सेवानिवृत्त होने के बाद मुख्य न्यायाधीशों को उपकृत करने का चलन पुराना है। 84 के दंगों में क्लीन चिट देने वाले पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंगनाथ मिश्र राज्य सभा लाए गए थे। पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी सदाशिवम केरल के राज्यपाल बनाए गए थे।
1984 के सिख नरसंहार मामले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा मिलने के साथ ही अब देश के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंगनाथ मिश्रा की तब की भूमिका पर सवाल उठने लगा है। मालूम हो कि काफी दबाव के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने दिल्ली में हुए सिख नरसंहार मामले की जांच के लिए रंगनाथ मिश्र के नेतृत्व में एक सदस्यी आयोग का गठन किया था। रंगनाथ मिश्र ने 1987 में अपनी रिपोर्ट में कांग्रेस को क्लीन चिट देते हुए इसका सारा दोष दिल्ली के तत्कालीन उप राज्यपाल तथा पुलिस कमिश्नर के मत्थे मढ दिया था। रंगनाथ मिश्र की उसी रिपोर्ट के बाद से उनके करियर को मानो पंख लग गया था। कांग्रेस पर किए गए इसी उपकार की बदौलत उन्हें न केवल सुप्रीम कोर्ट का 34वां मुख्य न्यायाधीश बनाया गया बल्कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का पहला चेयरमैन भी बनाया गया। इतना ही नहीं बाद में कांग्रेस सरकरा ने उन्हें अनुसूचित जाति जनजाति तथा अल्पसंख्यक आयोग का भी अध्यक्ष बना दिया गया।
1984 नरसंहार की जांच के लिए रंगनाथ मिश्र आयोग बना,जिसमे पत्रकार संजय सूरी ने एफिडेविट देकर कहा कि हाँ कमलनाथ दोषी है और मैं उसका गवाह हूँ,लेकिन मिश्र ने कमलनाथ का नाम जांच से हटा दिया। कांग्रेस ने बाद में उसी रंगनाथ मिश्र को चीफ जस्टिस और 1998 में राज्यसभा सांसद बना इनाम दिया ।
जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट को लेकर भाजपा नेता और तेजिंदर पाल सिंह बग्गा ने ट्वीट कर बताया कि किस प्रकार 1984 नरसंहार की जांच के लिए बने रंगनाथ मिश्रा आयोग के सामने संजय सूरी नाम के एक पत्रकार ने हलफनामा दायर कर बताया था कि इस मामले में कांग्रेसी नेता कमलनाथ दोषी है, क्योंकि मैं उनका गवाह हूं। लेकिन बाद में जस्टिस मिश्रा ने कमलनाथ का नाम जांच से ही हटा दिया, ताकि उस पर कभी कोई आंच नहीं आए। आज उसी कमलनाथ को आज कांग्रेस ने मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया है। कमलनाथ को जांच से हटाने और कांग्रेस को क्लीन चिट देने के ऐवज मे ही तो जस्टिस रंगनाथ मिश्र को पहले सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस और बाद राज्यसभा सांसद के रूप में इनाम दिया ।
1984 में हुए सिख नरसंहार मामले में न्यायमूर्ति ने भले कांग्रेस को क्लीन चिट दे दी थी लेकिन अपने ऊपर दाग लगा चुके थे। इसके लिए उनकी काफी आलोचना हुई थी। यहां तक कि उनके आयोग को सहायता करने के लिए आमंत्रित सिटीजन जस्टिस कमेटी (CJC) ने अपनी रिपोर्ट में न्यायमूर्ति मिश्रा की जांच प्रक्रिया की काफी आलोचना ही नहीं की थी बल्कि अपनी सुनवाई से मिश्रा की रिपोर्ट को भी हटा दिया था। मालूम हो कि रंगनात मिश्रा आयोग को सहायता करने के लिए सीजेसी को आमंत्रित किया गया था। सीजेसी वकीलों और न्यायविदों का एक निकाय है। सीजेसी ने दावा किया था कि जांच के दौरान गवाहों को किसी भी प्रकार की सुरक्षा नहीं दी गई थी बल्कि उनकी सुरक्षा की गोपनीयता के नाम पर किसी भी स्वतंत्र जांच को असंभव बना दिया गया था।
कांग्रेस को क्लीन चिट देने के मामले में न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा की जितनी आलोचना हुई थी शायद ही किसी आयोग की इतनी आलोचना हुई होगी। लेकिन वह तो अपने करियर को लेकर गंभीर थे, जो बाद में उन्हें कांग्रेस की तरफ से मिला भी। खास बात है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने सज्जन कुमार को सजा सुनाते हुए अपनी टिप्पणई में राजनीतिक संरक्षण मिलने और गवाहों को डराने की बात कही है, वही बात सीजेसी ने भी अपनी रिपोर्ट में कही थी।
