प्रधानमंत्री मोदी अपने कल के संबोधन में देशवासियों को बहुत सी बातें बताना भूल गए हैं मसलन उन्हें यह बताना चाहिये था कि देश मे कोरोना के इतने कम मामले आने की असली वजह यह है कि देश मे सिर्फ उन्ही लोगों के परीक्षण किये जा रहे है जो या तो कोरोना वायरस से प्रभावित किसी देश की यात्रा करके लौटे हैं या फिर कोरोना वायरस के किसी पुष्टि मामले से जुड़े हैं और उनमें 14 दिनों के क्ववेरंटाइन में रखने के बाद भी लक्षण नजर आते हों।
मोदी जी को यह भी बताना चाहिए था कि सवा सौ करोड़ से भी अधिक की आबादी वाले भारत में कोरोना वायरस की टेस्टिंग के लिए 52 सेंटर्स हैं ओर देश की क्षमता रोजाना 10000 टेस्ट करने की है लेकिन भारत कुछ दिनों पहले तक हर रोज सिर्फ 90 टेस्ट ही कर रहा था पिछले दो-तीन दिन से हर रोज 500 से 700 सैंपल टेस्ट किए जा रहे है इसलिए कम मामले सामने आ रहे हैं ।
अभी तक कोरोना के लगभग 11500 परीक्षण ही किए गए है यानी अभी उस क्षमता का 5 से 7 फ़ीसदी इस्तेमाल हो रहा है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO ने सभी देशों से इस महामारी पर रोक लगाने के लिए ज्यादा से ज्यादा परीक्षण करने की सलाह दी है ।
दक्षिण कोरिया अब तक 5 हजार प्रतिदिन की औसत से अब तक 2 लाख 40 हजार टेस्ट कर चुका है जबकि भारत जैसा देश सिर्फ 12 से 13 हजार ।
इटली में हर 10 लाख आबादी पर 826 लोगों का टेस्ट किया जा रहा है। जबकि भारत मे 10 लाख लोगों पर लगभग 3 लोगो की टेस्टिंग हो रही हैं।
एशिया और ओशिनिया में चिकित्सा संघों की संस्था (CMAAO) के अध्यक्ष डॉक्टर केके अग्रवाल इस तरीके से असहमत हैं वो कहते हैं, “ये तरीक़ा रेस्ट्रिक्टिव (सीमित करने वाला ) है। दक्षिण कोरिया, हांगकांग और सिंगापुर में लिबरल (उदार) तरीक़ा अपनाया गया है जहाँ कोरोना वायरस के लक्षण वाले हर मरीज़ का सरकारी और निजी अस्पतालों में तुरंत टेस्ट किया जाता है। भारत में भी दक्षिण कोरिया का मॉडल अपनाया जाना चाहिए ।
साफ दिख रहा है कि भारत WHO के निर्देशो का पालन नही कर रहा है लेकिन उसके बावजूद मोदी यह प्रचारित कर रहे हैं कि WHO ने उनकी पीठ ठोकी है ।
मोदी सरकार कम टेस्ट क्यो कर रही हैं उसकी एक बड़ी वजह टेस्ट की लागत है जहां कोरोना वायरस के टेस्ट मरीजों के लिए फ्री है वहीं सरकार को हर एक टेस्ट की 5000 रुपए की लागत आती है। भारत अपने कुल बजट का सिर्फ 3।7 फीसदी ही स्वास्थ्य क्षेत्र पर करता है। मोदी जी को कोरोना का खतरा समझते हुए इस फण्ड को कम से कम दोगुना कर देना चाहिए प्राइवेट लैब को तुरंत प्रभाव से कोरोना टेस्ट की अनुमति देनी चाहिए और उस टेस्ट की पूरी लागत सरकार को वहन करना चाहिए टेस्ट में जो लोग पॉजिटिव निकले उन्हें तुरंत आइसोलेशन में रखने की व्यवस्था करना चाहिए।
इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च सेंटर (ICMR) के एंडवांस्ड रिसर्च इन वायरोलॉजी सेंटर के पूर्व प्रमुख डॉ। जैकब जॉन ने कहा कि भारत का मौसम और जनसंख्या इस वायरस को फैलाने के लिए काफी है। क्योंकि लोग इलाज से और क्वारंटीन से बचने के लिए भाग रहे हैं, उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि अभी तक कोरोना मरीजों की संख्या धीमी गति से बढ़ रही है। लेकिन 15 अप्रैल तक कोरोना मरीजों की संख्या में 10 से 15 गुना ज्यादा हो जाएगी। क्योंकि देश में कोरोना वायरस को लेकर उठाए गए कदम पर्याप्त नहीं हैं।
मोदी सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय को 2 महीने पहले से Kovid-19 से कैसे बचाव किया जाए इस बारे में द्वारा देश के प्राइवेट डॉक्टरों की कार्यशाला का आयोजन करना चाहिए था ।
देश के प्राइवेट अस्पतालों में kovid -19 का फ्री इलाज की सुविधा दी जाए यह मोदी सरकार को पहले से सुनिश्चित करना चाहिए था जो अब तक उन्होंने नही किया है ।
सरकारी हस्पतालों में मात्र कुछ सौ बेड वाले वार्ड बना कर इस संक्रामक बीमारी से नही बचा जा सकता है यह बात सरकार को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए ।
इन सब परिस्थितियों को देखते हुए मोदी जी की एक बात से हम सबको तुरन्त सहमत हो जाना चाहिए कि हमे अपने घर से बाहर नही निकलना चाहिए …।अच्छा यही होगा कि जनता कर्फ्यू को अगले 2 हफ़्तों तक कंटीन्यू रखा जाए ।
सवारी सामान की खुद जिम्मेदार है ऐसे ही हमारी जान की जिम्मेदारी हमारी स्वंय की है Prevention is better than cure. मोदी सरकार के भरोसे मत बैठे रहिए क्योकि मोदी जी खुद हमारे भरोसे बैठे हुए है ।