Hyderabad के Dr. Priyanka Reddy rape and murder case के बाद क्या कहें, आप सोलो ट्रिप की बात करते हैं, बॉस हम उस देश में रहते हैं जहां घर से कुछ मील की दूरी पर लड़कियां ज़िंदा जला दी जाती हैं। बलात्कार करने के बाद। हम लड़कियां घर से, ऑफ़िस के लिए निकलती हैं और सही सलामत, ज़िंदा घर लौट आती हैं तो मां -पापा के साथ ख़ुद को भी लगता है कि कोई जंग फ़तह कर लौटी हैं। हमारे लिए किसी पहाड़ चढ़ने से कम नहीं है लोगों की गंदी नज़रों से ख़ुद को बचाते हुए ज़िंदा रहना। मुबारक हो तेलंगाना सरकार के साथ भारत सरकार को भी। मतलब कि संसद में अभी प्रज्ञा ठाकुर (Pragya Thakur), राजनीति गोडसे और गांधी के नाम पर कर रहीं हैं। उनसे ये नहीं हो रहा कि एक स्त्री होने के नाते देश की इस बेटी को इंसाफ़ मिले इसलिए आवाज़ उठायें।
वैसे उन्हें तो पता भी नहीं होगा कि, एक और लड़की जो डॉक्टर थी और अपने क्लिनिक से किसी मरीज को देख कर लौट रही थी। रास्ते में उसकी स्कूटर पंक्चर हो जाती है। वो अपनी बहन को कॉल करके बताती है कि स्कूटर सही नहीं हो रहा। छोड़ कर भी नहीं आ सकती क्योंकि कोई चुरा ले जाएगा। ऊपर से अग़ल-बग़ल से गुजर रहे एक-दो गाड़ी वाले अजीब नज़रों से घूर रहें मुझे डर लग रहा। ये बातें साढ़े नौ बजे रात, बुधवार को हो रही होती हैं। फिर वो अपनी बहन को बताती है, दो अजनबी उसको हेल्प के लिए पूछ रहें तो वो उन पर भरोसा करके हां कर देती है। उसके बाद से उसका फ़ोन स्विच ऑफ़ आने लगता है। घर वाले रात को एक बजे मिसिंग की काम्प्लेन दर्ज करवाते हैं और अगली सुबह उन्हें अपनी बेटी की जली हुई लाश सड़क के किनारे पड़ी मिलती है।
तो है हमारा प्यारा और महान भारत। जहां सांझ ढले बेटियों के बलात्कार और ज़िंदा जलाने जैसे सुकर्म होते हैं। क़ानून-व्यवस्था का क्या ही कहना। बलात्कारी पकड़ाने के बाद भी सबूत के अभाव में छूट जाते हैं। कई बार इन्हें सिलाई मशीन दे कर छोड़ दिया जाताऔर ज़्यादातर तो पकड़े ही नहीं जाते।और हम सोशल मीडिया पर हैशटैग के साथ पोस्ट लिख कर भुल जाते हैं या अगली बलात्कार की घटना का इंतज़ार करते हैं।
मैं बहुत मुत्तमईंन हूं इस केस के भी बारे में। यहां भी कुछ नहीं होने वाला। किसी को सजा नहीं मिलने वाली। मैं अपनी फ़्रस्ट्रेशन कम करने के लिए लिख रही हूं क्योंकि इससे ज़्यादा मैं कुछ कर भी नहीं सकती। आख़िर बलत्कारियों की ये फ़ौज भी तो हम ही तैयार करके दे रहें हैं न। अकेले पुलिस या सरकार कुछ कर नहीं सकती। हमें समाज को सेंसेटाइज़ करने की दरकार है।
आपको क्या लगता है कि ये बलात्कारी एक दिन में पैदा हो जाते हैं? नहीं इन्हें हमारा समाज तैयार करता है। ये बलात्कारी पहले अपने सबसे करीबी लोगों को ग़लत तरीक़े से छू कर, फिर गली में अकेली लड़की को देख कर फ़ब्तियां कसते हैं। धीर-धीरे इनका हौसला बढ़ने लगता है तो फिर अजनबी लड़कियों को छूना शुरू करते हैं और फिर एक दिन मौक़ा पा कर बलात्कार। और एक लड़के के अंदर हो रहे बदलाव को उसकी मां या बीवी देख और समझ भी रही होती मगर चुप रहना वो अपना धर्म समझती हैं।
ख़ैर, इस पर डिटेल से कई बार लिख चुकी हूं। बस आज वो माएं, पत्नियां थोड़ा तो आज शर्म कर लें जो अपने आंचल के साये में कभी पुत्र-मोह तो कभी पति-मोह में आ कर इनकी हिफ़ाज़त कर रहीं। वैसे सुनने में बुरा लगेगा मगर जान लीजिए जिस दिन आप भी अकेली हाथ में आ जाएंगी किसी के, ये आपके साथ भी जाएगा।
सॉरी डॉक्टर! तुम एक बेहतर दुनिया, एक बेहतर देश डिजर्व करती हो।
अनु रॉय वाया आईचौक