30 जनवरी 1948 को शाम पाँच बजकर पंद्रह मिनट पर जब गाँधी लगभग भागते हुए बिरला हाउस के प्रार्थना स्थल की तरफ़ बढ़ रहे थे, तो उनके स्टाफ़ के एक सदस्य गुरबचन सिंह ने अपनी घड़ी की तरफ़ देखते हुए कहा था, “बापू आज आपको थोड़ी देर हो गई।”
गाँधी ने चलते-चलते ही हंसते हुए जवाब दिया था, “जो लोग देर करते हैं उन्हें सज़ा मिलती है।” दो मिनट बाद ही नथूराम गोडसे ने अपनी बेरेटा पिस्टल की तीन गोलियाँ महात्मा गाँधी के शरीर में उतार दी थीं।
गांधी का पार्थिव शरीर
गांधी को अपने संस्मरण में प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैयर याद करते हैं, “जब मैं वहाँ पहुंचा तो वहाँ कोई सिक्योरिटी नहीं थी। बिरला हाउस का गेट हमेशा की तरह खुला हुआ था। उस समय मैंने जवाहरलाल नेहरू को देखा। सरदार पटेल को देखा। मौलाना आज़ाद कुर्सी पर बैठे हुए थे ग़मगीन। माउंटबेटन मेरे सामने ही आए। उन्होंने आते ही गाँधी के पार्थिव शरीर को सैल्यूट किया। माउंटबेटन को देखते ही एक व्यक्ति चिल्लाया- ‘गाँधी को एक मुसलमान ने मारा है’। माउंटबेटन ने ग़ुस्से में जवाब दिया- ‘यू फ़ूल, डोन्ट यू नो, इट वॉज़ ए हिंदू!’ मैं पीछे चला गया और मैंने महसूस किया कि इतिहास यहीं पर फूट रहा है। मैंने ये भी महसूस किया कि आज हमारे सिर पर हाथ रखने वाला कोई नहीं है।”
कुलदीप नैयर कहते हैं, “बापू हमारे ग़मों का प्रतिनिधित्व करते थे, हमारी ख़ुशियों का और हमारी आकांक्षाओं का भी। हमें ये ज़रूर लगा कि हमारे ग़म ने हमें इकट्ठा कर दिया है। इतने में मैंने देखा कि नेहरू छलांग लगाकर दीवार पर चढ़ गए और उन्होंने घोषणा की कि गांधी अब इस दुनिया में नहीं हैं।”
गोडसे का कबूलनामा
अदालत में गोडसे ने स्वीकार किया कि उन्होंने ही गांधी को मारा है। अपना पक्ष रखते हुए गोडसे ने कहा, “गांधी जी ने देश की जो सेवा की है, उसका मैं आदर करता हूँ। उनपर गोली चलाने से पूर्व मैं उनके सम्मान में इसीलिए नतमस्तक हुआ था किंतु जनता को धोखा देकर पूज्य मातृभूमि के विभाजन का अधिकार किसी बड़े से बड़े महात्मा को भी नहीं है। गाँधी जी ने देश को छल कर देश के टुकड़े किए। क्योंकि ऐसा न्यायालय और कानून नहीं था जिसके आधार पर ऐसे अपराधी को दंड दिया जा सकता, इसीलिए मैंने गाँधी को गोली मारी।”
गांधी वध और मैं
नाथूराम के भाई गोपाल गोडसे ने अपनी किताब ‘गांधी वध और मैं’ में लिखा है, “जब गोडसे संसद मार्ग थाने में बंद थे तो सीखचों के पीछे खड़े गोडसे को देखने कई लोग आया करते थे। एक बार सीखचों के बाहर खड़े एक व्यक्ति से नथूराम की आखें मिलीं। नथूराम ने कहा, “मैं समझता हूँ आप देवदास गाँधी हैं।” गाँधी के पुत्र ने जवाब दिया, “हाँ, आप कैसे पहचानते हैं?”
