काेराेना के खिलाफ जंग में दुनिया को ब्रिटेन से बड़ी खुशखबरी मिली है। अाॅक्सफाेर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन का इंसानाें पर पहले अाैर दूसरे चरण का ट्रायल सफल रहा है। मेडिकल जर्नल लैंसेट में साेमवार काे प्रकाशित नतीजाें के अनुसार, ट्रायल में वैक्सीन सुरक्षित मिली। इंसानाें पर काेई खतरनाक दुष्प्रभाव नहीं दिखा। वैक्सीन ने न केवल काेराेना काे निष्क्रिय करने वाले एंटीबाॅडीज का स्तर बढ़ाया, बल्कि वायरस से लड़ने वाले इम्यून टी-सेल्स भी बढ़ाए। हालांकि, शाेधकर्ताअाें ने कहा कि यह वैक्सीन काेराेना के खिलाफ प्रभावी साबित होगी या नहीं, इसकी पुष्टि के लिए तीसरे चरण का ट्रायल जरूरी है।’
ऑक्सफोर्ड ने एस्ट्राजेनेका फर्म के साथ मिलकर वैक्सीन बनाई है। एस्ट्राजेनेका ने भारत के पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट के साथ उत्पादन का करार किया है। सीरम इंस्टीट्यूट के सीईअाे अदर पूनावाला ने कहा, ‘हम अाॅक्सफाेर्ड वैक्सीन पर काम कर रहे हैं। भारत में अगस्त तक इंसानाें पर ट्रायल हाेगा। वैक्सीन 2020 के अाखिर तक उपलब्ध हाे सकती है।’
भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार ने कहा- सब ठीक रहा तो दिसंबर से जनवरी तक हमें वैक्सीन मिल जाएगी : ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन से भारत काफी उत्साहित है। देश के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. प्रो. के. विजयराघवन ने कहा- ‘सब ठीक रहा ताे दिसंबर से जनवरी तक वैक्सीन भारत को मिल जाएगी। ऑक्सफोर्ड ने सबसे बड़ी बाधा पार कर ली है। अहम बात यह है कि वैक्सीन के गंभीर साइड इफेक्ट्स नहीं हंै। दूसरे चरण में अगर कोई बड़ा साइड इफेक्ट न दिखे तो तीसरे चरण के ट्रायल के साथ ही वैक्सीन लाॅन्च की जा सकती है। आपात स्थिति में रेगुलेटर वैक्सीन की इजाजत दे सकता है। अब एआई से रिस्क मैनेजमेंट का सटीक अांकड़ा बहुत कम समय में मिल जाता है।
ट्रायल 18 से 55 साल के 1077 लाेगाें पर हुआ। इंजेक्शन देने के 14 दिन के अंदर लाेगाें में टी-सेल्स का स्तर चरम पर पहुंचा। वहीं, 28 िदन बाद एंटी बाॅडी चरम पर थे। वैक्सीन के बुखार-सिरदर्द साइड इफेक्ट भी हैं, लेकिन वे पैरासिटामॉल से ठीक हो गए। एंटीबाॅडी हमारे इम्यून डिफेंस का ही हिस्सा हैं। एंटीबाॅडी इम्यून सिस्टम से बने छाेटे-छाेटे प्राेटीन हैं जाे वायरस की सतह पर चिपक उसे निष्क्रिय कर देते हैं।
ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन सीएचएडीअाेएक्स1 एनसीअाेवी-19 है। इसे चिम्पांजी में जुकाम की वजह बनने वाले वायरस में जेनेटिक इंजीनियरिंग कर तैयार किया गया है। यह काेराेनावायरस जैसा ही है। वैज्ञानिकाें ने इसमें काेराेना के स्पाइक प्राेटीन के जेनेटिक इंस्ट्रक्शन भी डाले हैं। वैक्सीन से काेशिकाएं स्पाइक प्राेटीन पैदा करती हैं। यह इम्यून सिस्टम काे वायरस पहचान कर लड़ने की ट्रेनिंग देता है।