इतना ही नहीं वरिष्ठ संपादक मनोज मिट्टा तथा एचएस फुलका ने संयुक्त रुप से लिखी अपनी किताब ‘When a Tree shook Delhi’ में न्यायमूर्ति की रिपोर्ट की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने तो उनपर घटना के साथ घालमेल करने का आरोप लगाया है। इतना ही नहीं न्यायमूर्ति मिश्रा आयोग पर सबसे बड़ा आरोप लगाया गया वह यह कि यह एकमात्र ऐसा आयोग है जो पीड़ितों के पास नहीं गया था बल्कि पीड़ितों को अपने सबूत के साथ आयोग के पास आने को मजबूर किया था। आरोप तो यहां तक लगाया गया कि उन्होंने सिखों के नरसंहार मामले में कांग्रेसी नेताओं के खिलाफ पीड़ित के पास जमा सबूतों को नष्ट करने के लिए ऐसा किया था।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों पर कांग्रेस के साथ साठगांठ का आरोप कोई नया नहीं है। न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा जैसे न्यायधीशों के करियर को देखते हुए ये आरोप हकीकत में बदल जाते हैं। न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा पर हर कदम पर कांग्रेस को राजनीतिक लाभ दिलाने का आरोप लगता रहा है। जो मुसलिम समुदाय हर समय रंगनाथ मिश्रा आयोग की सिफारिश लागू करने की मांग गाहे बगाहे करते रहते हैं वह इसलिए कि उन्होंने ही धार्मिक अल्पसंख्यकों और भाषाई अल्पसंख्यकों को सरकारी नौकरी में 10 प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश की थी। उन्हीं की सिफारिश के कारण कांग्रेस को मुसलिमों को अपना वोट बैंक बनाने में सफलता मिली थी। इसके अहलदा देश के अन्य अल्पसंख्यक समुदायों को 5 प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश की थी। इसके अलावा सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की सिफारिश की थी।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश दीपक मिश्रा न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा के भतीजे हैं। कांगियों और वामियों ने जानबूझ कर न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा के बारे में मोदी सरकार समर्थक होने का दुष्प्रचार किया था। ताकि लोगों को भ्रमित किया जा सके। जबकि सच्चाई यही है कि उन्होंने भी कांग्रेस के समर्थन में ही फैसला देते रहे हैं। 2 बजे रात में सुप्रीम कोर्ट खोलने का कोई औचित्य नहीं होने के बाद भी प्रशांत भूषण के कहने पर उन्होंने याकूब मेनन की फांसी पर फिर से सुनवाई के लिए कोर्ट खोलने का आदेश दिया। वो तो भला हो कि यह माजारा मोदी सरकार विरोधियों के खिलाफ चला गया। नहीं तो इन्होंने तो अपनी तरफ से सरकार को बदनाम करने का कोई कोर कसर उठा नहीं रखा था।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों से कांग्रेस का पुराना याराना
* 1984 में सिखों के नरसंहार मामले में सज्जन कुमार को मिली सजा से उठे कई सवाल
* कांग्रेस को क्लीन चिट देने वाले न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा की भूमिका पर उठे सवाल
* तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने दबाव में आकर गठित किया था रंगनाथ आयोग
* न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्र ने 1984 सिख दंगा मामले में कांग्रेस को दे दी थी क्लीन चिट
* सीजेसी ने अपनी सुनवाई में न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा की रिपोर्ट शामिल नहीं की थी
* रंगनाथ मिश्र आयोग की जांच प्रक्रिया पर उठाए गए थे कई सवाल
* पीड़ितों पर सबूत के आयोग के सामने पेश होने के लिए डाला गया था दबाव
* कांग्रेस को क्लीन चिट देने के बाद रंगनाथ मिश्रा के करियर में लग गया था पंख
* जस्टिस मिश्रा पर कांग्रेस को हर कदम पर राजनीतिक लाभ पहुंचाने का आरोप
* मिश्रा ने ही मुसलिमों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का की सिफारिश की थी
* देश के अन्य अल्पसंख्यकों को 5 प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश की थी
* धार्मिक अल्पसंख्यकों अनुसूचित जाति का दर्जा देने का भी दिया था प्रस्ताव
इंडिया स्पीक मैके से साभार