गोपाल गोडसे ने अपनी किताब में लिखा है, “गोडसे ने कहा, ‘मैंने आपको एक संवाददाता सम्मेलन में देखा था। आप आज पितृविहीन हो चुके है और उसका कारण बना हूँ मैं। आप पर और आपके परिवार पर जो वज्रपात हुआ है उसका मुझे खेद है। लेकिन आप विश्वास करें, किसी व्यक्तिगत शत्रुता की वजह से मैंने ऐसा नहीं किया है।’
बाद में देवदास ने नथूराम को एक पत्र लिखा था, ‘आपने मेरे पिता की नाशवान देह का ही अंत किया है और कुछ नहीं। इसका ज्ञान आपको एक दिन होगा क्योंकि मुझ पर ही नहीं संपूर्ण संसार के लाखों लोगों के दिलों में उनके विचार अभी तक विद्यमान हैं और हमेशा रहेंगे।'”
गोडसे को फांसी
हिमानी मानती थीं कि गोडसे ने गाँधी की हत्या पूरे होशो-हवास में की थी और उसके पीछे उनके निजी कारण नहीं थे।
उन्होंने कहा था, “जब इतिहास की किताबों में आता है कि नाथूराम गोडसे एक सिरफिरा आदमी था जिसने गाँधी जी की हत्या की थी, तो मुझे भी बहुत दुख होता था। धीरे-धीरे मुझे पता चला कि वो सिरफिरे बिल्कुल नहीं थे। वो एक अख़बार के संपादक थे। उन दिनों उनके पास अपनी मोटर गाड़ी थी। उनका और गाँधीजी का कोई व्यक्तिगत झगड़ा नहीं था। वो पुणे में रहते थे जहाँ देश विभाजन का कोई असर नहीं हुआ था। वो फिर भी गाँधी को मारने गए, उसका एकमात्र कारण यही था कि वो मानते थे कि पंजाब और बंगाल की माँ-बहनें मेरी भी कुछ लगती हैं और उनके आँसू पोछना मेरा कर्तव्य है।”
15 नवंबर 1949 को जब नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फाँसी के लिए ले जाया गया तो उनके एक हाथ में गीता और अखंड भारत का नक्शा था और दूसरे हाथ में भगवा ध्वज। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि फाँसी का फंदा पहनाए जाने से पहले उन्होंने ‘नमस्ते सदा वत्सले’ का उच्चारण किया और नारे लगाए।
अंतिम इच्छा
मैंने हिमानी सावरकर से पूछा था कि फाँसी होने के बाद नाथूराम का अंतिम संस्कार किसने किया?
हिमानी ने बताया था, “हमें उनका शव नहीं दिया गया। वहीं अंदर ही अंदर एक गाड़ी में डालकर उन्हें पास की घग्घर नदी ले जाया गया। वहीं सरकार ने उनका अंतिम संस्कार किया। लेकिन हमारी हिंदू महासभा के अत्री नाम के एक कार्यकर्ता पीछे-पीछे गए थे। जब अग्नि शांत हो गई तो उन्होंने एक डिब्बे में उनकी अस्थियाँ समाहित कर लीं। हमने उनकी अस्थियों को अभी तक सुरक्षित रखा है। हर 15 नवंबर को हम गोडसे सदन में कार्यक्रम करते हैं शाम छह से आठ बजे तक। वहाँ हम उनके मृत्यु-पत्र को पढ़कर लोगों को सुनाते हैं। उनकी अंतिम इच्छा भी हमारी अगली पीढ़ी के बच्चों को कंठस्थ है।”
गोडसे परिवार ने उनकी अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को अभी तक चाँदी के एक कलश में सुरक्षित रखा गया है।
अखंड भारत
हिमानी ने बताया था, “उन्होंने लिखकर दिया था कि मेरे शरीर के कुछ हिस्से को संभाल कर रखो और जब सिंधु नदी स्वतंत्र भारत में फिर से समाहित हो जाए और फिर से अखंड भारत का निर्माण हो जाए, तब मेरी अस्थियां उसमें प्रवाहित कीजिए। इसमें दो-चार पीढ़ियाँ भी लग जाएं तो कोई बात नहीं।”
मैंने हिमानी सावरकर से पूछा था कि गोडसे की फाँसी का आपके परिवार पर क्या असर पड़ा? क्या लोगों ने आपसे मिलना या बातचीत करना छोड़ दिया?
