यश चोपड़ा हिंदी फिल्मों में सबसे प्यारी रोमांटिक फिल्में बनाने वाले फिल्मकार थे। इसी वजह से उन्हें किंग्स ऑफ रोमांस कहा जाता था। यश राज
चोपड़ा (27 सितम्बर 1932 – 21 अक्टूबर 2012) निमार्ता, निर्देशक व पटकथा लेखक के रूप में हमेशा याद किए जाएंगे।
कभी कभी प्यारी प्रेम कथा
उनकी निर्देशित पहली फिल्म धूल का फूल(1959) में आप इसकी खूशबू को महसूस कर सकते हैं। उनकी मुहब्बत की कहानी कहने का फूल पूरी तरह से खिलता है कभी-कभी में। यह उनकी सबसे प्यारी फिल्मों में से एक है। इसी फिल्म के गीत मनमोहक हैं। फिल्म के पहले हाफ में साहिर लुधियानवी की शायरी सुनने का मजा और ही है। वो भी अमितजी की मनमोहक आवाज में कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है। इसी फिल्म में हम यश जी की प्राकृतिक सौंदर्य को मनमोहक अंदाज में दिखाने की खासियत को उभरता हुआ देख सकते हैं। यह सिलसिला उनकी बाद कि फिल्मों में और भी नयापन और ताजगी लिये हुआ आया। सिलसिला, चांदनी, लम्हें व डर जैसी फिल्मों में स्वीटजरलैंड के प्राकृतिक दृश्य सच में स्वर्ग में जाने जैसा अनुभव कराते हैं।
वक्त पहली मल्टीस्टार फिल्म
वक्त फिल्म से उन्होंने मल्टीस्टारर् फिल्मों का ट्रेंड शुरू किया। उसका एक गाना काफी लोकप्रिय हुआ था ओ मेरी जोहरा जबी तुझे मालूम नहीं तू अभी तक है
हसी और मैं जवान..।
दीवार से अमिताभ की एंग्रीयंगमैन की छवि पुख्ता हुई
रोमांटिक और सीधे साधे इंसान की भूमिका करते आए अमिताभ बच्चन को प्रकाश मेहरा की जंजीर से जो एंग्रीयंग मैन का नया अवतार मिला उसे पुख्ता किया यश जी की दीवार ने। इसके बाद से तो अमितजी इसी छवि से करीब दो दशक तक बंधे रहे। नमक हलाल से उन्होंने कॉमेडी शुरू की थी। दीवार अमिताभ बच्चन की सबसे लाजवाब फिल्मों में से एक है उनका बिल्ला न 786, फेंके हुए पैसे आज भी मैं नहीं लेता साहनी सेठ और जाओ पहले उस आदमी का साइन लेकर आओ जिसने मेरे हाथ में ये लिखा तुम्हारा बाप चोर है और अमिताभ का भगवान के मंदिर के बाहर ही खड़ा रहना भूले नहीं भूलते।
काला पत्थर सायकोलाजी पर खड़ी कहानी
काला पत्थर भी काफी अच्छी फिल्म थी उसकी थीम बहुत ही अच्छी थी कि अमिताभ बच्चन एक जहाज के कैप्टेन हैं और जहाज डूबने लगता है तो वे यात्रियों को पहले बचने का मौका देने की जगह खुद पहले जान बचाना चाहते हैं। इसके बाद इसके ठीक उलट गुमनामी की जिंदगी जीते हुए वे दूसरे लोगों की जान बचाने के लिए हमेशा अपनी जान जोखिम में डालने को तैयार हो जाते हैं। ये काफी अच्छा मनोवैज्ञानिक चित्रण हैं मेरे खुद के जीवन में भी एक दौर ऐसा आया था। त्रिशूल भी यशजी की यादगार फिल्म है बाप बेटे के रिश्तों की कहानी। हमेशा की तरह प्यारे गाने एक मजेदार गाना था गापूची गापूची गम गम और मुहब्बत बड़े काम की चीज है..। 1973 में उन्होंने खुद की फिल्म निर्माण कंपनी यशराज फिल्मस बनाई।
इनकी पहली फिल्म राजेश खन्ना औऱ शर्मिला टैगोर की दाग थी जो हिट रही थी। मेरा ध्यान यश की तरफ सिलसिला के बाद उनका एक इंटरव्यु पढ़ने के बाद गया। वो मुझे अच्छे लगने लगे। उन्होंने बताया कि किस तरह वो एक बार मसाला फिल्म बनाते है फिर अपने मन की। सिलसिला फ्लाप हुई थी तो उन्होंने चांदनी बनाई। उसके बाद अपने मन की लम्हे बनाई वो भी फ्लाप रही।
सिलसिला लाजवाब रोमांटिक फिल्म
