9 दिसंबर को गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में ‘नागरिकता संशोधन बिल 2019’ पेश किया। ये 1955 के ‘सिटिज़नशिप ऐक्ट’ का संशोधित संस्करण है। पुराने क़ानून में हर वो इंसान अवैध इमिग्रेंट माना गया था, जो बिना वैध कागज़ातों के भारत में घुसा हो। या इन कागज़ातों की मियाद ख़त्म हो जाने के बाद भी यहां रुका हो। इस नए बिल के अंतर्गत कुछ ख़ास लोगों को छूट दिए जाने का प्रस्ताव है। ऐसे लोग जो धार्मिक तौर पर निशाना बनाए जाने या इसकी आशंका के मद्देनज़र अपना देश छोड़कर भारत आए। यहां रहने को मज़बूर हुए। इन लोगों को साबित करना होगा कि वो 31 दिसंबर, 2014 को या इसके पहले तक भारत आ गए थे। इनमें मुख्यतौर पर शामिल होंगे अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए अल्पसंख्यक। हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई। अमित शाह ने कहा कि ये बिल पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के लिए है। इन्हें इस CAB संशोधन द्वारा भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव है।
कौन-कौन से राज्यों को छूट?
उत्तरपूर्वी भारत का एक बड़ा हिस्सा है, जहां इस क़ानून को लागू न किए जाने का प्रस्ताव है। कुछ राज्य हैं, जहां कुछ इलाके CAB की परिधि से बाहर रखा जाएंगे। कुछ राज्य पूरे-के-पूरे ही बाहर रखे गए हैं। पूरी तरह CAB से बाहर रखे गए राज्य हैं- अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिज़ोरम। बाकी जिन राज्यों के चुनिंदा इलाके बाहर रखे जाएंगे, वो हैं- मेघालय, असम और त्रिपुरा। मगर मणिपुर को ये छूट नहीं मिलेगी। वो समूचा ही इस CAB की ज़द में आएगा। इससे जुड़ी क्या चीजें हैं जानने लायक, ये हम आपको बता रहे हैं आसान भाषा में।
असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा में क्या होगा?
भारतीय संविधान का सिक्स्थ शिड्यूल। इसमें असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के अनुसूचित जनजाति वाली बसाहट के इलाकों में प्रशासन के नियम हैं। मकसद है कि ट्राइबल आबादी के हितों की रक्षा। इसके तहत, ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल्स (ADC) बनाए गए। इन ADC को राज्य विधानसभा के अंतर्गत स्वायत्तता दी गई। कुल मिलाकर उत्तरपूर्वी राज्यों में कुल 10 ऑटोनॉमस ज़िले हैं। इनमें से तीन असम में। तीन मेघालय में (शिलॉन्ग के एक छोटे हिस्से को छोड़कर करीब-करीब पूरा मेघालय ही)। तीन मिज़ोरम में। और एक त्रिपुरा में है। CAB में इन इलाकों को अलग रखा गया है। छूट दी गई है। इसका मतलब होगा कि CAB के अंतर्गत जिन शरणार्थियों को नागरिकता मिलेगी, उन्हें इन स्वायत्त इलाकों (ADC) में ज़मीन या कोई अचल संपत्ति खरीदने का अधिकार नहीं होगा। वो इन इलाकों में नहीं बस सकेंगे। उन सुविधाओं और अधिकारों का फ़ायदा नहीं पा सकेंगे, जो ख़ास ट्रायबल्स को मिली हुई हैं। इसके अलावा, संविधान का सिक्स्थ शिड्यूल ACD को जो अधिकार देता है, वो भी CAB ख़त्म नहीं कर सकेगा। न ही उनके बनाए क़ानून ही हटा सकेगा।
बिल में कहा गया है, ‘ये बिल संविधान की छठी अनुसूची में आने वाले पूर्वोत्तर के जनजातीय लोगों और बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेग्युलेशन, 1873 के तहत ‘इनर लाइन’ सिस्टम वाले इलाकों की संवैधानिक गारंटी बनाए रखेगा।’
अरुणाचल, नागालैंड और मिज़ोरम में क्या होगा?
