एक अत्यंत गरीब परिवार में जन्मा बालक भी अपने परिश्रम व सद्गुणों द्वारा विश्व इतिहास में कैसे अमर हो सकता है, इसका ज्वलंत उदाहरण थे भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री।
लोगों को सच्चा लोकतंत्र या स्वराज कभी भी असत्य और हिंसा से प्राप्त नहीं हो सकता है। कानून का सम्मान किया जाना चाहिए ताकि हमारे लोकतंत्र की बुनियादी संरचना मजबूत बनें।
पंडित नेहरू के शब्दों में, ‘अत्यंत ईमानदार, दृढ़ संकल्प, शुद्ध आचरण और महान परिश्रमी, ऊंचे आदर्शों में पूरी आस्था रखने वाले निरंतर सजग व्यक्तित्व का ही नाम है- लाल बहादुर शास्त्री। भारत की जनता के सच्चे प्रतिनिधि शास्त्रीजी के संपूर्ण जीवनकाल का यदि सर्वेक्षण किया जाए तो निश्चय ही वे मानवता की कसौटी पर खरे कंचन सिद्ध होंगे।
उत्तरप्रदेश के मुगलसराय में एक अत्यंत गरीब परिवार में शास्त्रीजी का जन्म हुआ था। उनके पिता श्री शारदाप्रसाद अध्यापक थे। शास्त्रीजी जब डेढ़ वर्ष के थे, उनके पिता का देहावसान हो गया। ननिहाल में उनका लालन-पालन हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा वाराणसी में हुई। 17 वर्ष की अल्पायु में ही गाँधीजी की स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार करने की अपील पर वे पढ़ाई छोड़कर असहयोग आंदोलन से संलग्न हो गए। परिणामस्वरूप वे जेल भेज दिए गए। जेल से रिहा होने के पश्चात् उन्होंने काशी विद्यापीठ में पढ़ाई आरंभ की। विद्यापीठ में उनके आचार्य स्व.डॉ. भगवानदास, आचार्य नरेंद्रदेव, बाबू संपूर्णानंदजी और श्री प्रकाशजी थे। उन्होंने प्रथम श्रेणी में परीक्षा उत्तीर्ण कर ‘शास्त्री’ की उपाधि प्राप्त की।
यदि मैं एक तानाशाह होता तो धर्म और राष्ट्र अलग-अलग होते। मैं धर्म के लिए जान तक दे दूंगा, लेकिन यह मेरा नीजी मामला है। राज्य का इससे कुछ लेना देना नहीं है। राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष कल्याण, स्वास्थ्य, संचार, विदेशी संबंधो, मुद्रा इत्यादि का ध्यान रखेगा लेकिन मेरे या आपके धर्म का नहीं। वो सबका निजी मामला है। यदि कोई एक व्यक्ति को भी ऐसा रह गया जिसे किसी रूप में अछूत कहा जाए तो भारत को अपना सर शर्म से झुकाना पड़ेगा।
शास्त्रीजी का समस्त जीवन देश की सेवा में ही बीता। देश के स्वतंत्रता संग्राम और नवभारत के निर्माण में शास्त्रीजी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान वे सात बार जेल गए। अपने जीवन में कुल मिलाकर 9 वर्ष उन्हें कारावास की यातनाएं सहनी पड़ीं।
सन् 1926 में शास्त्रीजी ने लोक सेवा समाज की आजीवन सदस्यता ग्रहण की और इलाहाबाद को अपना कार्य-क्षेत्र चुना। बाद में वे इलाहाबाद नगर पालिका, तदोपरांत इम्प्रुवमेंट ट्रस्ट के भी सदस्य रहे।
हम सिर्फ अपने लिए ही नहीं बल्कि समस्त विश्व के लिए शांति और शांतिपूर्ण विकास में विश्वास रखते हैं। हम सभी को अपने-अपने क्षत्रों में उसी समर्पण, उसी उत्साह और उसी संकल्प के साथ काम करना होगा जो रणभूमि में एक योद्धा को प्रेरित और उत्साहित करती है।
सन् 1947 में शास्त्रीजी उत्तरप्रदेश के गृह और परिवहन मंत्री बने। इसी पद पर कार्य करते समय शास्त्रीजी की प्रतिभा पहचान कर 1952 के पहले आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी के चुनाव आंदोलन को संगठित करने का भार नेहरूजी ने उन्हें सौंपा। चुनाव में कांग्रेस भारी बहुमतोंसे विजयी हुई जिसका बहुत कुछ श्रेय शास्त्रीजी की संगठन कुशलता को दिया गया। 1952 में ही शास्त्रीजी राज्यसभा के लिए चुने गए। उन्हें परिवहन और रेलमंत्री का कार्यभार सौंपा गया। 4 वर्ष पश्चात् 1956 में अडियालूर रेल दुर्घटना के लिए, जिसमें कोई डेढ़ सौ से अधिक लोग मारे गए थे, अपने को नैतिक रूप से उत्तरदायी ठहरा कर उन्होंने रेलमंत्री का पद त्याग दिया। शास्त्रीजी के इस निर्णय का देशभर में स्वागत किया गया।
अपने सद्गुणों व जनप्रिय होने के कारण 1957 के द्वितीय आम चुनाव में वे विजयी हुए और पुनः केंद्रीय मंत्रिमंडल में परिवहन व संचार मंत्री के रूप में सम्मिलित किए गए। सन् 1958 में वे वाणिज्य व उद्योगे मंत्री बनाए गए। पं. गोविंद वल्लभ पंत के निधन के पश्चात् सन् 1961 में वे गृहमंत्री बने, किंतु सन् 1963 में जब कामराज योजना के अंतर्गत पद छोड़कर संस्था का कार्य करने का प्रश्न उपस्थित हुआ तो उन्होंने सबसे आगे बढ़कर बेहिचक पद त्याग दिया। पंडित जवाहरलाल नेहरू जब अस्वस्थ रहने लगे तो उन्हें शास्त्रीजी की बहुत आवश्यकता महसूस हुई। जनवरी 1964 में वे पुनः सरकार में अविभागीय मंत्री के रूप में सम्मिलित किए गए। तत्पश्चात् पंडित नेहरू के निधन के बाद, चीनके हाथों युद्ध में पराजय की ग्लानि के समय 9 जून 1964 को उन्हें प्रधानमंत्री का पद सौंपा गया। सन् 1965 के भारत-पाक युद्ध में उन्होंने विजयश्री का सेहरा पहना कर देश को ग्लानि और कलंक से मुक्त करा दिया।
