जासूसी का काम सुनने में जितना रोमांचक लगता हैस लेकिन उतना ही मुश्किल और जानलेवा होता है. ख़ासकर, जब इस काम के लिए किसी को अपना धर्म, अपना देश, अपनी पहचान और अपना परिवार सबकुछ खोना पड़े. कुछ समय पहले आई मेघना गुलज़ार और आलिया भट्ट की फ़िल्म ‘राज़ी’ में भारतीय जासूस सहमत की कहानी सामने आई थी. इस फ़िल्म दर्शकों को जासूसी के ख़तरों की एक झलक भर दी थी.
देश के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगाने वाली ‘सहमत’ अकेली नहीं थी बल्कि उसके जैसा एक और हीरो था, जो भारत से पाकिस्तान गया था. उस हीरो को रवीन्द्र कौशिक के नाम से जाना जाता है. रवीन्द्र जो पाकिस्तान सेना के मेजर पद तक पहुंच गया पर उसने भारत के 20 हज़ार सैनिकों की जान बचाई. ये थी पाकिस्तान में रहते हुए भारत के लिए काम करने वाले जासूस रविन्द्र कौशिक की कहानी.
नाटक करते-करते जासूस बन गए रवीन्द्र
बात उन दिनों की है जब देश आज़ाद हुआ था. भारत और पाकिस्तान के लोगों ने बंटवारे का दंश झेला था और दोनों ही देश उस हादसे के बाद एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन बन बैठे थे. दोनों ही देशों के पास अपनी सेनाएं तैयार थी. हमला कभी भी हो सकता था.
इस दौरान पाकिस्तान के साथ-साथ भारत में भी जासूसी का काम एक नए करियर विकल्प और देशसेवा के तौर पर उभरा. रॉ के गठन के साथ ही भारत को अच्छे जासूसों की तलाश रही. जब देश में अस्थिरता का माहौल था, तब राजस्थान के पास पाकिस्तान सीमा से सटे शहर गंगानगर के एक पंजाबी परिवार में 1952 में जन्म हुआ रवीन्द्र कौशिक का.
रवीन्द्र और उसके परिवार का दूर-दूर तक भारतीय सेना या राजनीति से संबंध नही था. साधारण परिवार में पले रहे रवीन्द्र के भीतर अचानक ही अभियन की कला ने जन्म लिया. घर पर माता-पिता और पड़ोसियों की नकल करते-करते कब रवीन्द्र के भीतर अभिनेता बनने की इच्छा जाग गई, उन्हें भी पता नहीं चला.
एक्टिंग की इच्छा को पूरा करने के लिए रवीन्द्र नेशनल ड्रामा प्रेजेंटेशन में भाग लेने लखनऊ पहुंचे. उस वक्त तक देश में रॉ एजेंसी स्थापित हो चुकी थी और वहां अच्छे जासूसों की तलाश थी. जिस नाटक में रवीन्द्र हिस्सा ले रहे थे, उसे देखने के लिए सेना के अधिकारी मौजूद थे, क्योंकि नाटक की थीम चीन और भारत के हालातों पर आधारित थी. इसमें रवीन्द्र ने एक ऐसे भारतीय का किरदार निभाया जो चीन पहुंच कर वहां फंस जाता है.
वो कई यातनाएं झेलता है, लेकिन अपने देश के प्रति उसका प्रेम कम नहीं होता. इस नाटक ने सेना के अधिकारियों को प्रभावित किया और उससे भी ज्यादा प्रभावित किया रवीन्द्र के अभिनय ने. उन्होंने रवीन्द्र को रॉ एजेंसी में शामिल होने का न्यौता दिया, जिसे रवीन्द्र मना नहीं कर पाए और इस तरह उनकी जासूसी जिंदगी की शुरुआत हुई.
साभार – इंडिया टाइम्स