आज सभी अखबारों में दो ही खबर प्रमुखता से छाई हुई है । पहला अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत यात्रा की और दुसरी सीएए पर हंगामें की । इसी हंगामे के बीच सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा है कि विरोध दर्ज कराने का मतलब देशद्रोह नहीं होता है। द हिंदू में छपे आर्टिकल के मुताबिक जस्टिस गुप्ता ने कहा, “किसी पार्टी को चुनाव में 51% वोट मिलने का यह अर्थ नहीं है कि बाकी 49% लोगों को ज़बान पर ताला लगाना पड़े।”
जस्टिस गुप्ता ने ये बातें सुप्रीम कोर्ट बार असोसिएशन द्वारा ‘लोकतंत्र और मतभेद’ पर चर्चा के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में कहीं।
उन्होंने कहा, “कोई समाज तभी बेहतर हो सकता है, जब इसके नियमों को सवालों के घेरे में खड़ा किया जाए। मतभेदों का स्वागत किया जाना चाहिए। संवाद से ही हम इस देश को बेहतर बना सकते हैं। अगर कोई विरोध हिंसक नहीं होता है, तो सरकार को इसे दबाने का कोई हक नहीं है।”
जानिए क्या है देशद्रोह
भारतीय कानून संहिता (आईपीसी) की धारा 124A में देशद्रोह की दी हुई परिभाषा के मुताबिक, अगर कोई भी व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है या फिर ऐसी सामग्री का समर्थन करता है, या राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है, तो उसे आजीवन कारावास या तीन साल की सजा हो सकती है।
कहां से आया नियम :
देशद्रोह पर कोई भी कानून 1859 तक नहीं था। इसे 1860 में बनाया गया और फिर 1870 में इसे आईपीसी में शामिल कर दिया गया।