इस सवाल पर हिमानी ने बताया था, “लोग भयभीत थे और हमसे दूर रहते थे क्योंकि वो नहीं चाहते थे कि उनका और हमारा परिचय किसी को पता चले। हम जब स्कूल जाते थे तो सहेलियाँ कहती थीं कि इसके ताऊजी ने गाँधी को मारा है। समाज ने हमारे साथ ऐसा बर्ताव किया जैसे हम अछूत हों। मेरे पिता के जेल से छूटने के बाद जब उन्होंने अपनी पुस्तकें प्रकाशित कीं तब लोगों को लगा कि इनका भी कोई मत हो सकता है। फिर धीरे-धीरे लोग हमारे घरों में आने लगे।”
ये 150 कारण जिसने गोडसे को गांधी वध के लिये मजबूर किया
गोडसे ने कोर्ट रूम में अपना बयान खुद से पढ़ने की ईक्षा जाहिर की, उन्होंने जज से आज्ञा प्राप्त कर ली थी कि वे अपने बयानों को पढ़कर सुनाना चाहते है । अतः उन्होंने वो १५० बयान माइक पर पढ़कर सुनाए। लेकिन कांग्रेस सरकार ने (डर से) नाथूराम गोडसे के गाँधी वध के कारणों पर बैन लगा दिया कि वे बयां भारत की जनता के समक्ष न पहुँच पायें। गोडसे के उन
बयानों में से कुछ बयान क्रमबद्ध रूप में, में लगभग १० भागों में आपके समक्ष प्रस्तुत करूंगा। आप स्वं ही विचार कर सकते है कि गोडसे के बयानों पर नेहरू ने क्यो रोक लगाई ?और गाँधी वध उचित था या अनुचित।
अनुच्छेद, १५ व १६
“इस बात को तो मै सदा बिना छिपाए कहता रहा हूँ कि में गाँधी जी के सिद्धांतों के विरोधी सिद्धांतों का प्रचार कर रहा हूँ। मेरा यह पूर्ण विशवास रहा है कि अहिंसा का अत्यधिक प्रचार हिदू जाति को अत्यन्त निर्बल बना देगा और अंत में यह जाति ऐसी भी नही रहेगी कि वह दूसरी जातियों से ,विशेषकर मुसलमानों के अत्त्याचारों का प्रतिरोध कर सके।”
“हम लोग गाँधी जी कि अहिंसा के ही विरोधी ही नही थे,प्रत्युत इस बात के अधिक विरोधी थे कि गाँधी जी अपने कार्यों व विचारों में मुसलमानों का अनुचित पक्ष लेते थे और उनके सिद्धांतों व कार्यों से हिंदू जाति कि अधिकाधिक हानि हो रही थी।
अनुच्छेद, ६९ ।।
“३२ वर्ष से गाँधी जी मुसलमानों के पक्ष में जो कार्य कर रहे थे और अंत में उन्होंने जो पाकिस्तान को ५५ करोड़ रुपया दिलाने के लिए अनशन करने का निश्चय किया ,इन बातों ने मुझे विवश किया कि गाँधी जी को समाप्त कर देना चाहिए। ”
अनुच्छेद,७० भाग ख
“खिलाफ त आन्दोलन जब असफल हो गया तो मुसलमानों को बहुत निराशा हुई और अपना क्रोध उन्होंने हिन्दुओं पर उतारा।
–“मालाबार,पंजाब,बंगाल ,
सीमाप्रांत में हिन्दुओं पर अत्यधिक अत्याचार हुए। जिसको मोपला विद्रोह के नाम से पुकारा जाता है। उसमे हिन्दुओं कि धन, संपत्ति व जीवन पर सबसे बड़ा आक्रमण हुआ। हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाया गया,स्त्रियों के अपमान हुए। गाँधी जी अपनी निति के कारण इसके उत्तरदायी थे, मौन रहे।”
“प्रत्युत यह कहना शुरू कर दिया कि मालाबार में हिन्दुओं को मुस्लमान नही बनाया गया। यद्यपि उनके मुस्लिम मित्रों ने ये स्वीकार किया कि मुसलमान बनाने कि सैकडो घटनाएं हुई है।
-और उल्टे मोपला मुसलमानों के लिए फंड शुरू कर दिया। ”
जैसा की पिछले भाग में बताया गया है कि गोडसे गाँधी की मुस्लिम तुस्टीकरण की निति से किस प्रकार छुब्द था अब उससे आगे के बयान
अनुच्छेद ७० का भाग ग जब खिलाफत आन्दोलन असफल हो गया –
इस ध्येय के लिए गाँधी अली भाइयों ने गुप्त से अफगानिस्तान के अमीर को भारत पर हमला करने का निमंत्रण दिया।इस षड़यंत्र के पीछे बहुत बड़ा इतिहास है।
-गाँधी जी के एक लेख का अंश नीचे दिया जा रहा है।
