मथुरा में राधारमणलालजू की रसोई में पिछले 475 साल से अग्नि प्रज्जवलित करने के लिए माचिस का प्रयोग नहीं किया गया है. यह कंडे से चूल्हा सुलगाई जाती है. इसी रसोई में भोग तैयार होता है और प्रभु को चढ़ाया जाता है.
कहा जाता है कि चैतन्य महाप्रभु के शिष्य गोपाल भट्ट गोस्वामी ने 475 साल पहले वैदिक मंत्रोच्चारण से हवन की लकड़ियों को घिसा. इससे अग्नि प्रज्जवलित हुई. इसके बाद से हवनकुंड से निकली इस अग्नि का रसोई में प्रयोग की परंपरा की शुरुआत हो गयी. यह आजतक वैसे ही जारी है.
मंदिर की परंपरा के अनुसार, यहां किसी भी कार्य में माचिस का प्रयोग नहीं होता है. ऐसा पिछले 475 साल से चल रहा है. यहां का सारा कार्य अग्नि कुंड से निकलने वाले अग्नि से ही होता है.
हालांकि मंदिर की रसोई में बाहरी व्यक्ति का प्रवेश नहीं है, फिर भी इस परंपरा को पीढी दर पीढी आगे बढाया जा रहा है. वहां सिर्फ़ आचार्य गोपालभट्ट गोस्वामी के वंशज ही मंदिर की रसोई में जाते हैं और अपने हाथ से प्रसाद तैयार करते हैं. वहां परंपरा है कि कोई भी सेवायत एक बार रसोई में प्रवेश करेगा, तो पूरा खान-पान सामग्री तैयार करने के बाद ही बाहर निकलेगा.