लवगुरु मटुकनाथ अपनी जूली को लाने सात समुंदर पार पहुंच गए हैं। जल्द ही वे जूली को लेकर पटना लौटेंगे। प्रो. मटुकनाथ ने बताया कि पिछले दिनों जूली के एक संदेश ने उन्हें त्रिनिदाद एंड टोबैगो के सेंटगस्टीन तक पहुंचा दिया। सात मार्च को वहां पहुंचकर उन्होंने बताया कि वे जल्द ही जूली को लेकर पटना लौटेंगे। जूली पुरी तरह स्वस्थ हो जाएंगी। उन्होने कहा कि गृहस्थ से होकर ही संन्यास का रास्ता जाता है। इसके विपरीत जूली बिना गृहस्थ आश्रम जिये संन्यास की ओर चल पड़ीं। उनके स्वास्थ्य खराब होने की यह सबसे बड़ी वजह रहीं।
यादों के पन्ने पलटते हुए प्रो. मटुकनाथ ने कहा कि जूली को उन्होंने छोड़ा नहीं था बल्कि वे उनकी निजी स्वतंत्रता के समर्थक थे। लवगुरु ने बतावा कि जूली के भीतर वैराग्य का भाव 204 से ही दिखने लगा था। वे भजनों पर नृत्य करती थीं और चिंतन-मनन में लीन रहती थीं।
वर्ष 206 तक वे आध्यात्मिक वातावरण में डूबने के लिए पटना से कभी-कभार वृंदावन, होशियारपुर व बाकी धर्मस्थलों पर जाया करती थीं। वैराग्य की ओर जूली का झुकाव उन्होंने वर्ष 206 के आरंभ में देखा। उन्होंने जूली को सलाह दी कि वो चाहें तो निश्चित भाव से वैराग्य जी सकती हैं। बकौल प्रो. मटुकनाथ, जूली के मानसिक स्वास्थ्य पर वर्ष 206 के बाद ही असर होना शुरू हुआ।
जूली पटना से मटुकनाथ का घर छोड़कर ईश्वर में ध्यान लगाने वृंदावन समेत दर्जनों जगहों पर भ्रमण करती रहीं। प्रो. मटुकनाथ ने बताया कि इस बीच वे फोन के जरिए संपर्क में भी रहीं लेकिन अचानक जूली का फोन आना बंद हो गया। बाद में उन्हें जानकारी मिली कि वे अस्वस्थ हालत में त्रिनिदाद एंड टोबैगो पहुंच गई हैं। वे किसी को जीवित बुद्ध मानने लगी थीं और उनका अनुसरण करते हुए यहां इस हालत तक पहुंच गई।