ओडि़शा की राजधानी भुवनेश्वभर के एक कार्यक्रम में भाग लेते हुए आरएसएस के सर संधचालक मोहन भागवत ने कहा कि पुरे विश्वक में सबसे ज्यादा सुखी मुसलमान भारत में हैं । श्री भागवत आरएसएस की शीर्ष निर्णय निर्धारण संस्था अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक के मद्देनजर बुद्धिजीवियों की सभा को संबोधित करते हुए उक्तय बातें कह रहे थे ।
क्या कहा मोहन भागवत ने-
“सत्य ये है हम हिन्दुओं का देश हैं, हिन्दू राष्ट्र हैं। हिन्दू किसी पूजा का नाम नहीं। किसी प्रांत प्रदेश का नाम नहीं, हिन्दू एक संस्कृति का नाम है। जो भारत में रहने वालों की सांस्कृतिक विरासत है। … मारे-मारे यहूदी फिरते थे। अकेला भारत है, जहां उनको आश्रय मिला है। पारसियों की पूजा उनके मूल धर्म से सुरक्षित केवल भारत में है। विश्व के देशों में सर्वाधिक सुखी मुसलमान भारत में मिलेगा। यह क्यों है, क्योंकि हम हिन्दू हैं। और इसलिए हमारा हिन्दू देश है। हमारा हिन्दू राष्ट्र है। इसलिए हिन्दू संगठन करना है”
Mohan Bhagwat, RSS: ।।।Maare-maare Yahudi (Jews) firte they akela Bharat hai jahan unko ashray mila। Parsion (Parsis) ki puja aur mool dharma sukrakshit kewal Bharat mein hai। Vishwa mein sarvadhik sukhi Musalman, Bharat mein milega। Ye kyun hai? Kyunki hum Hindu hain।।।” (12।10) pic।twitter।com/btO3Zdixgz
— ANI (@ANI) October 13, 2019
लेकिन मुसलमानों की एक सच्चाई सच्चर कमिटी की रिपोर्ट भी बताती है। 30 नवंबर 2006 को 403 पेज की एक रिपोर्ट आई थी। सच्चर कमिटी की। पार्लियामेंट में रखी गई। मुसलमानों के सोशल, इकॉनमिक और एजुकेशनल कंडीशन पर। कमिटी के चीफ थे दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस राजिंदर सच्चर। दो साल में रिपोर्ट तैयार हुई। रिपोर्ट में पता चला कि मुसलमानों की स्थिति शेड्यूल्ड कास्ट और शेड्यूल्ड ट्राइब से नीचे है।
देश के कई राज्यों में सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों से मिली जानकारी के आधार रिपोर्ट बनी थी। मुसलमानों की काफी चिंताजनक तस्वीर पेश की है। रिपोर्ट में कहा गया है था कि मुस्लिम समुदाय के पास शिक्षा के अवसरों की कमी है। सरकारी और निजी उद्दोगों में भी उसकी आबादी के अनुपात के अनुसार उसका प्रतिनिधित्व काफ़ी कम है।
सच्चर कमिटी के मुताबिक IAS और IPS में 3 और 4 परसेंट मुस्लिम थे। 1 जनवरी 2016 के होम मिनिस्ट्री डेटा के मुताबिक अब ये 3।32 और 3।19 है। ये भी पता चला है कि IPS में कमी हुई है क्योंकि मुस्लिम प्रमोटी ऑफिसर बहुत कम आये हैं। सच्चर रिपोर्ट में ये 7।1 परसेंट थे, अब 3।82 परसेंट हैं। आलम ये है कि हर 100 IAS और IPS में मात्र 3 मुस्लिम ऑफिसर हैं।
अगर सरकारी डेटा का विश्लेषण किया जाये, तो पता चलेगा कि अभी भी स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं आया है। कुछ चीजों में तो स्थिति पहले से भी खराब हो गई है। जैसे कि 2005 में भारतीय पुलिस में मुसलमानों का परसेंटेज 7।63 था जो 2013 में घटकर 6।27 हो गया। 2013 के बाद धर्म के आधार पर का डेटा सरकार ने बनाना बंद कर दिया है। कई बार पुलिस पर ये भी आरोप लगा है कि दंगों के वक्त इनकी धार्मिक भावना जाग जाती है। मुसलमानों की कम संख्या होने की वजह से पुलिस सेक्युलर नहीं रह जाती।
एक और डाटा है। 2011 की जनगणना में ‘नॉन वर्कर्स’का धार्मिक डेटा 2016 के जून महीने में महीने रिलीज हुआ था। 2019 के हिसाब से थोड़ा पुराना है लेकिन इतना भी नहीं कि बहुत बड़ा बदलाव आ चुका हो। ये आंकड़े गवाही देते हैं कि अपने यहां मुसलमानों का एक बड़ा हिस्सा आर्थिक तौर पर बहुत कमजोर है।
सरकारी रजिस्टर के मुताबिक देश में भिखारियों की संख्या 3।7 लाख है। लेकिन, देश का हर चौथा भिखारी मुसलमान है। देश में टोटल 3।7 लाख भिखारियों में से करीब 25 फीसदी मुसलमान हैं। जबकि कुल आबादी में उनका हिस्सा 14।23 फीसदी ही है। पिछले कुछ सालों में देश में मॉब लिंचिंग की घटनाओं में जान गवाने वाले ज्यादातर मुस्लिम ही हैं। बाकी इन आंकड़ों के बाद भी मोहन भागवत को लगता है कि मुसलमान भारत में सुखी हैं, तो फिर क्या ही कहा जाए।