बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई हुई कि देश का नाम इंडिया के बजाय केवल भारत किया जाना चाहिए । अदालत ने इस पर कोई फैसला तो नहीं सुनाया लेकिन याचिकाकर्ता से कहा कि वह इस मामले में सरकार के समक्ष आवेदन कर अपने तर्क प्रस्तुत करें। फिलहाल यह नहीं कहा जा सकता कि इसका क्या नतीजा निकलेगा परंतु इतना जरूर है कि इससे एक नई बहस अवश्य छेड़ दी है। वास्तव में किसी राष्ट्रीय क्षेत्र का नाम सामान्य नामकरण मात्र नहीं होता बल्कि एक सांस्कृतिक विमर्श होता है। यह राजनीतिक समाजशास्त्र का भी हिस्सा होता है। इस मामले में याचिकाकर्ता की भावनाओं से भी इसी भाव का प्रकटीकरण हो रहा है। उनका कहना है कि चुकि इंडिया शब्द से गुलामी का भाव झलकता है तो उसके स्थान पर देश का नाम केवल भारतीय हिंदुस्तान होना चाहिए। अपने देश के अतीत में तमाम नाम प्रचलित रहे है । इसे जंबूदीप, भारत, भारतवर्ष, आर्यवर्त, आर्यनाडु, हिंदुस्तान, हिंद और इंडिया आदि नामों से पुकारा गया। हालांकि वर्तमान में केवल 3 नाम इंडिया भारत और हिंदुस्तान ही चलन में है।
सबसे पहले इंडिया शब्द का थाह लेते हैं। यह ग्रीक भाषा से आया है। ईसा से चौथी पांचवी सदी पूर्व ग्रीक लोगों ने सिंधु नदी के लिए इंडस शब्द प्रयोग किया जो बाद में इंडिया बन गया। ग्रीक से यह दूसरी सदी मैं लैटिन में आया। यहां इसका व्यापक प्रयोग 16वीं 17वीं सदी में अंग्रेजों द्वारा ही हुआ। यानी यह शब्द पश्चिमी अथवा अंग्रेजी औपनिवेशिक साम्राज्यवाद की देन है। इतिहासकार इयान जे. बैरो ने अपने लेख ‘फॉर्म हिंदुस्तान टू इंडिया नेमिंग चेंज इन चेंजिंग नेम्स’ में लिखा 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से ब्रिटिश नक्शों में इंडिया शब्द प्रयोग होना शुरू हुआ। इंडिया को अपनाने से पता चलता है कि कैसे औपनिवेशिक नामकरण ने नजरियों में बदलाव किया और इस उपमहाद्वीप को एक एकल परिसीमित और ब्रिटिश राजनीति क्षेत्र की समझ बनाने में मदद की। इस प्रकार इंडिया शब्द में ब्रिटिश गुलामी की गंध छिपी है। वही इंडिया शब्द इस देश के किसान मजदूरों या अन्य मेहनतकश लोगों को स्वयं में समाहित करता नहीं दिखाई पड़ता। यह लोग अपनी माटी और संस्कृति के साथ गहराई से जुड़े हैं। जबकि इंडिया और इंडियन से हमें ऐसे लोगों या वर्ग का बोध होता है जो शक्ल सूरत में भले ही देश के अन्य लोगों की तरह हो, और अपने व्यवहार बोली और संस्कृति में मानव पश्चिम की फोटो कॉपी हो।
सांस्कृतिक धरातल या अर्थवत्ता की दृष्टि से भी इंडिया शब्द से इस देश की मिट्टी से जुड़े किसी सांस्कृतिक बोध या अर्थवत्ता का परिचय नहीं मिलता।
दूसरा प्रचलित शब्द है हिंदुस्तान जिसका उद्गम भी सिंधु नदी से ही हुआ है। असल में ईरानी लोग स का उच्चारण नहीं कर पाते थे और उसे ह कहते थे। इसीलिए प्राचीन ईरानी लोगों ने सिंधु को हिंदू कहां। अति प्राचीन पुस्तक नक्श-ई-रुस्तम में उल्लेख है कि ईरान में एक शासक डारियस ने इस क्षेत्र को हिंदुश कहा। प्राचीन ईरानी भाषा अवेस्ता में स्थान के लिए स्तान शब्द मिलता है। इस प्रकार यह प्रदेश हिंदुस्तान कहा जाने लगा और