“मै नही समझता कि जैसे ख़बर फैली है,अली भाइयों को क्यो जेल मे डाला जाएगा और मै आजाद रहूँगा? उन्होंने ऐसा कोई कार्य नही किया है कि जो मे न करू। यदि उन्होंने अमीर अफगानिस्तान को आक्रमण के लिए संदेश भेजा है,तो मै भी उसके पास संदेश भेज दूँगा कि जब वो भारत आयेंगे तो जहाँ तक मेरा बस चलेगा एक भी भारतवासी उनको हिंद से बहार निकालने में सरकार कि सहायता नही करेगा।”
अनुच्छेद ७० का भाग ठ हिन्द के विरूद्ध
हिदुस्तानी –राष्ट्र भाषा के प्रश्न पर गाँधी जी ने मुसलमानों का जिस प्रकार अनुचित पक्ष लिया—-किसी भी द्रष्टि से देखा जाय तो राष्ट्रभाषा बनने का अधिकार हिन्दी को है। परंतु मुसलमानों खुश करने के लिए वे हिन्दुस्तानी का प्रचार करने लगे-यानि बादशाह राम व बेगम सीता जैसे शब्दों का प्रयोग होने लगा। हिन्दुस्तानी के रूप में स्कूलों में पढ़ाई जाने लगी इससे कोई लाभ नही था ,प्रत्युत इसलिए की मुस्लमान खुश हो सके। इससे अधिक सांप्रदायिक अत्याचार और क्या होगा?
अनुच्छेद ७० का भाग ड न गाओ वन्देमातरम
कितनी लज्जा जनक बात है की मुस्लमान वन्देमातरम पसंद नही करते। गाँधी जी पर जहाँ तक हो सका उसे बंद करा दिया।
अनुच्छेद ७० का भाग ढ
गाँधी ने शिवबवनी पर रोक लगवा दी शिवबवन ५२ छंदों का एक संग्रह है,जिसमे शिवाजी महाराज की प्रशंसा की गई है।-इसमे एक छंद में कहा गया है की अगर शिवाजी न होते तो सारा देश मुस्लमान हो जाता। -इतिहास और हिंदू धर्म के दमन के अतिरिक्त उनके सामने कोई सरल मार्ग न था।
अनुच्छेद ७० का भाग फ कश्मीर के विषय
में गाँधी हमेशा ये कहते रहे की सत्ता शेख अब्दुल्ला को सौप दी जाय, केवल इसलिए की कश्मीर में मुसाल्मान अधिक है। इसलिए गाँधी जी का मत था की महाराज हरी सिंह को सन्यास लेकर काशी चले जन चाहिए,परन्तु हैदराबाद के विषय में गाँधी की निति भिन्न थी। यद्यपि वहां हिन्दुओं की जनसँख्या अधिक थी ,परन्तु गाँधी जी ने कभी नही कहा की निजाम फकीरी लेकर मक्का चला जाय।
अनुच्छेद ७० का भाग म
कोंग्रेस ने गाँधी जी को सम्मान देने के लिए चरखे वाले झंडे को राष्ट्रिय ध्वज बनाया। प्रत्येक अधिवेशन में प्रचुर मात्रा में ये झंडे लगाये जाते थे । इस झंडे के साथ कोंग्रेस का अति घनिष्ट समबन्ध था। नोआखली के १९४६ के दंगों के बाद वह ध्वज गाँधी जी की कुटिया पर भी लहरा रहा था, परन्तु जब एक मुस्लमान को ध्वज के लहराने से आपत्ति हुई तो गाँधी ने तत्काल उसे उतरवा दिया। इस प्रकार लाखों करोडो देशवासियों की इस ध्वज के प्रति श्रद्धा को अपमानित किया। केवल इसलिए की ध्वज को उतरने से एक मुस्लमान खुश होता था।
अनुच्छेद ७८ गाँधी जी
सुभाषचंद्र बोस अध्यक्ष पद पर रहते हुए गाँधी जी की निति पर नही चले। फ़िर भी वे इतने लोकप्रिय हुए की गाँधी जी की इच्छा के विपरीत पत्ताभी सीतारमैया के विरोध में प्रबल बहुमत से चुने गए । गाँधी जी को दुःख हुआ।उन्होंने कहा की सुभाष की जीत गाँधी की हार है। जिस समय तक सुभाष बोस को कोंग्रेस की गद्दी से नही उतरा गया तब तक गाँधी का क्रोध शांत नही हुआ ।
अनुच्छेद ८५
मुस्लिम लीग देश की शान्ति को भंग कर रही थी। और हिन्दुओं पर अत्याचार कर रही थी। कोंग्रेस इन अत्याचारों को रोकने के लिए कुछ भी नही करना चाहती थी,क्यो की वह मुसलमानों को प्रसन्न रखना चाहती थी। गाँधी जी जिस बात को अपने अनुकूल नही पते थे ,उसे दबा देते थे। इसलिए मुझे यह सुनकर आश्चर्य होता है की आजादी गाँधी जी ने प्राप्त की । मेरा विचार है की मुसलमानों के आगे झुकना आजादी के लिए लडाई नही थी। गाँधी व उनके साथी सुभाष को नष्ट करना चाहते थे।
