वैश्विक भूख सूचकांक की रिपोर्ट आई है । भारत को भुखमरी वाला देश घोषित कर दिया गया है । सोशल मीडिया पर एक बड़ा तबका इसके लिये सरकार को जिम्मेदार बताकर छिछालेदर करने में जुटी हुई है । बिना यह सोच-विचार किये कि भारत भुखमरी का शिकार कैसे हो सकता है । यहाँ का एक-एक आदमी सौ-सौ रसगुल्ला चांपता है । शादी-बियाह से लेकर मृत्यु तक में हजार-हजार लोगों को भोजन करवाता है । किसी भी व्रत में दान करता है । भिखमंगों और गरीबों को पैसा देता है भोजन देता है । फिर अचानक से यह भुखमरी का शिकार कैसे हो गया । वैसे पिछले 30 सालों में हमने अपने गाँवमें किसी को भी भूख से मरते नहीं देखा है । हाँ पोषण और कुपोषण अलग बात है । तो आइये पहले जानते हैं क्या होता है भूख नापने का पैमाना और कैसे भारत इसमें फिसड्डी हो गया । पाकिस्तन और श्रीलंका से भी जो हमेशा हमारे आगे हाथ फैलाएं रहते हैं ।
इन चार पैमानों पर बनता है हंगर इंडेक्स
पहला- अल्पपोषण (Undernourishment) यानी खाने की सामग्री की पर्याप्त मात्रा मौजूद नहीं है । खाने के सामग्री की मौजूदगी और अल्पपोषित आबादी का हिस्सा. यानी पूरी कैलोरी शरीर में नहीं जा रही है ।
दूसरा- Child Wasting यानी पांच साल के उम्र से कम के बच्चे जो बुरी तरह से अल्पपोषित हैं । इसका सही मतलब ये होता है कि बच्चे अपनी हाइट के हिसाब से कितने वजनी हैं । अगर वजन कम हैं तो चाइल्ड वेस्टिंग है ।
तीसरा – Child Stunting यानी पांच साल से कम उम्र के वो बच्चे अपनी उम्र के हिसाब से सही हाइट हासिल नहीं कर पाए । यानी क्रोनिक अल्पपोषण (Chronic Undernutrition) की स्थिति ।
आखिरी- Child Mortality यानी पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत की दर, वह भी पोषण की कमी की वजह से । दूसरा अस्वस्थ पर्यावरण की वजह से ।
कैसे मिलता है देशों को इंडेक्स में स्थान?
हर देश को 100 अंकों के स्केल पर नापा जाता है । अंतिम स्कोर की गणना अल्पपोषण और बाल मृत्युदर, दोनों को 33.33% अंक और चाइल्ड वेस्टिंग और चाइल्ड स्टंटिंग को 16.66% के अंक पर मापा जाता है । जिन देशों को 9.9 या उससे कम अंक मिलते हैं, उन्हें भूख की Low कैटेगरी में डाला जाता है । जिनका अंक 20 से 34.9 होता है, उन्हें Serious कैटेगरी में डाला जाता है । जिनका अंक 50 या उससे ऊपर होता है से Extremely Alarming कैटेगरी में डाल दिया जाता है ।
भारत को 29.1 स्कोर मिला है । यानी यह Serious कैटेगरी में आता है । जबकि नेपाल को 81, पाकिस्तान को 99, श्रीलंका को 64 और बांग्लादेश को 84 अंक मिले हैं । साल 2000 में भारत का यह स्कोर 38.8 था । जो साल 2014 में घटकर 28.2 हो गया था । उसके बाद से लगातार भारत का हंगर इंडेक्स स्कोर बढ़ता जा रहा है ।
वैसे भारत में भुखमरी शून्य है। भुखमरी एक मध्य-पूर्व और पश्चिमी अवधारणा है जहाँ जलवायु की विषम परिस्थितियों में मनुष्य को भोजन के लिए हिंसा का सहारा लेना पड़ता था ।
सभ्यता के आधुनिक वैज्ञानिक पैटर्न्स भी देखें तो सहस्त्रों वर्षों से भारतीय सभ्यताएं इस प्राथमिक मूलभूत आवश्यकता यानी भोजन व्यवस्था में निपुण और दक्ष रही हैं। यहाँ के घुमन्तु वर्ग भी केवल मवेशियों की भोजन व्यवस्था के लिए ही घुमन्तु रहे हैं और इनको कभी सुरक्षा के लिए समर्पित शस्त्रबल की आवश्यकता नहीं रही। शहस्त्रों वर्षों से भारत के लोग भोजन व्यवस्था करना जानते हैं।
आधुनिक समय में आधुनिक व्यवस्था में कुछ विरले उदाहरण मिल जाते हैं वो भी केवल व्यक्तिगत ही होते हैं और अधिकतर शहरी व्यवस्था में होते हैं जहाँ सामाजिक व्यवस्था समाज ना रहकर व्यक्तिगत ही रह जाती है । भारत की पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन स्कीम तकनीकी तौर पर 100% कवर करती है । कोई सरक्यूमस्टांसियल चूक हो भी तो वो भी 1% का चौथाई भी नहीं बैठेगा ।
भारत में पिछले कुछ वर्षों में जितने भी अध्ययन हुए है सब एक ही बात साबित करते हैं कि भारत की 40% जनससँख्या ओवर ईटिंग यानी जरूरत से अधिक भोजन करती है । यहाँ कुपोषण का मुख्य कारण भोजन में कार्ब्स अधिक होना है जो अन्य कुछ पोषकतत्वों को रोकता है । भारत का मध्यवर्ग लौह, जिंक, मैग्नीशियम, विटामिन बी काम्प्लेक्स जैसी कमियों पर एकतरफा अधिपत्य जमाये हुए है । जबकि ये वर्ग कोल्ड्रिंक के लगभग 100% उत्पादन को खपाता है ।
पश्चिमी देशों में जो व्यवस्था बन चुकी है उसमें भोजन प्रबंधन एक प्रत्यक्ष प्रक्रिया नहीं है । आप काम करोगे, पैसा लोगे, फिर भोजन भी असली उत्पादक के बाद कि 3-4 सतहों से होकर पहुंचेगा । ये जटिलता ना केवल खाद्य पदार्थों के अपव्यय को बढ़ाती है बल्कि आपूर्ति की प्रक्रिया को भी बहुत अधिक नाजुक बनाती है । कुछ पदार्थों में केवल पूर्ति के लिए ही 40-50% अधिक उत्पादन करना पड़ता है ।
भारत भी इससे अछूता नहीं है परंतु भारत में आहार विभिन्नता खाद्य सामग्री की क्षेत्रीय निर्भरता अधिक बनाती है जिससे 70 से 90% तक खपत क्षेत्रीय रहती है । होमलेसनेस पश्चिमी देशों की बड़ी समस्याओं में से एक है जो पूरी तरह से बड़े शहरों तक ही सीमित है । भारत में भी ऐसा ही है । इसका मुख्य कारण गरीबी नहीं बल्कि मानसिक स्थिति और चयन है । चयन एक जटिल कांसेप्ट है परंतु सीधे शब्दों में कहें तो ये स्थिति लोगों की स्वयं की चुनी हुई होती है जबकि बेहतर विकल्प जो शायद बहुत ही थोड़े प्रयास के बाद उपलब्ध हैं ।
बाकी अगर वामपंथियों के आधुनिक मापदंडों पर जाएं तो आज़ादी के बाद भारत में नेहरू के अलावा सभी भुखमरी झेल रहे थे ।