यहां के निवासी हिंदू। इस प्रकार हिंदू शब्द धर्म का पर्याय नहीं था। हिंदू हिंदुस्तान शब्द विशुद्ध रूप से पंथनिरपेक्ष शब्द थे। वैसे हिंदुस्तान मुख्य रूप से उत्तर भारत के लिए इस्तेमाल होता था। बाद में मुगल शासकों ने भी अपने साम्राज्य को हिंदुस्तान कहकर पुकारा हालांकि आजादी की लड़ाई में मुहम्मद अली जिन्ना और उनके साथियों ने अपने दिराष्ट्र सिद्धांत को सिरे चढ़ाने के लिए इसके अर्थ का विरूपित किया। उनका कहना था कि हिंदुस्तान हिंदुओं के लिए है लिहाजा मुसलमानों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान चाहिए। इस तरह एक पंथनिरपेक्ष शब्द हिंदुस्तान को एक धर्म से जोड़ दिया गया।
ऐसे में यह अनायास नहीं था कि जब देश का संविधान बना तो उसके पहले ही अनुच्छेद 1(1) में कहा गया कि इंडिया अर्थात भारत राज्यों का एक संग होगा। यहां हिंदुस्तान शब्द को जगह नहीं मिली। हालांकि इंडिया शब्द को अपनाना दुर्भाग्यपूर्ण था। शायद इसके पीछे औपनिवेशिक शासन का मनोवैज्ञानिक दबाव रहा होगा। दुर्भाग्यवश इसी दबाव के कारण ही अनुच्छेद 343 के तहत हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी को भी राजभाषा बना दिया गया। इसी पश्चिमी औपनिवेशिक मानसिकता का ही दबाव है कि अभी भी हमारे अधिकांश अकादमिक बौद्धिक विमर्श संकल्पना और सिद्धांत की पश्चिमी है या फिर पश्चिम से प्रभावित। अच्छी बात यही है कि आज वह दबाव खत्म होता दिख रहा है। अब समय आ गया है कि हम भारत को भारतीय चश्मे से ही देखें फिर अगर विदेशी के बजाय भारतीयता के आलोक में विचार करें तब भी नाम की दृष्टि से अपने देश के लिए भारत नाम ही सबसे सार्थक लगता है। एक तो यह तीनों नामों में एक सर्वाधिक प्राचीन है। दुनिया के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग वेद से लेकर ब्रह्मा पुराण, विष्णुपुराण ,वायु पुराण, और महाभारत में इस भौगोलिक क्षेत्र के नाम के रूप में भारत या भारतवर्ष का उल्लेख है। हमारे स्वाधीनता आंदोलन का सबसे अधिक भावात्मक नारा भी भारत माता की जय ही और हमारे राष्ट्रगान में भी सिर्फ भारत नाम का उल्लेख है। अर्थ विज्ञान की दृष्टि से देखें तो यह शब्द संस्कृत के भ्र धातु से आया है जिसका अर्थ है उत्पन्न करना वाहन करना, निर्वाह करना इस तरह भारत का शाब्दिक अर्थ है जो निर्वाह करता है या जो उत्पन्न करता है। एक अन्य स्तर पर भारत का एक और अर्थ है ज्ञान की खोज में संलग्न। इस प्रकार अपनी सांस्कृतिक बोध और मूल्य की दृष्टि से भी भारत नाम कहीं अधिक अर्थवान है। इसके अलावा यह अभिधान अपने में सभी पंथ समुदाय, जातीयता और वर्गों को भी समाहित कर लेता है। इतना ही नहीं संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित भाषाओं की पूरब की असमिया, मणिपुरी से लेकर पश्चिम कि गुजरात, मराठी से लेकर दक्षिण के तमिल, मलयालम तक में इस देश को भारत भारोत भारता या भारतम आदि कहां जाता है। निसंदेह सामाजिक, सांस्कृतिक मनोविज्ञानिक और आर्थिक किसी भी धरातल पर भारत नाम सार्वजनिक उपयुक्त है। कितना अच्छा होगा यदि हम अपने देश को सिर्फ भारत पुकारे ।
सोनाली कुमारी