जानें उनके जीवन से जुड़ी 10 अहम बातें –
- मुश्किल परिस्थितियों हासिल की शिक्षा- बचपन में ही पिता की मौत होने के कारण नन्हें अपनी मां के साथ नाना के यहां मिर्जापुर चले गए। यहीं पर ही उनकी प्राथमिक शिक्षा हुई। उन्होंने विषम परिस्थितियों में शिक्षा हासिल की। कहा जाता है कि वह नदी तैरकर रोज स्कूल जाया करते थे। क्योंकि जब बहुत कम गांवों में ही स्कूल होते थे।
- लाल बहादुर शास्त्री जब काशी विद्यापीठ से संस्कृत की पढ़ाई करके निकले तो उन्हें शास्त्री की उपाधि दी गई। इसके बाद उन्होंने अपने नाम के आगे शास्त्री लगाने लगे।
- 16 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और गांधी जी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए।
- शास्त्री जी का विवाह 1928 में ललिता शास्त्री के साथ हुआ। जिनसे दो बेटियां और चार बेटे हुए।
- देश के अन्य नेताओं की भांति शास्त्री जी में भी देश को आजाद कराने की ललक थी लिहाजा वह 1920 में ही आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे। उन्होंने 1921 के गांधी से असहयोग आंदोलन से लेकर कर 1942 तक अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। इस दौरान कई बार उन्हें गिरफ्तार भी किया गया और पुलिसिया कार्रवाई का शिकार बने।
- दिया ‘जय जवान जय किसान’ का नारा – शास्त्री जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 1965 में भारत पाकिस्तान का युद्ध हुआ जिसमें शास्त्री जी ने विषम परिस्थितियों में देश को संभाले रखा। सेना के जवानों और किसानों महत्व बताने के लिए उन्होंने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा भी दिया।
- आजादी के बाद वे 1951 में नई दिल्ली आ गए एवं केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई विभागों का प्रभार संभाला। वह रेल मंत्री, परिवहन एवं संचार मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, गृह मंत्री एवं नेहरू जी की बीमारी के दौरान बिना विभाग के मंत्री रहे।
- 1964 में जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने। उनके शासनकाल में 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ।
- पाकिस्तान से युद्ध के दौरान देश में अन्न की कमी हो गई। देश भुखमरी की समस्या से गुजरने लगा था। उस संकट के काल में लाल बहादुर शास्त्री ने अपना तनख्वाह लेना बंद कर दिया। देश के लोगों से लाल बहादुर शास्त्री ने अपील की थी कि वो हफ्ते में एक दिन एक वक्त व्रत रखें।
- उन्होंने 11 जनवरी, 1966 को ताशकंद में अंतिम सांस ली थी। 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद में पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर करार के महज 12 घंटे बाद (11 जनवरी) लाल बहादुर शास्त्री की अचानक मृत्यु हो गई। कुछ लोग उनकी मृत्यु को आज भी एक रहस्य के रूप में देखते हैं।
लेकिन उनके जन्म से ज्यादा उनकी मृत्यु के बारे में लोग सोचते हैं। उनकी मौत की खबर आज भी अनसुलझी है। शास्त्री जी की मौत को लेकर कई सवाल उठते हैं कि आखिर सरकार उनकी मौत से जुड़े दस्तावेज को सामने लेकर नहीं क्यों नहीं आई आती है। सूचना आयोग के पास आज भी उनकी मौत की फाइल गोपनीय है।
ये हैं वो 5 सवाल, जो आजतक नहीं अनसुलझे
- ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री को उनके अधिकारियों से दूर रखा गया। जहां होटल में वो रहे वो ताशकंद शहर से 15 किलो मीटर की दूरी पर था।
- लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद उनका पोस्टमार्टम नहीं किया गया था। जबकि उनके शरीर पर चोट के कई निशान थे, जो हत्या की तरफ इशारा कर रहे थे।
- शास्त्री जी की मौत के दो गवाह एक डॉक्टर और दूसरे सेवक। यह दोनों ही जांच रिपोर्ट के सामने कभी पेश नहीं हुए।
- लाल बहादुर शास्त्री की मौत से जुड़े दस्तावेजों को शेयर करने के लिए आरटीआई भी दाखिल की गई। लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
- भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की हत्या के पीछे सीआईए का हाथ था। जिसने डॉ होमी भाभा की हत्या की थी।
भारत सरकार ने दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की हत्या या मौत से जुड़ा कोई भी दस्तावेज आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया है। आखिर क्यों उनकी फाइलों को ‘टॉप सीक्रेट’, ‘सीक्रेट’ कैटेगरी में रखा गया है। यह सवाल आज भी उठता है।