म कहना। गीत गाना। सब कुछ है यूट्यूब पर। तीखी नज़रों वाले सुर जो हमारे आपके अंधेरों में भी अपना रास्ता पक्का कर ही लेते हैं।
समद गए महीनों में सोशल मीडिया पर ख़ूब चर्चित रहे हैं। वजह है ‘दस्तूर’। हबीब जालिब की लिखी एक नज़्म। जिसे शशिभूषण ने JNU में गाया। हाथ में पकड़े मोबाइल को ढपली बनाकर ताल काटते समद ने जब झूमकर गाया ‘ऐसे दस्तूर को सुबह-ए-बेनूर को, मैं नहीं मानता, मैं नहीं मानता…’ तो सोशल मीडिया पर लोग उफ्फ्फ कर बैठे।
लेकिन अभी शशिभूषण समद की बात क्यों? क्योंकि समद फिर से चर्चा में हैं। और लोग फिर उफ्फ्फ कह रहे हैं। समद अस्पताल में भर्ती हैं। JNU में फ़ीस बढ़ोत्तरी के लिए तनातनी चल रही है। कई दिनों से। बीती 18 नवंबर को छात्रों ने एक मार्च निकाला। समद इस प्रोटेस्ट में शामिल थे। वकीलों से मामला निपटाकर दिल्ली पुलिस भी मौजूद थी। फिर ख़बर आई कि छात्रों पर दिल्ली पुलिस ने लाठियां चला दीं। खून से सना माथा लिए छात्र दिखने लगे। चीखते चिल्लाते छात्रों से दिल्ली पुलिस जाने कौन सा हिसाब बराबर करना चाहती थी। समद का कहना है कि उन्हें दिल्ली पुलिस के जवानों ने बूटों से कुचला। समद को AIIMS में भर्ती कराया गया। वहां फ़िलवक्त शशिभूषण समद की हालत ख़तरे से बाहर बताई जा रही है।
आज सुबह 19 नवंबर को शशिभूषण समद ने अपने फ़ेसबुक पेज से एक लाइव किया। इस लाइव में शशिभूषण ने बताया कि कब-कैसे-कहां उनपर पुलिस हमलावर हुई।
शशिभूषण समद बताते हैं-
मैं उन सभी छात्रों का इस्तक़बाल करता हूं जिन्हें कल 18 नवंबर को पुलिस ने पीटा है। पुरुष पुलिस वालों ने JNU की लड़कियों को पीटा। उन्हें ब्लेड मारा। उन्हें मॉलेस्ट किया। हम लोग जोरबाग में शांति से प्रदर्शन कर रहे थे। पुलिस ने वहां से भगाना चाहा। हमने कहा कि हमारी मांगे पूरी होंगी तभी जाएंगे। हम पूरे देश में शिक्षा को सस्ती करने की मांग कर रहे हैं। ना कि सिर्फ़ JNU में। इसमें क्या ग़लत है। हम क्या नारे लगा रहे थे।
‘सबको शिक्षा सबको काम, वरना होगी नींद हराम’
‘सबको शिक्षा दे न सके जो वो सरकार निकम्मी है’
‘जो सरकार निकम्मी है वो सरकार बदलनी है’
इसमें कौन सा देशद्रोह दिख रहा है। लेकिन पुलिस और सरकार को इसमें देशद्रोह दिख रहा है।
पुलिस वालों ने बिना कुछ कहे लाठियां चला दीं। मेरे साथ के लोग मुझे वहां से निकालने की कोशिश कर रहे थे। लगातार पुलिस वालों से कह रहे थे कि ‘ये ब्लाइंड है इसे मत मारो’ लेकिन कोई नहीं सुन रहा था। किसी पुलिस वाले ने सबसे पहले एक डंडा ज़ोर से मेरी पीठ पर मारा। फिर मुझे दो तीन डंडे और पड़े। मैं आगे की तरफ़ भागा। मुझे लगातार डंडे पड़ रहे थे। फिर मुझे किसी पुलिसवाले ने ज़मीन पर पटक दिया। मैंने उनसे कहा कि मैं ब्लाइंड हूं। कम से कम मुझे तो मत मारो। इस पर एक पुलिसवाले ने कहा ‘ब्लाइंड हो तो प्रोटेस्ट में क्यों आए?’
