वैसे तो हम सभी जानते हैं कि आमतौर पर इंसान बिना अन्न और जल के ज्यादा दिन तक जीवित नहीं रह सकता है । शास्त्रों की मानी जाए तो भारत एक मात्र ऐसा देश है जहां अभी भी ऋषि-मुनियों जैसे कुछ लोग जीवित हैं इन्हीं ज्ञानियों में से एक योगी प्रहलाद जानी उर्फ चुनरी वाला माताजी जिन्होंने 76 साल से अधिक समय तक अन्न और जल को ग्रहण नहीं किया था । आज मंगलवार की सुबह गुजरात के गांधीनगर जिले में उनका निधन हो गया। उनकी उम्र 90 साल थी ।
दावा है कि योगी प्रह्लाद जानी ने 14 साल की उम्र में ही अन्न-जल छोड़ दिया था। उनके शिष्यों की ओर से जारी एक बयान के अनुसार, जानी ने अपने पैतृक गांव चराड़ा में अंतिम सांस ली। गुजरात में बड़ी संख्या में उनके अनुयायी हैं। बिना अन्न-जल ग्रहण किए जीवित रहने के जानी के दावे को 2003 और 2010 में वैज्ञानिकों ने परखा था । योगी प्रहलाद जानी का यह कहना था की उन्हें अन्न और जल का सेवन करने की कोई जरूरत नहीं है उनके ऊपर देवी मां का हाथ है । जो उन्हें स्वयं जीवित रखती हैं । उनको देवी मां पर एक अटूट विश्वास था कि वे देवी मां के परम भक्त थे । इसलिए वह अपने शरीर पर हर समय चुनरी रखते थे और महिलाओं की तरह रहते थे और इसी कारण से वे चुनरी वाले माताजी के नाम से चर्चित हुए। इस बीच, जानी का पार्थिव शरीर बनासकांठा जिले में अंबाजी मंदिर के समीप उनके आश्रम सह गुफा में ले जाया गया है।
बयान में कहा गया है, ‘‘माताजी ने अपने मूल स्थान पर कुछ समय गुजारने की इच्छा प्रकट की थी जिसके बाद उन्हें कुछ दिन पहले चराड़ा ले जाया गया था. उन्होंने आज प्रात: अंतिम सांस ली. उनका पार्थिव शरीर कुछ दिन के लिए उनके आश्रम में रखा जाएगा ताकि उनके अनुयायी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर सकें. बृहस्पतिवार को उनके आश्रम में उन्हें समाधि दी जाएगी.” वे अपनी तपस्या में इस कदर लीन हो चुके थे कि वे अन्न जल त्याग सिर्फ हवा पर जीवित थे ।
बाबा जानी कैसे इतने वर्षों तक भूखे प्यासे रह गए इस बारे में पता लगाने के लिए वर्ष 2010 में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन से संबंधित संस्था डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ फिजियोलोजी एंड एलाइड साइंससेज (डीआईपीएएस) के वैज्ञानकों एवं संबंधित डॉक्टरों ने यह जानने के लिए उनका 15 दिनों तक निरीक्षण किया था।
निरीक्षण के पश्चात डीआईपीएएस ने बताया कि जानी में भूख और पानी से बचने के लिए कुछ अतिरेक प्रकार का अनुकूलन है। उनकी बॉडी ने एक खास तरफ का एंटी बॉडी बनाया है जो उनकी इम्यून क्षमता को बनाए रखने में मदद करती है । हालांकि यह उससे भी गहन शोध का विषय है ।
बाबा जानी सनातन संस्कृति के एक मजबूत स्तम्भ की तरह थे, उनका जाना न केवल विज्ञान के शोधार्थियों के लिए एक अपूरणीय क्षति है बल्कि सन्त समाज के लिए भी ।