हर साल जिस लाल किले पर आजादी का जश्न मनाया जाता है, वहां 26 जनवरी को किसान काबिज हो गए। लाल किले पर प्रदर्शनकारियों ने कब्जा कर लिया। एक आंदोलनकारी ने खालसा पंथ और किसान संगठनों का झंडा फहरा दिया। इससे पहले ट्रैक्टर परेड करने दिल्ली में दाखिल हुए हजारों किसान लाल किले तक पहुंचे और चप्पे-चप्पे पर काबिज हो गए। वहां नारेबाजी, हुड़दंग, धक्का-मुक्की सबकुछ होता रहा।
तय रूट तोड़कर लाल किले की तरफ मुड़े किसान
किसानों का जो रूट पुलिस ने तय किया था, उसमें लाल किला कहीं नहीं आता। सिंघु बॉर्डर से जो किसान दिल्ली में दाखिल हुए, वही रूट तोड़कर लाल किले की ओर बढ़ गए। संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर से उन्हें आउटर प्वाइंट की तरफ जाना था, लेकिन उधर ना जाकर वो लाल किले की तरफ मुड़ गए। मुबारका चौक पर कुछ किसानों को पुलिस ने रोका भी, लेकिन हाथापाई के बाद पुलिस हट गई और वहां हजारों किसान जमा हो गए। इसके बाद ये सभी लाल किले में दाखिल हुए। लाल किले के बाहर किसानों ने अपने ट्रैक्टर खड़े कर दिए हैं।
किसान संगठन बोले- ये राजनीतिक दलों के लोग, बदनाम करना चाहते हैं
लाल किले पर पुलिस प्रदर्शनकारियों को समझाती रही कि तिरंगा उतारकर अपने झंडे लगाना ठीक नहीं है। लेकिन, प्रदर्शनाकारी नहीं माने। इस दौरान तिरंगे, किसान संगठनों के झंडों के अलावा वाम दलों का झंडा भी नजर आया। इस हिंसा और उग्र आंदोलन पर किसान संगठनों का कहना है कि ये बदनाम करने की साजिश है। भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि हम जानते हैं कि कौन व्यवधान खड़ा करने की कोशिश कर रहा है। ये उन राजनीतिक दलों के लोग हैं, जो आंदोलन को बदनाम करना चाहते हैं।