पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा है कि सरकार का तेल के बिजनेस में रहने का कोई बिजनेस नहीं है। प्रधान ने टेलिकाम और एविएशेन सेक्टर का भी हवाला दिया जहां प्रतिस्पर्धा के कारण उपभोक्ताओं को कम कीमत में सुविधाएं मिली हैं।
तेल कंपनी की तुलना आप टेलिकाम और एविएशन से नहीं कर सकते हैं। वैसे दोनों सेक्टर की हालत ख़राब है। टेलिकाम की प्राइवेट कंपनियों को तीन महीने के भीतर 1 लाख 42 हज़ार करोड़ देने हैं जो मुमकिन ही नहीं है। रोज़गार देने वाला यह सेक्टर सूख चुका है। जिन कंपनियों ने फ्री में फोन दिए वे दूसरी शर्तों के साथ पैसे लेने लगे हैं।
भारत संचार निगम लिमिटेड(BSNL) को बर्बाद करने में सरकार की ही नीति थी। सारा दोष कर्मचारियों के ग़ैर पेशेवर तरीके पर लाद दिया जा रहा है। कर्मचारी भी सोचें कि उन्होंने नशे में अपनी छवि कितनी बिगाड़ ली कि जनता में उनके लिए सहानुभूति ही नहीं है। मगर आज बीएसएल के प्रबंध निदेशक का इंटरव्यू छपा है। वो बीएसएनल को 4 जी दिए जाने के लिए टेलिकाम डिपार्टमेंट को पत्र लिख रहे हैं। 4जी नहीं दिए जाने के कारण भी बीएसएनएल बर्बाद हुआ। अगर प्रतिस्पर्धा की इतनी ही चिन्ता थी तो सरकार ने बीएसएनएल को 4 जी क्यों नहीं दी और इसके नहीं देने से किस प्राइवेट कंपनी को ज़्यादा लाभ मिला? इतने आसान प्रश्न का उत्तर आप ख़ुद ढूंढें।
धर्मेंद्र प्रधान का यह बयान बीपीसीएल के निजीकरण को लेकर होने वाली कैबिनेट बैठक के पहले आया है। यह बैठक इस हफ्ते हो सकती है। यह बयान बता रहा है कि नवरत्न का दर्जा हासिल करने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों पर किसी निजी क्षेत्र के शहंशाह की नज़र लग गई है। सरकार अब खुल कर निजीकरण करेगी। राम मंदिर और धारा 370 पर बग़ैर सोचे समझे हिन्दी प्रदेश के लोगों का मिला प्रचंड समर्थन उसे निजीकरण के लिए प्रोत्साहित करेगा। जबकि इस सेक्टर से भी लोग निकाले जाएंगे और नई नौकरियां बंद होने वाली हैं।
सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में भर्ती आनी तो कब की कम हो चुकी है या बंद हो चुकी है। मैंने देखा है कि इन कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारी जो साल में एक किताब तक नहीं पढ़ते हैं मगर भक्ति में प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति पर झगड़ रहे थे। नोटबंदी का स्वागत कर रहे थे। अब इन सभी को आगे आकर निजीकरण के पक्ष में रैली करनी चाहिए। धर्मेंद्र प्रधान के बयान का स्वागत करना चाहिए क्योंकि मोदी सरकार कभी ग़लत कर ही नहीं सकती है। आज जब इनके अधिकारी एयरपोर्ट या स्टेशन पर मिलते हैं तो मुझे घेर लेते हैं। कहने लगते हैं कि निजीकरण नहीं होना चाहिए। इसमें बड़ा खेल हो रहा है। धर्मेंद्र प्रधान को ऐसे अधिकारियों के ख़िलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। अगर मेरा फोन रिकार्ड हो रहा होगा तो पता ही चल जाएगा कि इन कंपनियों से कौन कौन मुझसे संपर्क करता है!
सभी को पता है कि BPCL प्राइवेट हो जाएगा तो फायदा किस सेठ को होगा। जो अपने पैसे से शहर में एक पेट्रोल पंप नहीं खरीद सकता, उसके पेट्रोल पंप हाईवे पर कहीं दिख जाते हैं, अब बीच शहर में दिखेंगे। सरकार अगर बीपीसीएल में 53.29 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचेगी तो ज़ाहिर है इसका मालिकाना हक उसका नहीं रहेगा। 70,000 करोड़ की ज़रूरत भी है क्योंकि अर्थव्यवस्था की हालत ये है कि अब बेचकर खाना पड़ रहा है। आम आदमी को भी और सरकार को भी।
मंत्री जी को बताना चाहिए कि तेल सेक्टर में प्रतिस्पर्धा से दाम कैसे कम होंगे? इसके क्या प्रमाण हैं? क्या यह बात किसी अध्ययन के आधार पर कही जा रही है या फिर इस आधार पर जब हर हाल में चुनाव हमें ही जीतना है तो कुछ भी कहो, क्या फर्क पड़ता है? आम आदमी के नाम पर तेल कंपनियों को बेचा जा रहा है तो आम आदमी को भी कुछ बताना चाहिए। प्रधान का ही बयान है कि लोकतंत्र देश के आम लोगों के लिए प्रतिबद्ध है। हमें खुलेपन के ज़रिए सुगम जीवन का निर्माण करना होगा। उत्पाद महत्वपूर्ण है लेकिन कौन चला रहा है ये मह्तवपूर्ण नहीं है।
ऐसे लगता है कि बीपीसीएल के बिकने के अगले ही दिन पेट्रोल 50 रुपये प्रति लीटर हो जाएगा। राजनीतिक सफलता इसे कहते हैं। आप सामने से लाइन में खड़ी जनता को यह थ्योरी बेच सकते हैं कि आपकी तकलीफों को दूर करने के लिए तेल कंपनी को किसी प्राइवेट सेठ के हाथों बेच रहे हैं। नोटबंदी के दिन यह बयान छपा है। शायद यह एक तरह से जनता को सलामी भी है कि वह इस बार भी ऐसे फैसलों को लाइन में लगकर राष्ट्रवादी समझ लेगी। हो सकता है मंत्री जी ही सही हों। मेरे ख़्याल से वही सही हैं। सरकार अगर दो तीन बिजनेस मैन के लिए हर तरह के बिजनेस से निकलने को बिजनेस समझ रही है तो यह उसका स्वर्ण युग है। क्योंकि जनता भी इसे ही ठीक समझती है।
रविश कुमार : लेखक एनडीटीवी के बड़े पत्रकार हैं । इस साल इन्हे सर्वश्रेष्ठ पत्रकारिता के लिये रैमण मैग्सेसे पुरस्कार मिल चुका है ।