सुप्रीम कोर्ट में आज से एक साथ तीन मसलों पर बहस शुरू हुई है । तीनों मसले औरतों के अधिकार से जुड़े हैं । पहला केस जहाँ सबरीमाला और अयप्पा में महिलाओं के प्रवेश को लेकर है । वहीं दुसरा केस मस्जिद में मुस्लिम महिलाओं के एंट्री को लेकर है । और तीसरा केस बहुत ही इंट्रेस्टिंग है, बोहरा समाज में मुस्लिम महिलाओं का खतना होता है जिसको लेकर पीआईएल दाखिल की गई है । आइये जानते हैं क्या है मसला ।
मस्जिद में मुस्लिम महिलाओं की एंट्री
यास्मीन जुबैर अहमद पीरजादा ने सुप्रीम कोर्ट में PIL डाली। 2019 में। मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में अन्दर जाने की मांग को लेकर। इस पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट को जवाब लिखा है, उन्होंने कहा है कि मस्जिद में नमाज़ पढ़ने के लिए महिलाओं की एंट्री पर कोई रोक नहीं है। वो पूरी तरह से स्वतंत्र हैं अन्दर जाने के लिए। वो इस आज़ादी का उपयोग करती हैं या नहीं, ये उन पर निर्भर करता है। AIMPLB के सेक्रेटरी मोहम्मद फज़लुर्रहीम ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एफिडेविट में यही कहा। ये भी कहा गया कि AIMPLB इस मामले से जुड़े किसी भी दूसरे धार्मिक मत पर कोई टिप्पणी नहीं करेगा। एफिडेविट में यह भी लिखा गया कि जुम्मे की सामूहिक नमाज़ में शामिल होने को लेकर महिलाओं पर कोई पाबंदी नहीं है। पुरुषों के ऊपर है। महिलाएं चाहे घर पर नमाज़ पढ़ें या मस्जिद में, उन्हें बराबर का सवाब (पुण्य) मिलता है।
दाउदी बोहरा समुदाय में महिलाओं का ख़तना
2017 में सुप्रीम कोर्ट में PIL दाखिल हुई। करने वाली वकील थीं सुनीता तिवारी। इस PIL में महिलाओं के ख़तने पर रोक लगाने की मांग की गई थी। दाऊदी बोहरा समुदाय में खफ्ज़ प्रथा होती है। इसमें बच्चियों के जन्म के बाद उनकी क्लिटोरिस का ऊपरी हिस्सा काट दिया जाता है। इस पेटीशन के समर्थन में कहा गया कि इस प्रथा के चलते बच्चों के अधिकारों का हनन होता है, और बराबरी का अधिकार भी बच्चियों से छिन जाता है। इस पेटीशन के विरोध में कहा गया कि खफ्ज़ की प्रथा समुदाय के धार्मिक रीति-रिवाजों से जुड़ी है। और अपने धर्म से जुड़े रिवाज निभाने की आज़ादी संविधान के 25वें और 26वें अनुच्छेद ने दे रखी है। 2018 में भारत के एटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस मामले में वो निर्देश जारी करें। कहा कि वर्तमान कानून के तहत फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन अपराध है। सितंबर, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे पांच जजों की बेंच के हवाले किया। और अब नौ जजों की बेंच इस पर सुनवाई कर रही है।