भारतीय राजनीति (Indian Politics) की आयरन लेडी (Iron Lady) कही जाने वाली पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) का आज जन्मदिन है। वैसे तो इंदिरा गांधी को बैंकों के राष्ट्रीयकरण, राजा-महाराजाओं के विशेषाधिकार खत्म करने, सिक्किम का भारत में विलय कराने, बांग्लादेश का निर्माण कराने और आपातकाल लगाने के लिए जाना जाता है, लेकिन कई बार उनके धर्म को लेकर भी सवाल उठने लगते हैं।
इन सवालों का केंद्रीय बिंदु यह होता है कि जब उन्होंने दूसरे धर्म के युवक से शादी की तो फिर वह हिंदू कैसे बनी रह सकती हैं! दरअसल इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी पारसी धर्म के थे। तो इसका जवाब बड़ा मजेदार है।
दरअसल जब 1942 में इंदिरा और फिरोज की शादी होने वाली थी तो देश में बड़े पैमाने पर इसका विरोध हो रहा था। पंडित जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी के पास दर्जनों ऐसे पत्र आ रहे थे जिनमें कहा जा रहा था कि नेहरू की बेटी की शादी एक गैर हिंदू से नहीं होनी चाहिए। इस विरोध की वजह यह थी कि नेहरू महात्मा गांधी के बाद देश के दूसरे सबसे लोकप्रिय नेता थे और उस समय सांप्रदायिक मुद्दे जोरों पर थे।
इन सब बातों को देखते हुए महात्मा गांधी ने तो यह सलाह दी कि इंदिरा गांधी की शादी इलाहाबाद से कराने के बजाय उनके आश्रम से ही कराई जाए। यही नहीं इंदिरा गांधी के विवाह के लिए गांधी जी ने अपने हाथों से एक विवाह विधि भी लिख दी। हालांकि जवाहर लाल नेहरू को लगा कि यह विधि बहुत लंबी हो जाएगी, इसलिए बेहतर है कि वैदिक परंपराओं के आसपास रहा जाए।
शादी के पहले नेहरू ने यह तय किया कि इंदिरा की शादी इस तरह हो कि शादी के बाद भी दूल्हा-दूल्हन का धर्म परिवर्तन न हो। यानी शादी के बाद भी इंदिरा गांधी हिंदू बनी रहें और फिरोज गांधी पारसी बनी रहें। नेहरू ने उस समय के मशहूर ज्योतिषविद् पंडित लक्ष्मीधर शास्त्री से कहा कि वे ऐसी विवाह विधि तैयार करें जिसमें दोनों धर्मों के मूल विचार आ जाएं। नेहरू ने कहा कि चूंकि वैदिक धर्म और पारसी धर्म का उद्गम एक ही है इसलिए समान मूल्य खोजना कठिन नहीं होगा। इसलिए इस तरह की विधि से शादी हुई कि उसे देखकर ऐसा ही लगता है कि वह कोई आम हिंदू परिवार की शादी हो रही है।
पंडित नेहरू ने पंडित लक्ष्मीधर शास्त्री को 16 मार्च 1942 को लिखे पत्र में सलाह दी, ‘विवाह समारोह की खास बात यह है कि यह शादी एक हिंदू और एक गैर हिंदू के बीच हो रही है। महत्व की बात यह है कि पारसी धर्म में बहुत सी विधियां वैदिक धर्म की तरह हैं, क्योंकि दोनों धर्मों का उद्गम एक ही जगह से है। लेकिन फिर भी यह तथ्य सबसे महत्वपूर्ण है कि यह शादी एक हिंदू और एक गैर हिंदू के बीच हो रही है और इसमें यह सुनिश्चित करना है कि शादी के बाद भी वर-वधु अपने-अपने धर्म में बने रहें।