फिल्म पंगा का निर्माण एक विदेशी कंपनी ने किया है और उठाए हैं ऐसे मुद्दे जो देश की नब्ज परखने का माद्दा रखते हैं। पंगा नए साल का नया सिनेमा है, इसे देखना खुद को जीवन की दौड़ में पूरे जोश से नया धक्का देने से कम नहीं होगा।
फिल्म पंगा एक बात और समझाती है जिसकी तरफ देश में खेल नीतियां बनाने वालों को जरूर ध्यान देना चाहिए। क्या किसी खिलाड़ी का नेशनल खेलना या इंटरनेशनल खेलना सिर्फ इसलिए होता है कि उसे कहीं कोई सरकारी नौकरी मिल जाए?
क्या ये सरकार की जिम्मेदारी नहीं कि देश के लिए मेडल जीतकर लाने वालों के परिवार का भरण पोषण वह खुद करे और ऐसे खिलाड़ियों के परिवारों को राष्ट्रीय परिवार मानने की जिम्मेदारी उठाए?
ये दोनों ही उसके सपनों को फिर से जिंदा करने का सबब बनते हैं। लेकिन, 32 साल की उम्र में किसी खिलाड़ी की मैदान पर वापसी आसान नहीं होती। पंगा इन्हीं मुश्किलों से पार पाने की कहानी है।
फिल्म पंगा अपने कलाकारों की कूवत को बिल्कुल मानवीय तरीके से परदे पर पेश करती है। कंगना रनौत के किरदार का हर संवाद फिल्म पंगा को एक नई ऊंचाई तक ले जाता है। फिल्म में ऋचा चड्ढा एक मार्गदर्शक की भूमिका में दमदार दिखी हैं।
उनके साथ ही मेघा बर्मन, स्मिता तांबे और नीना गुप्ता ने भी फिल्म को कबड्डी कबड्डी की आखिरी सांस तक खींच लाने में मजबूत सहारा दिया है।यह फिल्म दर्सकों को बेहद पसंद आएगी।
ज्योति शर्मा