यही बोलकर मुझे लात जूतों से पेट पर गर्दन पर पीटा गया। फिर मुझे ज़बरदस्ती कहा गया कि ‘भाग’। और जब मैं किसी तरह से उठकर भागा तो मेरे पांवों पर डंडे बरसाए गए। आगे कोई एक लड़की थी। जिसे ख़ुद भी मार पड़ रही थी। मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और वहीं गिर गया उसके आगे नहीं भाग पाया।
मैं सारी स्टूडेंट कम्युनिटी से अपील करता हूं कि देश में जहां जहां भी फ़ीस वृद्धि हुई है वहां स्टूडेंट्स को आगे आना चाहिए। देश को उस नैरेटिव से आगे बढ़ना होगा कि सिर्फ़ JNU ही विरोध कर रहा है। लोग कमेंट कर रहे हैं कि ‘तुम्हें पीटा गया तो अच्छा हुआ। तुम्हें संस्कार नहीं है’ लेकिन मैं उन लोगों से ये पूछना चाहता हूं कि संस्कार कहां से आते हैं? शिक्षा से ही न ? और हम उसी शिक्षा के लिए तो लड़ रहे हैं। जब शिक्षा मिलेगी तभी तो संस्कार तय किए जाएंगे कि हमारे देश का, हमारे गांव का संस्कार क्या हो?
ये बनारस का पानी है
शशिभूषण में ये इन्कलाब यूं ही नहीं आया। इसकी नींव में बनारस है। अब पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र। BHU से इए इन्कलाबियत आई समद में। शशीभूषण ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया। शशि बताते हैं कि मेरी मां को हमेशा से चिंता रही कि पहले तो ‘अपने जैसे’ (दिव्यांग) लोगों के बीच था तो पढ़ लिया। अब जब नॉर्मल लोगों के बीच जा रहा है तो कैसे पढ़ेगा। लेकिन BHU ने, छात्रों ने कभी शशिभूषण से दोहरा बर्ताव नहीं किया।
BHU Buzz नाम से एक फ़ेसबुक पेज बनाया था। तब उस पर 40 हज़ार से ज़्यादा फॉलोअर्स थे। शशिभूषण ने BHU में ही एक ‘जॉइंट ऐक्शन कमेटी’ बनाई थी। शशिभूषण का मानना था कि जिस शहर में यूनिवर्सिटी है उसे साफ़ रखना और सामजिक रखना भी यूनिवर्सिटी की ज़िम्मेदारी है। यूनिवर्सिटी के छात्रों की ज़िम्मेदारी है। इसलिए शशिभूषण ने बनारस के मल्लाहों की बात की। उन्हें जोड़ा संगठन से। BHU की सेंट्रल लाइब्रेरी को व्यवस्थित करने के आंदोलन में आगे रहे।
शशिभूषण समद अपने भीतर के विद्रोह को बनारस की पैदाइश मानते हैं। अस्पताल में हैं। अस्पताल में शशिभूषण अकेले नहीं हैं। उनके साथ पूरी व्यवस्था को ऑक्सीजन लगा हुआ है। लोकतंत्र को ड्रिप चढ़ रही है और निज़ाम ने बांहें चढ़ा ली हैं।
शशिभूषण समद ने कभी ये दुनिया नहीं देखी। लेकिन सपने बहुत देखे हैं। सपनों पर ख़ूब लिखा है, नारे लगाए हैं और गीत गाए हैं। नहीं पता उनके सपनों में सरकार का चेहरा क्या होगा। समद ने वो अक्षर भी कभी नहीं देखे जिन्हें तराशकर वो कविता कहते हैं। लेकिन अपने गीतों और कविताओं में वो दुष्यंत की उसी पगडंडी पर खड़े कहीं इंतज़ार करते दिखाई देते हैं जहां कभी दुष्यंत ने कहा था –
सुनसान गलियों से चोरों की तरह गुज़रते हुए
अपने-आप से सवाल करता हूँ –
क्या आज़ादी सिर्फ़ तीन थके हुए रंगों का नाम है
जिन्हें एक पहिया ढोता है
या इसका कोई खास मतलब होता है?
और बिना किसी उत्तर के आगे बढ़ जाता हूं
चुपचाप
साभार – द लल्लनटॉप