अनुच्छेद ८८ ।
गाँधी जी के हिंदू मुस्लिम एकता का सिद्धांत तो उसी समय नष्ट हो गया, जिस समय पाकिस्तान बना। प्रारम्भ से ही मुस्लिम लीग का मत था की भारत एक देश नही है। हिंदू तो गाँधी के परामर्श पर चलते रहे किंतु मुसलमानों ने गाँधी की तरफ़ ध्यान नही दिया और अपने व्यवहार से वे सदा हिन्दुओं का अपमान और अहित करते रहे और अंत में देश दो टुकडों में बँट गया।
1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के नायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए। गान्धी जी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया। इसके बाद जब उधम सिंह ने जर्नल डायर की हत्या इंग्लैण्ड में की तो,
गाँधी ने उधम सिंह को एक पागल उन्मादी व्यक्ति कहा, और उन्होंने अंग्रेजों से आग्रह किया की इस हत्या के बाद उनके राजनातिक संबंधों में कोई समस्या नहीं आनी चाहिए |
2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी जी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्तु गान्धी जी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।
3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी जी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।
4. मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी जी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान
बना लिया गया। गान्धी जी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।
5. 1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द की अब्दुल रशीद नामक मुस्लिम युवक ने हत्या कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी जी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।
6. गान्धी जी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
7. गान्धी जी ने जहाँ एक ओर कश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को कश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।
8. यह गान्धी जी ही थे, जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।
9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी जी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।
10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी जी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।
11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी जी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
12. 14-15 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी जी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी जी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।
14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।
15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी जी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।
16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण को देखते हुए, यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी जी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।
फांसी देने वाले जज की है यह टिप्पणी : तो निर्दोष होता गोडसे
ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक महात्मा गांधी की हत्या के पूरे मुकदमे के दौरान नाथूराम शांत चित्त बना रहा और हत्या के पीछे के कारणों को तर्कपूर्ण ढंग से सामने लाता रहा। उन तर्कों या उस पूरे मुकदमे के आधार पर जस्टिस जीडी खोसला ने ‘द मर्डर ऑफ द महात्मा’ (The Murder Of Mahatma) किताब लिखी। इसमें उन्होंने एक टिप्पणी की है, जो इतिहास को झकझोर कर नाथूराम गोडसे को एक नई रोशनी में देखने को प्रेरित करती है। उन्होंने लिखा है, ‘मुझे इसमें कोई शक नहीं है कि यदि उस दिन अदालत में उपस्थित दर्शकों को संगठित कर ज्यूरी (Jury) बना दिया जाता। इसके साथ ही उन्हें नाथूराम गोडसे पर फैसला (Verdict) सुनाने को कहा जाता, तो भारी बहुमत के आधार पर गोडसे ‘निर्दोष’ (Not Guilty) करार दिया जाता।’
गोडसे ने कहा बापू राष्ट्र पिता नहीं पाकिस्तान के पिता
महात्मा गांधी की हत्या के मामले में मुख्य आरोपी नाथूराम विनायक गोडसे ने हत्या का कभी नैतिक प्रायश्चित (guilty conscious) नहीं किया। गोडसे ने हमेशा यही कहा कि बापू को गोली मारना देश की खातिर उठाया गया कदम था। यही वजह है कि नाथूराम गोडसे ने ज्यूरी के समझ प्रस्तुत अपने 150 सूत्रीय बयान (Nathuram Godse Statement) में अपने ‘किए को सही’ ठहराया। अपने बयानों में गोडसे ने महात्मा गांधी को ‘राष्ट्र पिता’ (father Of nation) नहीं, ‘पाकिस्तान का पिता’ (Father Of Pakistan) करार दिया। अपने बयानों में गोडसे ने आरोप लगाया कि महात्मा गांधी ने पूरी तरह से सांप्रदायिक खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया, हजारों बंगालियों के कत्ल-ए-आम का मूक दर्शक-पाकिस्तान के गठन का पैरोकार हुसैन सुहरावर्दी (Suhrawardy) को नैतिक समर्थन दिया, विभाजन पर चुप्पी साधी, विभाजन (Partition) के बाद पाकिस्तान को आर्थिक मदद के लिए उपवास पर बैठना, हिंदुओं के कत्ल-ए-आम के बावजूद दिल्ली आए शरणार्थियों से मस्जिद खाली करने को कहना जैसी तमाम मुसलमान परस्त बातों ने गोडसे को उनकी हत्या के लिए प्रेरित किया। गोडसे का मानना था कि ‘राष्ट्र पिता’ वास्तव में एक पिता की जिम्मेदारी भूल गए थे, जिन्होंने अपने दो बच्चों में से एक का आंख बंद कर समर्थन किया।
गोडसे का आरोप गांधीजी ने मुस्लिमों के फेर में की हिंदुओं की अनदेखी
अदालत में गांधीजी की हत्या का मुकदमा (Gandhi Murder Trial) शुरू होने पर 37 वर्षीय सौम्य चित्त गोडसे (Nathuram Godse speech) ने कहा था, ‘गांधी पर गोलिया चलाने से पहले मैंने उनके पैर छूकर उनका आशीर्वाद भी लिया था। मेरी दुश्मनी गांधी से नहीं उनके विचारों और नीतियों से थी।’ इसके साथ ही गोडसे ने अदालत में चली पूरी बहस में उन तमाम कारणों पर विस्तार से चर्चा की, जिनकी वजह से वह गांधी वध के लिए प्रेरित हुआ। गोडसे के तर्क यही बात बार-बार कह रहे थे अखंड भारत में हिंदू-मुस्लिम (Hindu Muslim) वैमनस्यता के पीछे गांधी जिम्मेदार थे। गांधी अपनी नीतियों और विचारों से सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों को तुष्ट या खुश करने में लगे रहे। इस फेर में उन्होंने हिंदु हितों की अनदेखी कर दी। गांधी के आंदोलनों और उपवास से देश को फायदा कम नुकसान ही ज्यादा हुआ। गौरतलब है कि गोडसे के अगर सांप्रदायिक आरोपों को दरकिनार कर दिया जाए तो भगत सिंह (Bhagat Singh) और नेताजी सुभाष चंद बोस (Subhash Chandra Bose) के विचार भी गांधी के प्रति कुछ ऐसे ही थे।