दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) के बुनियादी सिद्धांतों को अच्छा बताया है. साथ में इसकी कई कमियां गिनाई हैं. उन्होंने कहा कि पॉलिसी में नियंत्रण ज़्यादा है और फंडिंग कमज़ोर है. कहा कि नई शिक्षा नीति में राज्य स्तर पर एक शिक्षा विभाग, एक निदेशालय, एक रेगुलेटरी अथॉरिटी, एक शिक्षा आयोग, एससीईआरटी, शिक्षा बोर्ड जैसे निकाय होंगे और इतनी सारी एजेंसियां आपस में उलझेंगी, तो शिक्षा का काम कैसे होगा?
सिसोदिया ने कहा,
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा पर जीडीपी का छह फीसदी खर्च करने की बात कही गई है. ये बात 1966 से कोठारी कमीशन के समय से ही कही जा रही है लेकिन ये लागू कैसे हो, इस पर शिक्षा नीति चुप है. इसको लेकर कोई कानून बनाने की बात नहीं कही गई है.
इसके अलावा उन्होंने कौन सी 10 बड़ी बातें कहीं:
- शिक्षा के अधिकार को एजुकेशन ऐक्ट के तहत लाने को लेकर इस नीति में साफ तौर पर नहीं बोला गया है. अभी शिक्षा के अधिकार के तहत आठवीं तक शिक्षा फ्री है. छह साल में बनाई गई इस शिक्षा नीति में अगर आपने फन्डिंग और कानूनी दायरे जैसे बुनियादी प्रश्न ही हल नहीं किए, तो शिक्षा नीति का क्रियान्वयन मुश्किल है.
- बच्चों को क्वालिटी एजुकेशन प्रदान करना सरकार की ज़िम्मेदारी है. पूरी दुनिया में जहां भी अच्छी शिक्षा व्यवस्था है, वहां सरकार खुद इसकी ज़िम्मेवारी लेती है लेकिन इस शिक्षा व्यवस्था में सरकारी स्कूल सिस्टम को इस ज़िम्मेदारी को लेने पर सीधा ज़ोर नहीं दिया गया है बल्कि इसमें प्राइवेट संस्थानों को बढ़ावा देने की बात कही गई है. सिसोदिया ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी प्राइवेट संस्थाओं को शिक्षा की दुकान करार दिया था इसलिए हमें प्राइवेट स्कूलों के बदले सरकारी शिक्षा पर ज़ोर देना चाहिए.
- नई शिक्षा नीति पुरानी समझ और पुरानी परंपरा के बोझ से दबी हुई है. इसमें सोच तो नई है पर जिन सुधारों की बात की गई है, उन्हें कैसे हासिल किया जाए, इस पर ये कुछ नहीं कहती. नई शिक्षा नीति के बुनियादी सिद्धांत अच्छे हैं, लेकिन इनका पालन कैसे हो, इसे लेकर स्पष्टता नहीं है. ये भविष्य की ज़रूरतों को सामने रखती है, लेकिन आज की व्यवस्था को उस दिशा में कैसे ले जाएं, इस पर चुप्पी है.
- कम उम्र के बच्चों को आंगनबाड़ी और प्री प्राइमरी दोनों तरह की शिक्षा की बात इसमें कहीं गई है. ऐसे में उनके लिए समान शिक्षा कैसे संभव होगी? एक बच्चे को आंगनबाड़ी सेविका पढ़ाएगी और दूसरे को स्कूल में प्रशिक्षित टीचर से शिक्षा मिलेगी. उनके बीच बराबरी कैसे आएगी?
- नई शिक्षा नीति में वोकेशनल कोर्स को बढ़ावा देने की बात भी कही गई है लेकिन इस कोर्स के बच्चों का यूनिवर्सिटीज में एडमिशन नहीं हो पाता है. ऐसे बच्चे ग्रैजुएशन की डिग्री के बाद भी सिविल सर्विसेज की परीक्षा में भी नहीं बैठ सकते हैं. इस पर भी पॉलिसी की चुप्पी ठीक नहीं है.
- पॉलिसी में बोर्ड परीक्षा को आसान करने की बात कही गई है, जबकि मुद्दा आसान और कठिन का है ही नहीं. बच्चों की समझने की क्षमता का मूल्यांकन करना है,न कि उनकी रटने की क्षमता का मूल्यांकन करना. इससे ऐसा लगता है कि पॉलिसी पुरानी मान्यता के बोझ से ग्रसित है. आज दुनिया में शिक्षा के क्षेत्र में क्या नए प्रयोग क्या हो रहे हैं, इस पर विचार करने में नई शिक्षा नीति पूरी तरह से विफल है.
- नेशनल टेस्टिंग एजेंसी की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि अगर उच्च शिक्षा में एडमिशन के लिए इस एजेंसी द्वारा टेस्ट होने हैं, तब बोर्ड की परीक्षा क्यों कराई जा रही है, इस पर भी विचार करना चाहिए.
- नई नीति में मल्टी डिसीप्लिनरी उच्च शिक्षण संस्थाओं की बात कही गई है लेकिन विषय केंद्रित स्पेशलिस्ट संस्थाओं को खत्म करने की बात कही जा रही है जबकि देश में दोनों तरह के संस्थान हैं और सबकी अपनी ज़रूरत है. ये पॉलिसी सेक्टर स्पेसिफिक संस्थाओं को बर्बाद करने पर आधारित है. ऐसा लगता है जैसे IIT में ऐक्टिंग सिखाने और FTTI में इंजीनियरिंग सिखाने का काम किया जाएगा. सेक्टर स्पेसिफिक संस्थाओं की ज़रूरत दुनिया भर में है. IIM में मेडिकल की पढ़ाई और एम्स में मैनेजमेंट की पढ़ाई नहीं हो सकती है.
- नई शिक्षा नीति में स्पोर्ट्स की बात मिसिंग है. शिक्षा में खेलकूद को शामिल न करना आश्चर्य की बात है.
सिसोदिया ने रेगुलेशन की मोह माया से बाहर निकलने और स्कूलों को स्वायत्तता देते हुए इंस्पेक्टर राज खत्म करने का सुझाव दिया है.