विकास दुबे आखिरकार मा’रा गया । उत्तरप्रदेश के आं’तक का प्रयार्य बने हि’स्ट्रीशी’टर आखिरकार का’ल के गाल में समा गया । एक तरफ उत्तर प्रदशे पुलिस अपनी वाह-वाही बटोर रही है वहीं विपक्ष के लोग इस पर राजनीति शुरू कर रहे हैं । अखिलेश यादव ने अपने ट्वीट में तो ये भी कह दिया कि अगर गाड़ी नहीं पलटती तो सरकार पलट जाती । एनडीटीवी के वरिष्ट पत्रकार रविश कुमार ने भी कहा योगी सरकार ने विकास की गाड़ी को पलटा कर अपनी गाड़ी पलटने से बचा ली । लेकिन इन सबके बीच एक बड़ा सवाल मुँह बाए खड़ा है, जो पुलिस के कार्यशैली से लेकर राजनेताओं के सं’लिप्तता और प्रशासन के कानुन अपने हाथ में लेन पर एक सांवलिया निशान लगा रहा है । वरिष्ट्र लेखक अरूण प्रकाश ने अपने सोशल मीडिया पर इस बाबत एक पोस्ट साझा किया है । हम बिना किसी कां’ट छां’ट के उस पोस्ट को सीधा यहाँ चस्पा कर रहे हैं – टीम हवाबाज
विकास दुबे दु’र्दांत, हि’स्ट्रीशीटर, गैं’गेस्टर, आ’तंकी, खूं’खार, मोस्ट वांटेड क्रि’मिनल था लेकिन उसको ह,थकड़ी लगाकर नहीं लाया जा रहा था।
कानून व्यवस्था से नहीं पुलिस अपनी ही इज्जत से खेल रही है।
गाड़ी नहीं पलटी है, पूरा व्यवस्था बेपटरी कर दी गई है।
कल से छोटे-छोटे बच्चे तक कह रहे थे कि विकास भागने की कोशिश करेगा, और पुलिस उसे मा’र देगी। एक दो जवान घा’यल हो जाएंगे। वही हो गया। आज पुलिस की क्या इज्जत रह गई? कानून व्यवस्था तो जाने दो। कम से कम स्क्रिप्ट तो बदल देते।
जजों को फील्ड में नहीं घूमना होता है। पुलिस को घूमना होता है। उसके लिए जनसंवाद जरुरी है। लोगों में पुलिस के प्रति सम्मान जरूरी है। इससे पुलिस के प्रति अविश्वास और बढ़ेगा।
लेकिन अगर आप अंग्रेज काल की पुलिस चाहते हैं तो क्या कहा जाए।
बहा’दुरी तब दिखानी थी जब उसे अपनी सीमा के भीतर द’बोचकर मार देते। मंदिर के गार्डों ने जिसे पकड़ लिया, वह ‘एसटीएफ’ के हाथों से फिसल गया! कितने चुस्त जवान हैं आपके स्पेशल टास्क फोर्स में!
बिना बात गाड़ी प’लट गई, जैसे गाड़ी नहीं खिलौना गाड़ी हो। यह सब पुलिस की बची हुई प्रतिष्ठा को मटियामेट करने के लिए काफी हैं।
मैं फिर दोहरा रहा हूँ, रावण का अंत दीवाली लेकर आता है। हम मनाएंगे भी लेकिन दीये के उजाले में आपकी का’यरता, आपकी खीझ, बेप;टरी व्यवस्था साफ दिखेगी—तब मत कहना।
अरुण प्रकाश