मार्च महीने की शुरुआत में प्राइवेट बैंक Yes Bank की हालत बेहद खराब थी। बैंक, पैसों की भारी तंगी से जूझ रहा था। इन्हीं सब बातों का ख्याल रखते हुए 6 मार्च को RBI ने बैंक पर कड़ी कार्रवाई करते कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए। इसके बाद शेयर में भारी गिरावट आई और बैंक की मार्केट कैप (market capitalisation) गिरकर 1414 करोड़ रुपये पर आ गई है। लाइव मिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, दो कारोबारी सत्र में बैंक की मार्केट कैप बढ़कर 74,550 करोड़ रुपये पहुंच गई है। ऐसे में सवाल उठता है आखिर ऐसा क्या हुआ की रातोंरात Yes Bank देश का छठा सबसे बड़ा बैंक बन गया।
आखिर ऐसा क्या हुआ-यस बैंक (YES Bank) को बचाने के लिए भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने प्रस्ताव दिया है कि वो LIC के साथ मिलकर 55.56 फीसदी हिस्सेदारी रखेगी। इस 55।56 फीसदी हिस्सेदारी में से SBI 45।74 फीसदी और LIC की 9.81 फीसदी की हिस्सेदारी होगी।
इसके अलावा, HDFC Bank और ICICI Bank भी 6.31 फीसदी प्रत्येक और Axis Bank और कोटक महिंद्रा बैंक भी 3.15 फीसदी प्रत्येक की हिस्सेदारी खरीदेंगे। मौजूदा समय में यस बैंक में लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (LIC) की 8.06 फीसदी की हिस्सेदारी है। इसके साथ अब इस प्रस्ताव के बाद यस बैंक में LIC की कुल हिस्सेदारी बढ़कर 17.87 फीसदी हो जाएगी।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि सरकार और RBI ने मिलकर Yes Bank को वापस पटरी पर लाने के लिए तेजी से कदम उठाए है। साथ ही, प्राइवेट बैंकों की ओर से किए जाने वाला निवेश डिपॉजिटर्स और निवेशकों में भरोसा लौटाने का काम कर रहा है। इसीलिए शेयर में तेजी आई और मार्केट कैप बढ़कर 74,550 करोड़ रुपये पर पहुंच गया।
रिजर्व बैंक ने 5 मार्च को यस बैंक का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया था। इसके बाद यस बैंक के खाताधारकों के लिये अधिकतम 50,000 रुपये की निकासी समेत कुछ बैंकिंग सेवाओं पर रोक लगा दी गयी थी। ये रोक 18 मार्च से समाप्त होने वाले हैं।
एसकोर्ट सिक्योरिटी के रिसर्च हेड आसिफ इकबाल ने बताया कि 6 मार्च 2020 को यस बैंक का शेयर गिरकर 5.5 रुपये के भाव पर आ गया था। वहीं, मंगलवार यानी 17 मार्च को शेयर बढ़कर 63 रुपये के भाव पर पहुंच गया।
अगर किसी निवेशक ने इस शेयर में 10 हजार रुपये लगाए होते तो उसे करीब 1819 शेयर मिलते। जिनकी कीमत अब 1 लाख रुपये से ज्यादा है। निवेशकों के पास अभी भी खरीदारी का अच्छा मौका है। लेकिन नई स्कीम के तहत इस बैंक के 100 से अधिक शेयर रखने वाले निवेशक अपनी 25 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी नहीं बेच सकते। उनकी 75 फीसदी हिस्सेदारी लॉक-इन के दायरे में आएगी।
तीन साल के बाद ही वे अपने कुल शेयर बेच सकेंगे। दिसंबर तिमाही के अंत तक इस निजी बैंक में रिटेल निवेशकों के पास 48 फीसदी की हिस्सेदारी थी।
छोटे निवेशकों ने जमकर लगाया पैस
रिटेल निवेशकों ने इस बैंक में हिस्सेदारी लगातार बढ़ाई है। जून तिमाही में यह 8.8 फीसदी पर थी, जो सितंबर तिमाही में 29.9 फीसदी हो गई। मगर म्यूचुअल फंडों और संस्थागत निवेशकों ने अपनी हिस्सेदारी को क्रमश: 11.6 फीसदी और 42.5 फीसदी से घटाकर 5.1 फीसदी और 15.2 फीसदी कर दिया।