सिलसिला उनके करियर की महत्वपूर्ण फिल्म है यह गजब की फिल्म है अमिताभ, रेखा, जया, शशि व संजीव कुमार सभी ने शानदार अभिनय किया है। फिल्म के गीत तो आल टाइम हिट है रंग बरसे सबसे अधिक लोकप्रिय हुआ लेकिन मेरा फेवरेट नीला आसमां सो गया है। मुझे लगता है कि अमितजी ने अपने अब तक के करियर में यही सबसे बेहतरीन गाना गाया है। उनका एक डायलाग भी खूब चला मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बाते करते हैं तुम होती तो ऐसा होता..।
लम्हे क्लासिक
फ्लाप फिल्म का ठपा लगने के बावजूद लम्हे फिल्म लाजवाब है ये भी एक तरह की मनोवैज्ञानिक अवधारणा पर आधारित फिल्म है अनिल कपूर और श्रीदेवी में प्रेम है श्रीदेवी की बेटी (श्रीदेवी ही डबल रोल में हैं) को अपने मां के प्रेमी से ही प्रेम हो जाता है और उसे परवान चढ़ाने का साहस ही यश जी को महंगा पड़ा। भारतीय जनमानस उसे पचा नहीं पाया जैसा कि राजकपूर के मेरा नाम जोकर के साथ हुआ था। यश चोपड़ा को गीत व संगीत की समझ कमाल की थी। उनकी लगभग सारी फिल्मों के गीत बेहतरीन रहे हैं।
शिवहरि का मधुर संगीत
उन्होंने सिलसिला से क्लासिकल संगीत जोड़ी शिव-हरि को मौका दिया जिन्होंने उनकी आगे की कई फिल्मों चांदनी, लम्हे और डर आदि में भी कर्णप्रिय संगीत दिया। हरिप्रसाद चौरसिया की बांसुरी सुनना सच में अनोखा अनुभव होता है। डर(1993) फिल्म भी एक नया ट्रेंड शुरू करनेवाली फिल्म थी ।इसमें विलेन शाहरूख खान हीरो सन्नी देओल ये कहीं ज्यादा अपील करते हैं। अपनी प्रेमिका को पाने के लिए किसी भी हद तक जाने का जुनून शायद हिंदी सिनेमा में इतने बेहतरीन तरीके से नहीं फिल्माया गया होगा। इसके बाद यश जी की निर्देशित फिल्म आई दिल तो पागल है(1997) इसमें प्यारे गीतों की भरमार थी। इसने भी नया ट्रेंड शुरू किया कोरियोग्राफरों की अलग से पहचान होने लगी, शामक डावर रातोरात स्टार हो गए।
वीर जारा मुहब्बत की अनूठी दास्तान
फिर आई एक प्यारी सी दिल को छूनेवाली लव स्टोरी वीर-जारा। आंसू भी बहाने वाली और प्यारे संगीत में लिपटी फिल्म। इसका गीत लो हम आ गए कहां सचमुच दिल को छूता है। शाहरूख व प्रिटी जिंटा ने अच्छा अभिनय किया है। इसके बाद से और बीच में भी यशराज फिल्म ने कही हिट फिल्में दी हैं जैसे मोहब्बते,,दिलवाले दुल्हनीया ले जाएंगे, बंटी औऱ बबली, धूम व धूम 2 आदि।
रिकार्ड तोड़ डीडीएलजे
इनमें से दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, की चर्चा करना चाहूंगा इस फिल्म ने शोले फिल्म को रिकार्ड तोड़ा था एक ही सिनेमा हाल में लगातार पांच वर्ष से भी अधिक समय तक चलने का। आज के दौर में इतने समय तक एक फिल्म चलना कोई सोच भी नहीं सकता। आज की फिल्में बस तीन दिनों की कहानी हैं किसी तरह सौ करोड़ के कारोबारी लिस्ट में शामिल हो गई बस कहानी खत्म। दूसरे सप्ताह तक आते आते ज्यादातर फिल्में दम तोड़ती नजर आती हैं। यश जी के काम को पर्याप्त सराहना और पुरस्कार मिले। वो हिंदी सिनेमा के उन चंद व्यावसायिक फिल्मों के निर्देशकों में से है जिन्हें चार बार लोकप्रिय फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिले। 1994 में डर,1 996 में दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे, 1998 में दिल तो पागल है कथा 2005 में वीर जारा के लिए।
उनकी अंतिम निर्देशित फिल्म जब तक है जान है। यश जी रोमांटिक, संगीतमय और दर्शनीय फिल्में बनानेवाले फिल्मकार के रूप में हमेशा याद किए जाएंगे।
नवीन शर्मा