अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति अधिनियम (SC / ST Act) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना पुराना फैसला वापस ले लिया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से दायर पुनिर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए अपना करीब डेढ़ साल पुराना फैसला वापस लिया है। इसके बाद यह कानून फिर से काफी सख्त हो गया है। आगे बढ़ने से पहले हम आपको बताते हैं कया है यह कानून और क्यों पुराने कानून को फिर से बनाना पड़ा ।
क्या है एससी / एसटी एक्ट ?
यह कानून अनुसूचित जाति व जनजाति (Sc and ST) के लोगों की सुरक्षा के लिए 1989 में बनाया गया था। इसका मकसद है एससी व एसटी वर्ग के लोगों के साथ अन्य वर्गों द्वारा किया जाने वाला भेदभाव, और अत्याचार को रोकना। इस कानून में एससी व एसटी वर्ग के लोगों को भी अन्य वर्गों के समान अधिकार दिलाने के प्रावधान बनाए गए। इन लोगों के साथ होने वाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई। साथ ही एससी-एसटी वर्गों के साथ भेदभाव या अन्याय करने वालों के खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान किया गया।
क्या था सुप्रीम कोर्ट का पुराना फैसला
20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट मामले में बिना जांच के तत्काल एफआईआर और गिरफ्तारी के प्रावधान पर रोक लगा दी थी । कोर्ट ने बड़े पैमाने पर इस कानून के गलत इस्तेमाल किए जाने की बात मानी थी । फैसला दिया था कि इस कानून के मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी । न ही तुरंत एफआईआर की जाएगी । शिकायत मिलने के बाद अधिकतम सात दिनों के अंदर डीएसपी स्तर पर मामले की जांच की जाएगी ।
कोर्ट ने ऐसा इसलिए किया था, ताकि शुरुआती जांच में ये पता चल सके कि किसी को झूठा आरोप लगाकर फंसाया तो नहीं जा रहा।
अब वापस से इस याचिका पर पुर्निविचार करते हुए सरकार ने एससीएसटी एक्ट के उसी पुराने कानून को वापस से विधान में ला दिया है । यानि अब पुन: बिना किसी जाँच के तत्काल एफआइआर और गिरफ्तारी की जा सकती है ।