अरुणाचल, नागालैंड (दीमापुर को छोड़कर) और मिज़ोरम। इन तीनों राज्यों में ‘इनर लाइन परमिट’ (ILP) की व्यवस्था है। पढ़ाई, व्यवसाय, पर्यटन और नौकरी जैसी वजहों से इन इलाकों में बाहर के लोग (बाकी भारत के) भी रहते या आते-जाते हैं। इसके लिए उन्हें ILP चाहिए होता है। भले वो भारतीय नागरिक हों। बाहर वालों को वहां हमेशा के लिए बसने की इजाज़त नहीं है। न ही वो ज़मीन जैसी अचल संपत्ति ही ख़रीद सकते हैं। आप कितने दिनों के लिए जा रहे हैं। कहां-कहां जा रहे हैं। ILP लेने के लिए ये सारी चीजें डिक्लेयर करनी होती हैं। जहां जाना है, वहां की राज्य सरकार ILP ज़ारी करती है। एंट्री और एक्ज़िट पॉइंट्स पर लोगों को अपना ILP दिखाना पड़ता है। इन इलाकों के बाहर का कोई आदमी, भले वो हिंदुस्तान का नागरिक हो, बिना ILP के यहां नहीं जा सकता है। ILP में जितने दिन लिखे गए हैं, उससे ज़्यादा रुक भी नहीं सकता वहां। अगर रुकना है, तो उसे फिर से ILP बनवाना होगा। समय-समय पर ILP रीन्यू करना पड़ता है।
ILP का सिस्टम कहां से आया?
बंगाल इस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन ऐक्ट, 1873। ये अंग्रेज़ों के समय का क़ानून है। इसमें चुनिंदा इलाकों के अंदर बाहर वालों के आने-जाने और रहने पर नियंत्रण लगाया गया था। इसके पीछे मकसद था अंग्रेज़ों के पूंजीवादी हितों की हिफ़ाजत। ILP की मदद से अंग्रेज़ ये सुनिश्चित करते थे कि उनके अलावा कोई इन इलाकों में व्यापार न कर सके। तब ये कोई थे ब्रिटिश भारत के नागरिक। देश आज़ाद होने के बाद भी ये नियम बना रहा। मकसद था अनुसूचित जनजातियों के हितों की सुरक्षा। क्योंकि यहां रहने वाले ट्राइबल्स को चिंता थी कि ग़ैर-स्थानीय लोगों के आने और बसने से उनकी डेमोग्रफी में बदलाव आएगा। अपनी ही मिट्टी पर वो कमज़ोर हो जाएंगे। उनके हित दबा दिए जाएंगे।
CAB आने पर इन इलाकों में कैसी चिंता हुई?
असम। त्रिपुरा। मेघालय। इन इलाकों में शरणार्थियों की काफी तादाद है। ख़ासतौर पर बांग्लादेश से आए रिफ़्यूजी। ऐसे में ये चिंता हुई कि क्या इन्हें भी CAB के मार्फ़त भारतीय नागरिकता दी जाएगी। उत्तरपूर्वी राज्यों में बड़ा मुद्दा था ये। अब CAB को उत्तरपूर्वी राज्यों के एक बड़े हिस्से में लागू नहीं किए जाने का फैसला लिया गया है। इसका मतलब हुआ कि जिन इलाकों में CAB लागू नहीं होगा, वहां रहने वाले इमीग्रेंट ग़ैर-भारतीयों को नागरिकता नहीं दी जाएगी। मतलब, अभी जैसे भारतीय नागरिकों के लिए ADC और ILA वाले इलाकों में पाबंदियां हैं, वैसी ही CAB से नागरिकता पाने वालों पर भी होंगी।
स्वाती वाया लल्लनटॉप